advertisement
दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है. दिवाली की रोशनी हमें दिखाती है कि सही को सही कहना और गलत को सही करना जरूरी है, क्योंकि यही चीज आगे जाती है. हम भी जाने-अनजाने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई गलत चीजें कर बैठते हैं, या गलत चीजों को बढ़ावा देते हैं. ऐसे में इस दिवाली हम क्यों न कुछ गलत चीजों को सही करने के भागीदार बनें?
हरियाणा पहलू खान हो या झारखंड का तबरेज अंसारी...गोरक्षा के नाम पर हिंसा की खबरें लगातार आ रही हैं...भीड़ का रवैया ये होता है..
'ठीक किया मार डाला..इनके साथ ऐसा ही होना चाहिए...जब पकड़े जाते हैं तो कहते हैं कि गाय को पालने के लिए ले जा रहे थे, कहते हैं दूध बेचते हैं'
लेकिन क्या इसकी जगह ये नहीं होना चाहिए?
फेक न्यूज भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं. यूपी बिहार से लेकर साउथ इंडिया तक में बच्चा चोर की अफवाहों के कारण हिंसा कई हत्याएं हो गईं. वॉट्सऐप पर कोई मैसेज आया नहीं कि हम बिना सोचे समझे फॉरवर्ड करने में जुट जाते हैं...लेकिन क्या किसी मैसेज को देखकर चंद लम्हों के लिए सोचने की जरूरत नहीं है. बहुत खोजबीन न भी करें तो क्या सामान्य ज्ञान लगाने की जरूरत नहीं है कि जो मैसेज आया है वो सही लग रहा है या नहीं? यकीन मानिए थोड़ी सी खोजबीन से ज्यादातर मामलों आप झूठ पकड़ पाएंगे.
अभी बंगलुरु में एक शख्स एक लड़की को बीच सड़क समझाने लगा कि उसे छोटे कपड़े पहन कर नहीं निकलना चाहिए. लड़कियों को लेकर आज भी इस तरह के जुमले सुनने को मिलते हैं...
'कपड़े देखो जरा इनके, फिर कहेंगी कि हमें छेड़ते हैं...पता नहीं मां-बाप ने क्या संस्कार दिए हैं?'
आरक्षण को लेकर जब तब देश में बवाल मचता रहता है. लेकिन क्या इसकी पीछे वही भावना नहीं है, जिसकी वजह से आरक्षण देना पड़ा? आखिर सदियों के भेदभाव के कारण ही तो हमारे समाज का एक वर्ग पिछड़ा रह गया. तो क्या हम सबकी जिम्मेदारी नहीं है कि पीछे छूट गए भाइयों को आगे लेकर आएं. उनसे बराबरी का बर्ताव करें. आगे आने में उनकी मदद करें?
तो इस दिवाली कीजिए वही जो है सही....हैप्पी दिवाली
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)