advertisement
वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई
क्या आपने इस खबर पर भरोसा कर लिया था कि भारत के ‘जन गण मन’ को UNESCO ने दुनिया का बेस्ट राष्ट्रगान घोषित किया है. या 2000 के नोट में जीपीएस होता है या गो-मूत्र से सोना निकलता है.
नहीं, तो ...बधाई हो. आप फेक न्यूज के जाल में नहीं फंसे.
अगर आपकी फैमिली और स्कूल के वॉट्सऐप ग्रुप में कोई मैसेज आता है, तो क्या आप जानते हैं कि ये कितना सच या झूठ है?
जानने के लिए ब्राउजर की मदद लें और फैक्ट चेक करें. गूगल फैक्ट चेकर का बेस्ट फ्रेंड है. वहां टाइप किजीए और भरोसेमंद न्यूज सोर्सेज पर इस खबर को ढूंढिए. अगर बात सच होगी तो देश-विदेश की चुनिंदा भरोसेमंद साइटों में से किसी पर जरूर होगी.
अगर किसी ने भी इस स्टोरी को रिपोर्ट नहीं किया हो तो उस जानकारी पर भरोसा मत कीजिए .
आप लेखक का नाम या जानकारी देने वाली साइट को भी सर्च कर सकते हैं, ताकि पता चल सके कि उसने और क्या-क्या किया है. जब आप कुछ भी ऑनलाइन पढ़ते हैं तो देखें कि इसे किसने पब्लिश किया है. क्या वो इस्टैबलिश्ड न्यूज पब्लिशर हैं और क्या उनका नाम चर्चित है जिस पर भरोसा किया जा सके.
लेकिन अगर आपने पब्लिशर के बारे में कभी नहीं सुना है तो चौकन्ने हो जाएं.
कोई भी पेशेवर संस्था ये जरूर बताती है कि उसकी जानकारी का सोर्स क्या है. बिना सोर्स बताए जानकारी देने वालों से सावधान रहें. वेबसाइट का यूआरएल भी देखें.
आपको लग सकता है कि आप द क्विंट, द गार्डियन की साइट देख रहे हैं, लेकिन 'डॉट कॉम,' के अंत में 'डॉट को' या 'डॉट इन' का मामूली-सा बदलाव साइट के पेज को पूरी तरह बदल देता है.
कोई चीज एक बार वर्ल्ड वाइड वेब में आ जाए, तो फिर ये हमेशा वहां रहती है. ये बात समाचारों के लिए भी लागू होती है.
शुक्र मनाइए कि सभी विश्वसनीय समाचारों में सोर्स के साथ उनके पब्लिश होने की तारीख भी दी जाती है. कोई भी चीज शेयर करने से पहले इसे जरूर जांचें.
पुराने लेख, खासकर आतंकवाद से लड़ाई या आर्थिक विकास जैसी लगातार बदलने वाली खबर की कुछ समय बाद कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती है.
फेकिंग न्यूज और ओनियन जैसी वेबसाइटों पर छपने वाले लेख घोषित रूप से मजाक उड़ाने वाले होते हैं.
ये वास्तविक तथ्यों पर आधारित नहीं होते और संभव है कि ये किसी ताजा घटना पर केंद्रित हों. हमेशा ध्यान रखें कि आपके समाचार का जरिया कोई व्यंग्य वाली वेबसाइट तो नहीं.
हर विश्वसनीय पब्लिशर का खुद के बारे में बताने वाला 'अबाउट' पेज होता है. इसे पढ़ें.
पब्लिशर की विश्वसनीयता के बारे में बताने के साथ ही यह ये बताएगा कि संस्था को कौन चलाता है. एक बार ये पता चल जाने पर उसका झुकाव समझ पाना आसान होगा.
खबर झूठी है या नहीं ये जानने का एक तरीका है कि इसके असर को खुद पर परखें. देखें कि समाचार पर आपकी कैसी प्रतिक्रिया है.
क्या इसे पढ़ने से आप गुस्से, गर्व या दुख से भर उठे हैं. अगर ऐसा होता है तो इसके तथ्यों को जांचने के लिए गूगल में सर्च करें.
झूठी खबरें बनाई ही इस तरह जाती हैं कि उन्हें पढ़कर भावनाएं भड़कें, जिससे कि इसका फैलाव अधिक हो.
आखिर आप इसे तभी शेयर करेंगे, जब आपकी भावनाएं इससे गहराई से जुड़ेंगी.
अगर आप पाएं कि भाषा और वर्तनी की ढेरों गलतियां हैं और फोटो भी घटिया क्वॉलिटी की हैं तो तथ्यों की जरूर जांच करें.
झूठी खबरें फैलाने वाली साइटें ये काम गूगल के ऐड से पैसा बनाने के लिए करती हैं, इसलिए वो साइट की क्वॉलिटी सुधारने पर ध्यान नहीं देतीं.
सारी बातों के अंत में, डिजिटल वर्ल्ड में सारी खबरें उसके दर्शक-पाठक पर निर्भर करती हैं कि आप इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट या चैट में शेयर करते हैं या नहीं.
लेकिन अगर आप जान-बूझकर झूठ या नफरत शेयर करते हैं, तो इसके नतीजे भी भुगतने पड़ सकते हैं, आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है.
इसलिए वेबकूफ बनने से बचें. सिर्फ सच पढ़ें और सच ही शेयर करें, ऐसा करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन जरूरी है और आप कर सकते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)