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कठुआ से उन्नाव तक, जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं ?  

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.

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गुरु दत्त, जन्म 1925, मूल नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण, हिंदी सिनेमा की एक महान शख्सियत. हालांकि उन्होंने अपने कामकाजी जीवन की शुरुआत कोलकाता में लीवर ब्रदर्स की फैक्ट्री में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी से की थी! उनकी फिल्में प्यासा और कागज के फूल टाइम मैगजीन की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल हैं.

वैचारिक गुस्से से भरी उनकी फिल्म प्यासा जब रिलीज हुई, तब भारत को आजाद हुए सिर्फ दस साल ही हुए थे, बढ़ते सामाजिक बंटवारे, आर्थिक विषमता, सामंती ताकतों की हावी होने की कोशिशों और पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के साथ गहरे राजनीतिक मतभेदों ने आजादी की चमक को धुंधला कर दिया था.

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ये लुटते हुए कारवां जिंदगी के...

ऐसे वक्त में गुरु दत्त ने शायर साहिर लुधियानवी, संगीतकार एसडी बर्मन और गायक मोहम्मद रफी जैसे महान प्रतिभाशाली लोगों को एक साथ लाकर बगावत का ये कालजयी गीत तैयार किया:

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.

देश की अंतरात्मा को झकझोरने वाले इस गीतमय आर्तनाद को आकार देने वाले गुरु दत्त कुछ ही साल बाद मृत पाए गए. नींद की गोलियों और शराब के जानलेवा मिश्रण ने उनकी जान ले ली.

गुरु दत्त तब सिर्फ 39 साल के थे. साफ नहीं था कि उनकी मौत खुदकुशी की वजह से हुई या ये एक आकस्मिक मौत थी (वो इससे पहले तीन बार खुदकुशी की कोशिश कर चुके थे). वैसे इस बात की खास अहमियत नहीं है. वो अपने पीछे भारत के डावांडोल लोकतंत्र के लिए एक शाश्वत चुनौती छोड़ गए थे.

60 साल बाद.....

रेप की दो दिल दहलाने वाली घटनाओं ने एक बार फिर भारत की अंतरात्मा को घायल कर दिया है. आज अगर गुरु दत्त जिंदा होते, तो मुझे पूरा यकीन है कि वो प्यासा के उस दिल दुखाने वाले गीत की शुरुआत इन लाइनों से करते:

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
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8 साल की गुड्डी को अपने आसपास से बड़ा लगाव था

समंदर जैसी नीली आंखों वाली महज 8 साल की गुड्डी. वो अपने खानाबदोश मामा के साथ रहती थी, जो उसे बेटी के तौर पर गोद ले चुके थे. उसका परिवार 60 हजार की आबादी वाले बकरवाल जनजातीय समूह का हिस्सा है. ये वो देशभक्त जनजाति है, जिसने पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ करने वाले दुश्मनों की जानकारी देकर भारतीय सेनाओं को कम से कम दो बार सतर्क किया, पहली बार 1947 में और फिर 1999 में करगिल की जंग से ठीक पहले.

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
समंदर जैसी नीली आंखों वाली महज 8 साल की गुड्डी. वो अपने खानाबदोश मामा के साथ रहती थी
(फोटो: द क्‍विंट) 

गुड्डी को अपने जानवरों से बड़ा लगाव था, जिसमें भेड़-बकरियों के अलावा गायें और घोड़े भी शामिल थे. उसे सेब भी बहुत पसंद थे. 10 जनवरी 2018 के उस अभागे दिन वो अपने टट्टुओं को चराने के लिए जम्मू के रसना गांव के चारागाह में गई थी. बेचारी बच्ची को कोई अंदेशा नहीं था कि उसका अपहरण होने वाला है. उसके साथ ऐसा क्यों किया गया? क्योंकि एक पूर्व सरकारी अधिकारी और उसके परिवार को गुड्डी के खानाबदोश समुदाय से खतरा महसूस होता था.

उनका आरोप है कि खानाबदोश जनजाति के ये लोग स्थानीय जमीनें और उनमें पैदा होने वाली फसलें खरीद रहे थे या उन पर कब्जा कर रहे थे. गुड्डी एक मुस्लिम थी और सांप्रदायिक हिंदुओं की नफरत का शिकार बनने के लिए इतना ही काफी था.

गुड्डी को भांग खिलाकर बेसुध कर दिया गया और फिर वो उसे स्थानीय मंदिर देवस्थान में ले गए. उसे Clonazepam नाम की एक दवा दी गई, जो मिरगी के दौरों और घबराहट के इलाज के लिए दी जाती है. और फिर उसका बार-बार रेप किया गया.

भगवान राम के पवित्र मंदिर के भीतर. "हिंदू" गुंडों द्वारा (मेरे जैसे सभी हिंदुओंके लिए कितनी शर्म की बात है). चार दिन बाद, जब इन हैवानों की भूख मिट गई तो उन्होंने बच्ची का कत्ल कर दिया. लेकिन उससे पहले स्थानीय पुलिसवाले ने कहा कि वो एक बार और रेप करना चाहता है. इसके बाद उस दरिंदे ने बच्ची के दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया और उसके मासूम चेहरे को एक भारी पत्थर से कुचल डाला.

