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MP: बिना स्कूल गए आदिवासी महिला ने बनाया अनोखा बीज बैंक

Madhya Pradesh: लहरी बाई के बीज बैंक में 28 से ज्यादा पौष्टिक बीज उपलब्ध हैं.

दीपक ताम्रकार
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<div class="paragraphs"><p>"पेट भरने के जुगाड़ में बीमार हुए भारत" की मदद करेगा लहरी बाई का बीज बैंक </p></div>
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"पेट भरने के जुगाड़ में बीमार हुए भारत" की मदद करेगा लहरी बाई का बीज बैंक

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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आज भारत में ऐसे गांव विरले ही देखने मिलेंगे जहां हाइब्रिड बीजों की दुकान न मिले. या फिर इन्ही दुकानों पर या इनसे सटे दुकानों पर इन बीजों को जिंदा रखने वाले और इंसानों के लिए घातक कीटनाशक न मिले. बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बीच डैम तोड़ते ये हाइब्रिड बीज किसानों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की लहरी बाई भारत की उम्मीद बनकर उभर रही हैं. बैगा आदिवासी समुदाय की 27 साल की लहरी बाई ने बिना किसी की मदद के अपना बीज बैंक तैयार किया है.

एक तरफ जब देश में बीज को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, खेतों में कीटनाशक पीने वाले बीजों से खेती की जा रही हो और इन्ही बीजों और उनमे लगने वाले कीटनाशक बेचकर जब प्राइवेट कंपनियां करोड़ों के मुनाफे में हैं.

ऐसे वक्त में बिना कभी स्कूल गए लहरी बाई की ये पहल सीधे तौर पर इन मुनाफाखोर कंपनियों से लड़ाई मोल लेने के बराबर है.

लगभग 25 गांव में देसी बीज पहुंचाने वाली लहरी बाई कहती हैं कि उनके पुरखे सदियों तक जिंदा रहे और यही अनाज खाकर जिंदा रहे, इसलिए वो बीज बैंक बना रही हैं.

हमारे बाप दादा 100 साल से ज्यादा उम्र तक जिंदा रहे, यही खाया- देसी बीज, देसी अनाज, इसीलिए मैंने सोचा कि बीज बैंक बनाऊं.
लहरी बाई

आजादी के बाद लगभग 70 के दशक में बाजारों से देसी बीज गायब होने लगे थे. हरित क्रांति की शुरुआत हुई और समूचा किसान वर्ग नए बीज, बढ़ी हुई उपज की ओर खिंचा चला गया. भारत के बीज बाजार पर प्राईवेट कंपनियों का बोलबाला हो गया. लेकिन ये बढ़ी हुई उपज वाले बीज अपने साथ कई समस्याएं भी लेकर आए. इन बीजों को ज्यादा उर्वरक यानी कि DAP और यूरिया लगता था, पानी ज्यादा लगता था और मानसून आधारित भारत की खेती प्रणाली खराब होती गई. हालात ऐसे हुए कि इन हाइब्रिड बीजों के कारण देश में कीटनाशक का अरबों रुपए का व्यापार खड़ा हो गया.

गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट में पत्रकार अरविंद शुक्ला लिखते हैं कि हाइब्रिड बीजों के आने के बाद मोनसेंटे इंडिया, सिंजैंटा इंडिया लिमिटे, बायर क्रॉप साइंस और पायनियर हाईब्रिड इंटनेशनल इंक जैसी कंपनियां बीज सेक्टर में करोड़ों रुपए का निवेश कर अरबों रुपए कमा रही हैं.

क्या किसानों के पास बचे हैं पुरानी पद्धति से खेती करने के विकल्प?

हालांकि बीते कुछ वर्षों में पारंपरिक और ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी की जैविक खेती पर देश का ध्यान बढ़ा है. पढ़े-लिखे लोगों के कुछ हिस्से को आर्गेनिक, कीटनाशक रहित अनाज पसंद आ रहे हैं, लेकिन 1970 के बाद से पैदावार बढ़ाने और पेट भरने में व्यस्त देश के किसानों के पास क्या अब पुराणी पद्धति से खेती करने के लिए बीज बचे हैं?

