Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019VIDEO | कठुआ मेरे बचपन का शहर है और आज मैं बहुत शर्मिंदा हूं

VIDEO | कठुआ मेरे बचपन का शहर है और आज मैं बहुत शर्मिंदा हूं

जम्मू की बेटी का दर्द सहा नहीं जाता...

दिव्यानी रतनपाल
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(फोटो: क्विंट)
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(फोटो: क्विंट)

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वीडियो एडिटर- विवेक गुप्ता

प्रिय जम्मू, तुम्हारी बेटी होने पर मुझे शर्म आ रही है.

शर्मिंदा हूं कि मेरे लोगों ने, 8 साल की एक लड़की को सताया और एक पूजास्थल के अंदर उस पर जुल्म किया. उसके खानाबदोश बकरवाल समुदाय को गांव से बाहर निकालने के लिए बेरहमी से उसे मार डाला.

मुझे शर्म आ रही है कि मेरे लोगों ने उन बलात्कारी-हत्यारों के बचाव में रैलियां निकाली और उन दरिंदों के समर्थन में अपने देश का नाम इस्तेमाल किया.

हां, मैं जम्मू से हूं लेकिन इससे पहले, मैं एक औरत हूं. और इससे भी पहले, मैं एक इंसान हूं. हिंदू एकता मंच, आपकी हिम्मत कैसे हुई कथित बलात्कारियों के बचाव में अपने राष्ट्रीय झंडे के साथ रैली निकालने की?

वो मासूम 8 साल की थी. मैं खुद को उसकी सहमी आंखों के बारे में सोचने से नहीं रोक सकती, जिसने अपने अंतिम पलों में इस बीमार समाज की कट्टरता को देखा था, खुद. मेरे पिता के पैतृक गांव कठुआ में उसे बांधकर रखा गया था और उसपर जुल्म ढाए गए थे. हर बार मैं हताश हो जाती हूं जब भी मैं "हिरण" की तरह दौड़ती, "चहकती चिड़िया" को चित्रित करने की कोशिश करती हूं. मीडिया ने भले ही उन आंखों के बारे में खुलासा न किया हो पर मुझे पता है कि वो आंखें क्या कहना चाहती थी.

8 साल का मासूम चेहरा- वो बड़ी, चमकदार आंखें, और वो तीखी नाक- मुझे मेरे बचपन के बकरवाली सहेलियों की याद दिलाती है. जम्मू में बड़े होते हुए हम एक ही चीजों पर हंसा-खिलखिलाया करते थे. एक ही टीचर के बारे में शिकायत करते थे, एक दूसरे के साथ टिफिन शेयर करते थे. और परेशानियों से मायूस होकर दिक्कतों को शेयर करते थे. जिंदगी में तब ऐसी घृणा नहीं थी.

ऐसा नहीं है कि मेरे बचपन में भेदभाव बिल्कुल मौजूद नहीं था "वे (बकरवाल) गंदे लोग हैं", हमें बताया गया था "उनसे दूर रहो". ये भेदभाव की बात है. यह एक घाव की तरह है. इसे अगर ऐसे ही अनदेखा करते रहे तो यह हमारे घरों, स्कूलों, समुदायों में पसरता जाएगा.

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वकीलों ने न्यायिक प्रकिया में बाधा डाला. आरोपी में पुलिस अधिकारी शामिल है. नेताओं ने अपनी गंदी राजनीति को जारी रखी. तथाकथित हिंदू-राष्ट्रवादियों ने इस घटना को एक सांप्रदायिक रंग देना चाहा. इन लोगों की हिम्मत कैसे हुई कि वे मेरे राज्य को बांटें. पहले से जितना बंटा हुआ है क्या वो पर्याप्त नहीं है? मैं बस अपने राज्य के इंस्टिट्यूशन से शर्मिंदा हूं जिन्होंने मिलकर उस छोटी, निर्दोष बच्ची को हरा दिया.

और आप, जम्मू हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (जेएचसीबीए) के वकील, जब आप पीड़िता के वकील दीपिका सिंह राजावत को मामले को वापस लेने के लिए धमकी दे रहे थे, तो क्या आपकी समझ ने आपको नहीं रोका. आपने उसे खतरा बताते हुए गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी?

मैं अभी से ही विरोधियों को कश्मीरी पंडित महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों पर मेरी 'चुप्पी', 'चुने हुए गुस्से’ को लेकर हमला करते सुन सकती हूं.

उनके लिए, मैं यह कहना चाहूंगी, कि मुझे आपके सवालों में कोई दिलचस्पी नहीं है? क्योंकि दो गलत मिलकर एक सही नहीं बनाते हैं. और दो बलात्कार की तुलना से बलात्कार मुक्त वातावरण नहीं बन सकता है.

मेरा मानना है कि एक अपराध में शामिल होने के बजाय, सच को स्वीकार करने में अधिक महानता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 16 Apr 2018,12:51 PM IST

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