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
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इसी बीच एक हजार मील दूर उन्नाव में....

17 साल की जिंदादिल लड़की गुड़िया. माखी गांव के बाकी तमाम लोगों की तरह वो भी गांव के ठाकुर के दबदबे के असर में रहती थी. उसे वो भैया कहती थी. ठाकुर यानी चार बार का स्थानीय विधायक, एक ऐसा दलबदलू नेता जो कांग्रेस से लेकर बीएसपी और एसपी तमाम राजनीतिक दलों में रहा और फिलहाल सत्ताधारी बीजेपी में है. उसकी पत्नी और भाई भी स्थानीय निकायों के चुनावों में जीतकर ताकतवर पदों पर रह चुके हैं. माखी गांव पूरी तरह से उसकी गिरफ्त में है. कहने की जरूरत नहीं कि वो अमीर और ताकतवर है. सड़क के उस पार रहने वाला ठाकुर गुड़िया की दादी का बनाया अंडा फ्राई खाने अक्सर उसके घर आया करता था.

2017 के जून महीने में भैया ने एक दिन गुड़िया को ये कहकर बुलाया कि वो नौकरी दिलाने में उसकी मदद करेगा. लेकिन नौकरी दिलाने की जगह उसने गुड़िया का रेप कर दिया. धमकी भी दी कि अगर वो खामोश नहीं रही, तो वो उसके पिता का कत्ल कर देगा. वो डरकर खामोश रही.

चार दिन बाद, ठाकुर के गुंडों ने गुड़िया काअपहरण करके गैंगरेप किया. दस दिन बाद वो पुलिस को औरैया के एक गांव में मिली. उसे एक मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने के लिए ले जाया गया, लेकिन उसे भैया का नाम न लेने के लिए धमकाया गया. इसके दस दिन बाद वो सुरक्षा की तलाश में अपने चाचा के घर दिल्ली चली आयी. उसका मन गुस्से और बेबसी से उबल रहा था. उसने अपने साथ हुए अत्याचार की दास्तान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखकर भेजी और मदद की गुहार लगाई. लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली.

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
ठाकुर यानी चार बार का स्थानीय विधायक, एक ऐसा दलबदलू नेता जो कांग्रेस से लेकर बीएसपी और एसपी तमाम राजनीतिक दलों में रहा
(फोटोः PTI)
भयानक बेबसी और निराशा की हालत में वो लखनऊ पहुंची और योगी आदित्यनाथ के घर के सामने खुद को जिंदा जलाने की कोशिश की. उसे पता नहीं था कि इस बीच उसके गांव माखी में उसके परिवार पर क्या कहर बरपाया जा रहा है. ठाकुर के भाई ने उसके पिता को बुरी तरह पीटा था. लेकिन हमलावर को गिरफ्तार करने की जगह पुलिस ने उसके पिता को ही “पिस्तौल हवा में लहराने” के आरोप में पकड़ लिया.

चार दिन बाद "सेप्टीसीमिया, पेट की झिल्ली में सूजन और आंतो के फटने" की वजह से उनकी पुलिस हिरासत में ही मौत हो गई. उनके "पेट, सीने, जांघों और कंधों समेत शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर किसी भोथरी चीज से 14 घाव" किए गए थे.

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.
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लोगों का गुस्सा बढ़ा तो मामले को दूसरा रंग दे दिया गया...

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. कहा गया कि मुस्लिम परस्त प्रशासन भगवान से डरने वाले (और मंदिर में रेप करने वाले?) हिंदू लड़कों को गलत ढंग से फंसा रहा है. लिहाजा, किसी वकील को उनके खिलाफ केस लड़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी. इन खानाबदोश चोरों के साथ जो हुआ, वो उसी के लायक थे. हिंदू एकता मंच के नाम से प्रदर्शन और आंदोलन हुए. स्थानीय मंत्री भी बड़ी बेशर्मी के साथ आरोपियों का पक्ष लेते हुए मौके पर जा पहुंचे. गुड्डी के साथ हुई दरिंदगी गंदी राजनीति के शोरशराबे में दबा दी गई.

उधर, गंगा के मैदानी इलाके में गुड़िया अपने पिता को खोने के गम में डूबी रही, ठाकुर खुलेआम घूमता रहा. टेलीविजन स्क्रीन पर नजर आ रही उसकी क्रूर हंसी ने भारत के मध्य वर्ग को गुस्से से भर दिया, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर कोई असर नहीं दिखा. चेहरे को दुपट्टे से ढककर चीखती गुड़िया का विलाप राजनीति के बहरे कानों तक नहीं पहुंच सका. पीड़ित की यातना लगातार बढ़ती रही.

गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया.

लेकिन प्रधानमंत्री को विदेश यात्रा पर निकलना है. दूसरे राजनेताओं को कर्नाटक में चुनाव प्रचार करना है. देश के नौजवानों को अपने पसंदीदा IPL क्रिकेट क्लब के समर्थन में शोर मचाना है. मुझे अगले हफ्ते के लिए एक और कॉलम लिखना है. और गुरु दत्त की 55 साल पहले मौत हो चुकी है. जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं ?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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