इसी सवाल का जवाब ढूढ़ने में मदद करेंगी लहरी बाई. मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिला के बजाग क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम सिलीपिढ़ी की रहने वाली लहरी बाई बताती हैं कि बचपन से ही वो अपने पूर्वजों को बेवर खेती और उसके बीज को सहेजने के तरीके पर काम करते हुए देखती आयी हैं और इसी परंपरा को वो आगे बढ़ाते हुए आज खुद बीज सहेज रही हैं.
बेवर बीज की खेती से उत्पन्न होने वाले पौष्टिक अनाज को खाने से शरीर हस्ट पुष्ट रहता है और जीवन आयु भी लंबी होती है. मैं अपने खेत मे धान और कोदो की फसल के साथ-साथ सामुदायिक अधिकार वाले जंगल की जमीन में पारंपरिक खेती में इस्तेमाल करने वाले बीजों को भी सहेज रही हूं.
लहरी बाई

लहरी बाई के बीज बैंक में 28 से ज्यादा पौष्टिक बीज उपलब्ध हैं. उनके मिट्टी और खपड़ों से बने घर में तीन कमरे हैं. एक कमरे में लहरी बाई का परिवार रहता है, दूसरे में घर के अन्य सामान और तीसरे में सामुदायिक बेवर बीज बैंक हैं, जिसमें तरह-तरह के बीज उपलब्ध है.

बड़ी-बड़ी मिट्टी की कोठी (अनाज रखने का बड़ा बर्तन) बनाकर लहरी बाई ने अलग-अलग बीजों को इसमें सहेज कर रखा है, ताकि लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके और इनपर हर बीज का नाम लिखा हुआ है.

(फोटो- क्विंट हिंदी)

लहरी बाई के पास सहेजे हुए बीजों में कई तरह के बीच शामिल हैं.

  • कांग की चार प्रजाति- भुरसा कांग,सफेद कलकी कांग,लाल कलकी कांग,करिया कलकी कांग.

  • सलहार की तीन प्रजाति- बैगा सलहार,काटा सलहार ,ऐंठी सलहार.

  • कोदो की प्रजाति- बड़े कोदो,लदरी कोदो,बहेरी कोदो,छोटी कोदो.

  • मढ़िया की प्रजाति चावर मढ़िया,लाल मढ़िया, गोद पारी मढ़िया, मरामुठ मढ़िया.

  • सांभा की प्रजाति- भालू सांभा, कुशवा सांभा, छिदरी सांभा.

  • कुटकी की प्रजाति - बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाहि कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया बीज.

  • दलहनी फसल - बिदरी, रवास, झुंझुरु, सुतरु, हिरवा, बैगा राहर के बीज.

लहरी बाई 350 से ज्यादा किसानों को बीज बैंक के जरिए जोड़कर पारम्परिक खेती को बढ़ावा दे रही हैं.
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डिंडोरी जिले के तीन विकासखंडों समनापुर, बजाग और करंजिया के गांवों में लहरी बाई ने बेवर बीज बांटे गए हैं.

लहरी बाई लोन के एक मॉडल पर काम करती हैं. गांव-गांव जाकर बीजों के बारे में लोगों को बताने और फिर खेती करने के लिए बीजों को लोन पर देती हैं. उत्पादन के बाद बीज की लोन वाली मात्रा से थोड़ा ज्यादा वापस ले लेती हैं, ताकि बीज और ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके.

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्विद्यालय के संस्थान एग्री बिजनेस मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ. मोनी थॉमस ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि लहरी बाई का काम इस वक्त कृषि क्षेत्र का सबसे जरूरी काम है और इससे आने वाली कई पीढ़ियों को फायदा मिलेगा.

