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हत्‍या पर आमादा गोरक्षक कैसे बना रहे हैं देश को ‘लिंचिस्‍तान’

गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का ऐसे बनता है तगड़ा नेटवर्क

अस्मिता नंदी
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लिंचिस्तान: भारत में गो रक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का नेटवर्क
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लिंचिस्तान: भारत में गो रक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का नेटवर्क
(फोटो: द क्विंट)

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एडिटिंग और ग्राफिक्स: प्रशांत चौहान

एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर: ऋतु कपूर, रोहित खन्ना

अगर वो गो-तस्करी के लिए ले जा रहा है, तो उसे वहीं काट दो. कानून का तो बाद में देखा जाएगा.
लखन यादव, गोरक्षक, वीएचपी

सितंबर 2015 में मोहम्मद अखलाक की लिंचिग के बाद से अब तक हिंदुस्तान के अलग-अलग शहरों में लिंचिंग की 35 वारदात हो चुकी हैं. देश के 11 राज्यों में इन्हें अंजाम दिया गया.

लेकिन गाय की रक्षा के नाम पर माॅब लिंचिंग हमारे देश में सामान्य क्यों हो गया है? और ये ‘लिंचिस्तान’ यानी गोरक्षा के नाम पर हत्या करने वालों का नेटवर्क काम कैसे करता है?

ये है गोरक्षा का तंत्र

सिर्फ अलवर में, जुलाई 2018 में रकबर खान की हत्या कर दी गई थी. एक साल पहले नवंबर में उमर खान को गोली मार दी गई थी. अप्रैल में सरेआम पहलू खान को लिंच कर दिया गया. ये सब हुआ गाय के नाम पर.

वो गोरक्षक हैं, वो मारपीट करते हैं, गायों को छीन लेते हैं. गोरक्षक कम होते हैं, तो हम बच जाते हैं, वो ज्यादा होते हैं, तो हत्या ही कर देते हैं.
मुस्लिम मवेशी व्यापारी

लिंचिस्तान निर्देश पुस्तिका

स्टेप 1: नेटवर्क बनाएं

गोरक्षा नेटवर्क टिका होता है WhatsApp ग्रुप पर. या यूं कहें कि सैकड़ों WhatsApp ग्रुप पर.

WhatsApp ग्रुप तो मेरे पास 200 से 250 की संख्या में हैं. गोरक्षा और संगठन से जुड़े हुए भी कम से कम 150 से 175 ग्रुप हैं.
रामेश्वर, बजरंग दल जिला संयोजक

गोरक्षा के प्रचार वाले वीडियो बिना रुके फैलते जाते हैं. तेज इंटरनेट और बढ़ते स्मार्टफोन की वजह से इन मैसेज को वायरल होने में कुछ सेकेंड लगते हैं, चाहे वो फर्जी ही क्यों न हो.

WhatsApp में पता लग जाता है कि इस नंबर की गाड़ी आ रही है, इस रोड से जाएगी. जाकर पकड़ लो एक बार, जाकर कह दो कि गाय की गाड़ी आ रही है, मुसलमान लेकर आ रहे हैं, हिंदू अपने आप इकट्ठा हो जाते हैं.  
गोरक्षक

पर क्या उनके पास ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार है?

उनके (गोरक्षकों) पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी कमेटी बनाई है.  
मुरारी लाल, स्थानीय  

इस तरह रक्षकों का नेटवर्क तैयार होता है. अब बस उन्हें सिर्फ कानूनी मान्यता चाहिए.

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स्टेप 2: कानूनी मान्यता दी जाए

इन गोरक्षकों के पास किसी को रोकने, छानबीन और परेशान करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. लेकिन पुलिस से मिलने वाला समर्थन उन्हें बिना सजा, ये सब करने की तसल्ली देता है.

