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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
यूपी के 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों को बे-बंगला करवाने वाली टीम पर्दे के पीछे रहना पसंद करती है लेकिन कई बार ऐसे लोगों को करीब से जानना और उनकी आम आदमी से मुलाकात करवाना भी जरूरी होता है. इस वीडियो में आप उनके 14 साल के संघर्ष की पूरी कहानी जान पाएंगे.
बीते दिनों आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूपी में खलबली मच गई. 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों को न चाहते हुए भी सरकारी बंगला खाली करना पड़ा. ये सब मुमकिन हो पाया एनजीओ लोकप्रहरी की लंबी लड़ाई के बाद. लोकप्रहरी, पूर्व IAS, IPS और जजों का संगठन है जो जनहित से जुड़ों मुद्दों को उठाता रहा है.
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सरकारी बंगले के मामले में 2004 में सबसे पहले लोकप्रहरी ने याचिका डाली. ये याचिका 1997 के उस नियम के खिलाफ थी जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास देने की व्यवस्था की गई थी. लोकप्रहरी के महासचिव एसएन शुक्ला ने क्विंट को बताया,
लोकप्रहरी के अध्यक्ष और रिटायर्ड आईएएस नितिन मजूमदार कहते हैं कि अब वक्त आ गया है जब पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों को भी सरकारी आवास खाली कर देने चाहिए.
इससे पहले भी लोकप्रहरी एनजीओ का योगदान कई बड़े फैसलों में रहा है. 2013 में डाली याचिका के बाद ही आरजेडी के लालू यादव समेत तीन सजायाफ्ता सांसदों को अयोग्य घोषित कर दिया गया. इसके लिए कोर्ट ने 62 साल पुराने प्रावधान को बदल दिया.
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