लोकल स्तर पर बीजों को सहेजने के अलावा लहरी बाई का काम कृषि क्षेत्र में बहुत मददगार रहेगा. आज के वक्त में जो बीज बाजार में हैं और जो अनाज उगाए जा रहे हैं, उनमें न्यूट्रीशनल वैल्यू और फाइबर नही है. हम इस स्थिति में इसलिए पहुंचे क्योंकि हरित क्रांति के समय हमारा पूरा फोकस क्वांटिटी पर चला गया और क्वालिटी से दूर हो गए. आज जब शारीरिक समस्याएं आने लगी हैं, खाने में पौष्टिकता नही है...तब हमें क्वालिटी की याद आ रही है. हमारी क्वालिटी की जरूरत पूरा करने में लहरी बाई जैसे लोगों का अमूल्य योगदान होगा.
डॉ. मोनी थॉमस, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्विद्यालय के संस्थान एग्री बिजनेस मैनेजमेंट के डायरेक्टर

बीज सहेजने के अलावा माता-पिता की सेवा करती हैं लहरी बाई

बीजों को सहेजने वाली लहरी बाई ने अभी शादी नहीं की है. वो बीज सहेजने के काम के साथ माता-पिता की सेवा करती हैं. वो अपने मां बाप की 11 संतानों में जिंदा बची दो संतानों में से एक हैं. उनका जीवन बीज सहेजने के अलावा अपने माता-पिता की सेवा में गुजरता है.

लहरी बाई ने अभी शादी नहीं की है

(फोटो- क्विंट हिंदी)

लहरी बाई की मां चेती बाई कहती हैं कि उनकी बेटी लहरी उनकी बहुत सेवा करती है, साथ ही खेती किसानी कर भरण-पोषण के लिए अनाज इकट्ठा करती है.

बीज सहेजने के अलावा माता-पिता की सेवा करती हैं लहरी बाई

(फोटो- क्विंट हिंदी)

लहरी को मिलाकर हमारे 11 बच्चे थे. 5 बेटे और 6 बेटियां. लेकिन धीरे धीरे सभी खत्म हो गए. अब लहरी और एक अन्य बेटी बची है. छोटी बेटी की शादी हो चुकी है. लहरी आधा समय बीज सहेजती है और बाकी समय हमारी सेवा करती है, यही कारण है कि उसने शादी भी नही की है.
चेती बाई, लहरी बाई की मां

10 सालों से बीज को सहेजने के लिए लगातार संघर्ष करती आ रही हैं

(फोटो- क्विंट हिंदी)

बता दें कि लहरी बाई पिछले 10 सालों से बीज को सहेजने के लिए लगातार संघर्ष करती आ रही हैं. वो जिस गांव में जाती हैं वहां की उन्नत किस्म के बीज लेकर अपने जंगल मे उगाती हैं. लहरी बाई की जिला प्रशासन व प्रदेश सरकार से यही मांग है कि बेवर खेती कर लिए उन्हें जमीन का पट्टा दिया जाए ताकि वो इन पारंपरिक बीजों को और बेहतर ढंग से सहेज पाएं और उनको ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा पाएं.

लहरी बाई के बीज बैंक पहुंचा कृषि विभाग

डिंडोरी कृषि विभाग की नवनियुक्त प्रभारी उप संचालक अभिलाषा चौरसिया बेवर बीज बैंक को जानने और समझने के लिए ग्राम सिलपिढी पहुंची. इस दौरान लहरी बाई ने बीज बैंक में मौजूद तमाम किस्म के उन्नत बीज के बारे में जानकारी दी साथ ही जंगल जाकर लगाए गए पौधों को भी दिखाया.

कृषि विभाग की प्रभारी उप संचालक अभिलाषा चौरसिया ने कहा कि

लहरी बाई ने बेवर खेती के अलग-अलग बीजों को रखा हुआ है, जिनमें उन्होंने लघु धान्य फसलों और अन्य फसलों के बीजों को बचाकर रखा हुआ है. इसके साथ ही फसलों के चलते जंगलों को बचाया हुआ है.

उन्होंने आगे कहा कि अब कृषि विभाग जिन अलग-अलग प्राइवेट संस्थाओं के साथ एमओयू साइन किया है उनके जरिए लहरी बाई के बीज को और आगे बढ़ाएंगे, जिससे ज्यादा लोगों तक ये पहुंच पाए. लोगों की हेल्थ को लेकर कृषि विभाग हेल्दी और पोष्टिक पौधों का चयन करेगा, जिससे उसका फायदा लोगों को मिल सके.

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