रास्ते में जब वो गोरक्षक रोकते हैं, तो सबसे पहले नाम पूछते हैं. अगर उसने बता दिया कि मेरा नाम इस्लाम है, खान है.... मुस्लिम नाम बता दिया तो हुलिया देखे बिना ही उसे जला देते हैं, फाड़ देते हैं. उनका यही मकसद है कि ये मुसलमान है, इसे मारा जाए.  
मो. अकबर, लिंचिंग के शिकार रकबर खान के भाई

स्टेप 3: निर्दोष साबित कीजिए

“भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता है.”
गोरक्षक

गोरक्षक कहते हैं कि भीड़ में कोई एक व्यक्ति तो होता नहीं है, हजारों की संख्या में लोग होते हैं. ऐसे में आप कैसे पहचानेंगे कि कौन था, किसी को ‘मारना’ और भीड़ के नाम पर बच जाना आसान होता है.

स्टेप 4: हमले को अंजाम दो

सजा से आजादी के बाद बारी आती है हमले की. और यकीन कीजिए, मॉब लिंचिंग कभी 'एक पल में लिया फैसला' नहीं होतीं. ये एक ऑर्गनाइज्ड क्राइम है.

पहले तो ये देखा जाता है कि वो गाय को कहां ले जा रहा है. अगर गोतस्करी के लिए ले जा रहा है, तो उसे वहीं काट दो.  
लखन यादव, गोरक्षक  

लखन आगे कहते हैं, ''... जब हमारी मां को काटा जाता है, तो हमें तकलीफ होती है, तो मेरे अंदाजे से उसे भी काट देना चाहिए, अगर वो असली हिंदू है तो... कानून का तो बाद में देख लिया जाएगा.”

स्टेप 5: अपराधियों को बधाई दें

अगर आप नेता हैं, तो आपको उदाहरण के साथ नेतृत्व करना होगा. जब ऐसा कुछ हो, तो उन लोगों की आलोचना कीजिए, जिन्होंने इसे किया था.

जो लोग ऐसा हेट क्राइम कर रहे हैं, उनसे हीरो की तरह बर्ताव किया जा रहा है, बचाया जा रहा है, नेशनल फ्लैग में लपेटा जा रहा है, उन्हें मालाएं पहनाकर स्वागत किया जा रहा है
हर्ष मंदर, मानवाधिकार कार्यकर्ता

रुपेंद्र राणा, जो दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या के आरोपियों से एक हैं, वो जल्द ही नोएडा से उम्मीदवार हो सकते हैं. ’गोमाता के सम्मान और उसके लिए जेल जाने’ पर यूपी नवनिर्माण सेना ने उन्हें सम्मानित किया.

नेता-पुलिस-गोरक्षक गठजोड़

बीजेपी को हम लेकर चलते हैं, बीजेपी में इक्के-दुक्के कार्यकर्ता ही होते हैं जो हमारी सुनते हैं. वो फिर उन उच्चाधिकारियों को फोन करके कहते हैं, ‘वहां उस तरह की घटना हो रही है, कार्यकर्ताओं को परेशान किया जा रहा है, उन पर हमले हो रहे हैं, आप क्यों नहीं जा रहे हैं’ तब वहां पुलिस पहुंचती है और मामला देखती है. आनन-फानन में मामला निपटाने की कोशिश करती है.
रामेश्वर, बजरंग दल जिला संयोजक

आरोपियों के मानने के बाद और सुबूत होने के बावजूद पुलिस ने आंखें मूंदे रखीं और हापुड़ लिंचिंग को ‘रोड रेज’ का मामला बता दिया.

अलवर में रकबर खान को हॉस्पिटल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए. वो भी सिर्फ 6 किलोमीटर की दूरी तय करने में. बीच में पुलिस पार्टी चाय पार्टी के लिए भी रुकी. पुलिस के लिए, घायल को अस्पताल ले जाना जरूरी नहीं था, उनके लिए गाय को गोशाला पहुंचाना ज्यादा जरूरी हो गया.

जब वो हॉस्पिटल पहुंचे, रकबर खान मर चुके थे.

पुलिस आखिर ऐसा क्यों करती है? क्या उनके दिल में भी कौमी नफरतें पनपती हैं...वो भी इसी समाज का हिस्सा हैं.

मेवात जिला बोलते हैं इसे, पूरा मेव ही मेव का है. इसे छोटा सा देश ही मान लो. मेव लोगों का ये धंधा है, चोरी, चकारी, गो-तस्करी. ये मुसलमान ही करते हैं,
अलवर में एक पुलिस

नेता का आशीर्वाद

क्या पुलिस नेताओं के इशारों पर काम करती है जो मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं से पॉलिटिकल माइलेज हासिल करना चाहते हैं?

