Home Videos सरकार को किसी के बेडरुम में दखल देने का हक नहीं- केशव सूरी
सरकार को किसी के बेडरुम में दखल देने का हक नहीं- केशव सूरी
जानिए होटल कारोबारी केशव सूरी जिन्होंने LGBTQ समुदाय के लिए दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
ईश्वर रंजना
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द ललित सूरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर केशव सूरी.
(फोटो: द क्विंट)
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13 साल पहले मैं इस पहचान के साथ सामने आया. मैं शुरू से गे था. मैं गे ही पैदा हुआ था. मैं कभी अपनी सेक्शुअलिटी को लेकर दुविधा में नहीं रहा.
केशव सूरी, याचिकाकर्ता
ये हैं द ललित सूरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर केशव सूरी. इन्होंने समलैंगिकता को IPC 377 के तहत अपराध को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की. इस याचिका के जरिए उन्होंने समलैंगिकता को अपराध बताने वाले कानून को रद्द करने की मांग की.
सूरी कहते हैं, ये सिर्फ इसे गैर-आपराधिक बनाने को लेकर नहीं है. इससे ये भी सुनिश्चित होगा कि इस देश में हरेक नागरिक और सहमति रखने वाले वयस्कों को अपनी सेक्शुअल पसंद का फैसला करने का हक है, अपने साथी को चुनने का अधिकार, गरिमा का अधिकार और गिरफ्तारी के डर के बिना रहने का अधिकार है.
“केंद्र या राज्य सरकार को किसी के बेडरूम में दखल देने का अधिकार नहीं”
सूरी कहते हैं कि अमेरिका के ऑरलैंडो के नाइटक्लब में एक गे को शूट करने की खबर ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया. साथ ही प्राइवेसी का अधिकार भी बड़ा कारण था जिसने उन्हें याचिका दायर करने के लिए प्रेरित किया.
अमेरिका में ऑरलैंडो की शूटिंग हुई और मैं ये सोचने लगा कि अगर ये भारत में होता, तो लोग खड़े होते और कहते हैं, ‘ओह! अच्छा हुआ कि सभी को गोली मार दी गई, क्योंकि ये अवैध है?
केशव सूरी, याचिकाकर्ता
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‘पिंक मनी’ का घाटा
सूरी की याचिका में ‘पिंक मनी’ के जिक्र ने अलग बनाया. याचिका ने होमोफोबिया को लेकर होने वाले आर्थिक नुकसान को उभारा. पिंक मनी यानी LGBTQ की परचेजिंग पावर को होने वाला नुकसान.
वर्ल्ड बैंक ने क्यों कहा है कि अगर देश में एक होमोफोबिक क्रूर कानून है तो जीडीपी की बढ़त के लिए उसे अरबों डॉलर खर्च करने होंगे? क्योंकि लोगों को ऑफिस में काम करने में परेशानी होती है, इसे सामने ना लाने का डर होता है, ऐसे में इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.
केशव सूरी, याचिकाकर्ता
उन्होंने बताया कि जजों के सामने इस याचिका को लेकर लड़ने वाले वकील मुकुल रोहतगी की बात का जिक्र करते हैं , "हम बाहर से आने वाले पर्यटकों को ना क्यों कह रहे हैं, जो शायद भारत आना चाह रहे हैं लेकिन धारा 377 की वजह से नहीं आएंगे? हम इस देश में टूरिज्म को नुकसान क्यों पहुंचा रहे हैं?"
ऐसे कई कारोबार हैं, टूर ऑपरेटर हैं जो LGBTQ समुदाय के लिए सर्विस देते हैं.
“जिंदगी इतनी आसान नहीं रही”
वो कहते हैं, मैं खुशनसीब हूं, मैं इस कंपनी का एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हूं. शुरुआत में थोड़ी हिचकिचाहट थी लेकिन मैं इससे बाहर निकला. मैं अपनी ही कंपनी के लिए एक सक्सेस स्टोरी बन गया.
मैं 3 बहनों के बाद चौथा बच्चा हूं, और ये माना जा रहा था कि बेटा पंजाबी बिजनेस की विरासत संभालेगा. खैर, एक बेटा बिजनेस चला सकता है, और एक गे बेटा इसे और भी बेहतर बना सकता है. बेशक मेरे साथ भेदभाव किया गया था. जब मैं बड़ा हुआ तो मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ा. मैं बाॅय स्कूल में था. आप कल्पना कर सकते हैं कि लड़के दूसरे लड़कों के साथ क्या करते हैं जब वो लड़का थोड़ा हटकर हो. शुरु में ये एक संघर्ष जैसा था, लेकिन ये उनके (परिवार) लिए भी शिक्षा थी. अगर उनका प्यार, साथ और समझ, बदलाव नहीं होता तो मैं उन्हें नहीं समझा पाता और न ही मैं आज ये इंटरव्यू दे रहा होता, न ही रिट याचिका दायर कर पाता.
केशव सूरी, याचिकाकर्ता
LGBTQ समुदाय के लिए काम करने और याचिका दायर करने को लेकर सूरी कहते हैं-
मैं कोई एक्टिविस्ट नहीं हूं. मैं समाजवादी नहीं हूं. मेरे पास कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है. मैं सिर्फ एक नागरिक हूं जो अपने मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल करता है. मैं टैक्स भरने वाला नागरिक हूं. मेरे पास एक खास बैकग्राउंड है, मुझे लगता है- क्यों न इसका इस्तेमाल सही जगह पर करें?