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यूपी: इंसेफेलाइटिस के बढ़ते मामले, कितने तैयार हैं अस्पताल?

इंसेफेलाइटिस के लक्षण ज्यादातर बच्चों में पाए जाते हैं. इस बीमारी में सही इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है

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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में गर्मी बढ़ने के साथ-साथ इंसेफेलाइटिस (जापानी बुखार) के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. कुशीनगर जिला अस्पताल में रोजाना औसतन 10 मरीज भर्ती हो रहे हैं, जिनमें 2-3 की हालत खराब होने के चलते उन्हें ICU वार्ड में रखना पड़ रहा है.

इंसेफेलाइटिस (जापानी बुखार) के लक्षण ज्यादातर बच्चों में पाए जाते हैं. इस बीमारी में सही समय पर सही इलाज न मिलने पर मौत भी हो सकती है.

अगस्त, 2017 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में अस्पताल में 63 बच्चों की मौत के मामले के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के हालात बदलने के दावे किए गए लेकिन हकीकत काफी अलग है.

क्विंट के संवाददाता विक्रांत दुबे ने गोरखपुर से सटे इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का जायजा लिया.

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कंपाउंडरों के भरोसे हैं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

कुशीनगर के ठाढ़ीभार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले 36 सालों से कोई डॉक्टर नहीं है. यहां फार्मासिस्टों और कंपाउंडरों के भरोसे ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चलाए जा रहे हैं.

इंसेफेलाइटिस का सबसे ज्यादा कहर गोरखपुर से सटे जिलों में है. कुशीनगर में मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा होती है, लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधा की कमी और डॉक्टरों के न होने की वजह से मरीजों की हालत काफी बिगड़ जाती है.

फार्मासिस्ट और कंपाउंडर जब मरीजों का इलाज करते हैं तो इंसेफेलाइटिस की समय से पहचान नहीं हो पाती है.

कुशीनगर के चाप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में जब क्विंट की टीम पहुंची तो पता चला कि यहां फार्मासिस्ट ही सभी काम कर रहे हैं. राकेश सिंह के मुताबिक,

सरकार हमसे जो भी काम कराना चाहती है हम वो कर रहे हैं. दवाई देना मेरा काम है लेकिन जहां भी डॉक्टर नहीं हैं वहां सरकार फार्मासिस्ट से ही काम करा रही है.

उत्तर प्रदेश में सात हजार से ज्यादा डॉक्टरों की कमी है. कुशीनगर के सीएमओ के मुताबिक, कर्मचारियों और डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

'प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराना मजबूरी'

इधर, अस्पतालों की ऐसी हालत से स्थानीय लोग भी परेशान हैं. कुशीनगर के निवासी राजेंद्र के मुताबिक, जब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज से कोई फायदा नहीं होता है तो वहां इलाज क्यों कराएं? मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है.

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