  • ज्ञानदेव आहूजा, विधायक, बीजेपी: मेरा सीधा-सीधा कहना है कि गो-तस्करी करोगे और गोकशी करोगे तो यूं ही मरोगे.
  • जसवंत यादव, मंत्री, राजस्थान: हर हिंदू का खून खौलता है.
  • अर्जुन मेघवाल, केंद्रीय मंत्री: जैसे-जैसे मोदीजी पॉपुलर होते जाएंगे, वैसे-वैसे कुछ घटनाएं इस देश में आती रहेंगी.
  • जसवंत यादव, मंत्री, राजस्थान: ये रोजाना जो रिएक्शन होता है, वो भी इस गाय के गोरखधंधे को बंद करें. हिंदुओं की भावनाओं को समझें.

ऐसे बयान हमारे नेताओं ने दिए हैं.

फैक्ट्स का कोई मतलब नहीं

पहलू खान को ये आरोप लगा कर मारा गया कि वो गोकशी के लिए तस्करी कर रहे थे, लेकिन सच्चाई ये नहीं. ये बात सरासर झूठ है. पहलू दूध देने वाली एक गाय ले जा रहे थे, जिसकी कीमत गोकशी में इस्तेमाल होने वाली गाय से कहीं ज्यादा थी.

लिंचिस्तान का असर

तो हमारे पास अब बचता क्या है?

डर

कुछ लोग कत्ल करके खास मैसेज भेजना चाहते हैं, लेकिन भुगतना औरों को पड़ता है.

ये जो कांड हो रहे हैं ये उनके पास संदेश ही तो पहुंच रहा है. अच्छा तो है, बहुत अच्छा है, क्योंकि जो लोग इस लाइन में आने वाले हैं, उनके अंदर डर बैठ जाता है कि कल को वो ना पकड़े जाएं, उनके साथ भी ये हो सकता है.  
गोरक्षक
उनकी (अब्बा) मौत के बाद मेरी हिम्मत नहीं पड़ती. गाय, भैंस लेकर जाने की हिम्मत नहीं होती. हमें तो अपने घर से बाहर जाने में भी डर लगता है.
इरशाद खान, पहलू खान के बेट, (अलवर, राजस्थान)  

नफरत

हम तो कहते हैं कि मां मानो उनकी रक्षा करो..लेकिन इंसान को तो मत मारो, जो पालने के लिए ला रहा है उसे मार देते हैं.
पशु व्यापारी, अलवर, राजस्थान
अगर वो गो-तस्कर हैं तो उन्हें जान से मार देना चाहिए. गाय हमारी माता है, उन्हें बचाने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं.
गोरक्षक

खतरे में पड़ता भविष्य

बच्चों को कौन खिलाएगा? 7 बच्चों को मैं मेहनत करके पाल सकती हूं? नहीं हो पाएगा मुझसे. मुझे इंसाफ मिले. इंसाफ चाहती हूं मैं.
अस्मिना खान, रकबर की पत्नी.
लिंचिस्तान माॅडल का सबसे दर्दनाक असर ये है कि अब गोरक्षा की ये ‘बीमारी’ बुरी तरह फैल चुकी है. अलवर के पहलू से लेकर रामगढ़ के अलीमुद्दीन तक और दिल्ली के दिल तक भी. 

अप्रैल 2017 की एक रात. खुद को पीपल फॉर एनिमल से बताने वाले कुछ लोगों ने दिल्ली में एक मुस्लिम पशु कारोबारी पर हमला कर दिया. देश की संसद से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर. असम, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, वेस्ट बंगाल, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश....भीड़, देश के हर हिस्से में गाय के नाम पर आतंक मचा रही है.

क्योंकि जब पुलिस का साथ हो

गोरक्षकों को बढ़ावा मिले

अल्पसंख्यकों को मारा जाए

उनकी देशभक्ति पर सवाल उठें

जहां हत्याओं पर जश्न हो

मंत्री उसे सही ठहराएं

तो, मेरे दोस्त, कहने का वक्त आ चुका है- लिंचिस्तान में स्वागत है!

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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