Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019ना मॉब लिंचिंग, ना मोरल पोलिसिंग: इस दिवाली कीजिए वही, जो है सही

ना मॉब लिंचिंग, ना मोरल पोलिसिंग: इस दिवाली कीजिए वही, जो है सही

इस दिवाली हम क्यों न कुछ गलत चीजों को सही करने के भागीदार बनें?

क्विंट हिंदी
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इस दिवाली हम क्यों न कुछ गलत चीजों को सही करने के भागीदार बनें?
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इस दिवाली हम क्यों न कुछ गलत चीजों को सही करने के भागीदार बनें?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है. दिवाली की रोशनी हमें दिखाती है कि सही को सही कहना और गलत को सही करना जरूरी है, क्योंकि यही चीज आगे जाती है. हम भी जाने-अनजाने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई गलत चीजें कर बैठते हैं, या गलत चीजों को बढ़ावा देते हैं. ऐसे में इस दिवाली हम क्यों न कुछ गलत चीजों को सही करने के भागीदार बनें?

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हरियाणा पहलू खान हो या झारखंड का तबरेज अंसारी...गोरक्षा के नाम पर हिंसा की खबरें लगातार आ रही हैं...भीड़ का रवैया ये होता है..

'ठीक किया मार डाला..इनके साथ ऐसा ही होना चाहिए...जब पकड़े जाते हैं तो कहते हैं कि गाय को पालने के लिए ले जा रहे थे, कहते हैं दूध बेचते हैं'

लेकिन क्या इसकी जगह ये नहीं होना चाहिए?

‘ना...ये ठीक नहीं है . कम से कम उनकी बात तो सुनते. क्या पता सच में गाय को पालने के लिए ले जा रहे हों, और फिर सड़क पर ही फैसला करना कहां तक सही है...पुलिस के हवाले कर देते...वो छानबीन करती...कानून अपना काम करता’

फेक न्यूज भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं. यूपी बिहार से लेकर साउथ इंडिया तक में बच्चा चोर की अफवाहों के कारण हिंसा कई हत्याएं हो गईं. वॉट्सऐप पर कोई मैसेज आया नहीं कि हम बिना सोचे समझे फॉरवर्ड करने में जुट जाते हैं...लेकिन क्या किसी मैसेज को देखकर चंद लम्हों के लिए सोचने की जरूरत नहीं है. बहुत खोजबीन न भी करें तो क्या सामान्य ज्ञान लगाने की जरूरत नहीं है कि जो मैसेज आया है वो सही लग रहा है या नहीं? यकीन मानिए थोड़ी सी खोजबीन से ज्यादातर मामलों आप झूठ पकड़ पाएंगे.

अभी बंगलुरु में एक शख्स एक लड़की को बीच सड़क समझाने लगा कि उसे छोटे कपड़े पहन कर नहीं निकलना चाहिए. लड़कियों को लेकर आज भी इस तरह के जुमले सुनने को मिलते हैं...

'कपड़े देखो जरा इनके, फिर कहेंगी कि हमें छेड़ते हैं...पता नहीं मां-बाप ने क्या संस्कार दिए हैं?'

लेकिन तुम्हें किसने हक दिया, लड़कियों के कपड़ों पर कमेंट करने का? कैरेक्टर को कपड़ों की लंबाई से क्यों मापते हो? और कपड़े ही भड़काऊ होते हैं तो छोटी बच्चियों पर क्यों जुल्म हो  रहे हैं?

आरक्षण को लेकर जब तब देश में बवाल मचता रहता है. लेकिन क्या इसकी पीछे वही भावना नहीं है, जिसकी वजह से आरक्षण देना पड़ा? आखिर सदियों के भेदभाव के कारण ही तो हमारे समाज का एक वर्ग पिछड़ा रह गया. तो क्या हम सबकी जिम्मेदारी नहीं है कि पीछे छूट गए भाइयों को आगे लेकर आएं. उनसे बराबरी का बर्ताव करें. आगे आने में उनकी मदद करें?

तो इस दिवाली कीजिए वही जो है सही....हैप्पी दिवाली

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