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आज भारत में ऐसे गांव विरले ही देखने मिलेंगे जहां हाइब्रिड बीजों की दुकान न मिले. या फिर इन्ही दुकानों पर या इनसे सटे दुकानों पर इन बीजों को जिंदा रखने वाले और इंसानों के लिए घातक कीटनाशक न मिले. बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बीच डैम तोड़ते ये हाइब्रिड बीज किसानों को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की लहरी बाई भारत की उम्मीद बनकर उभर रही हैं. बैगा आदिवासी समुदाय की 27 साल की लहरी बाई ने बिना किसी की मदद के अपना बीज बैंक तैयार किया है.
एक तरफ जब देश में बीज को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है, खेतों में कीटनाशक पीने वाले बीजों से खेती की जा रही हो और इन्ही बीजों और उनमे लगने वाले कीटनाशक बेचकर जब प्राइवेट कंपनियां करोड़ों के मुनाफे में हैं.
लगभग 25 गांव में देसी बीज पहुंचाने वाली लहरी बाई कहती हैं कि उनके पुरखे सदियों तक जिंदा रहे और यही अनाज खाकर जिंदा रहे, इसलिए वो बीज बैंक बना रही हैं.
आजादी के बाद लगभग 70 के दशक में बाजारों से देसी बीज गायब होने लगे थे. हरित क्रांति की शुरुआत हुई और समूचा किसान वर्ग नए बीज, बढ़ी हुई उपज की ओर खिंचा चला गया. भारत के बीज बाजार पर प्राईवेट कंपनियों का बोलबाला हो गया. लेकिन ये बढ़ी हुई उपज वाले बीज अपने साथ कई समस्याएं भी लेकर आए. इन बीजों को ज्यादा उर्वरक यानी कि DAP और यूरिया लगता था, पानी ज्यादा लगता था और मानसून आधारित भारत की खेती प्रणाली खराब होती गई. हालात ऐसे हुए कि इन हाइब्रिड बीजों के कारण देश में कीटनाशक का अरबों रुपए का व्यापार खड़ा हो गया.
गांव कनेक्शन की एक रिपोर्ट में पत्रकार अरविंद शुक्ला लिखते हैं कि हाइब्रिड बीजों के आने के बाद मोनसेंटे इंडिया, सिंजैंटा इंडिया लिमिटे, बायर क्रॉप साइंस और पायनियर हाईब्रिड इंटनेशनल इंक जैसी कंपनियां बीज सेक्टर में करोड़ों रुपए का निवेश कर अरबों रुपए कमा रही हैं.
हालांकि बीते कुछ वर्षों में पारंपरिक और ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी की जैविक खेती पर देश का ध्यान बढ़ा है. पढ़े-लिखे लोगों के कुछ हिस्से को आर्गेनिक, कीटनाशक रहित अनाज पसंद आ रहे हैं, लेकिन 1970 के बाद से पैदावार बढ़ाने और पेट भरने में व्यस्त देश के किसानों के पास क्या अब पुराणी पद्धति से खेती करने के लिए बीज बचे हैं?
लहरी बाई के बीज बैंक में 28 से ज्यादा पौष्टिक बीज उपलब्ध हैं. उनके मिट्टी और खपड़ों से बने घर में तीन कमरे हैं. एक कमरे में लहरी बाई का परिवार रहता है, दूसरे में घर के अन्य सामान और तीसरे में सामुदायिक बेवर बीज बैंक हैं, जिसमें तरह-तरह के बीज उपलब्ध है.
बड़ी-बड़ी मिट्टी की कोठी (अनाज रखने का बड़ा बर्तन) बनाकर लहरी बाई ने अलग-अलग बीजों को इसमें सहेज कर रखा है, ताकि लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके और इनपर हर बीज का नाम लिखा हुआ है.
लहरी बाई के पास सहेजे हुए बीजों में कई तरह के बीच शामिल हैं.
कांग की चार प्रजाति- भुरसा कांग,सफेद कलकी कांग,लाल कलकी कांग,करिया कलकी कांग.
सलहार की तीन प्रजाति- बैगा सलहार,काटा सलहार ,ऐंठी सलहार.
कोदो की प्रजाति- बड़े कोदो,लदरी कोदो,बहेरी कोदो,छोटी कोदो.
मढ़िया की प्रजाति चावर मढ़िया,लाल मढ़िया, गोद पारी मढ़िया, मरामुठ मढ़िया.
सांभा की प्रजाति- भालू सांभा, कुशवा सांभा, छिदरी सांभा.
कुटकी की प्रजाति - बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाहि कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया बीज.
दलहनी फसल - बिदरी, रवास, झुंझुरु, सुतरु, हिरवा, बैगा राहर के बीज.
डिंडोरी जिले के तीन विकासखंडों समनापुर, बजाग और करंजिया के गांवों में लहरी बाई ने बेवर बीज बांटे गए हैं.
लहरी बाई लोन के एक मॉडल पर काम करती हैं. गांव-गांव जाकर बीजों के बारे में लोगों को बताने और फिर खेती करने के लिए बीजों को लोन पर देती हैं. उत्पादन के बाद बीज की लोन वाली मात्रा से थोड़ा ज्यादा वापस ले लेती हैं, ताकि बीज और ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके.
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्विद्यालय के संस्थान एग्री बिजनेस मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ. मोनी थॉमस ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि लहरी बाई का काम इस वक्त कृषि क्षेत्र का सबसे जरूरी काम है और इससे आने वाली कई पीढ़ियों को फायदा मिलेगा.
बीजों को सहेजने वाली लहरी बाई ने अभी शादी नहीं की है. वो बीज सहेजने के काम के साथ माता-पिता की सेवा करती हैं. वो अपने मां बाप की 11 संतानों में जिंदा बची दो संतानों में से एक हैं. उनका जीवन बीज सहेजने के अलावा अपने माता-पिता की सेवा में गुजरता है.
लहरी बाई की मां चेती बाई कहती हैं कि उनकी बेटी लहरी उनकी बहुत सेवा करती है, साथ ही खेती किसानी कर भरण-पोषण के लिए अनाज इकट्ठा करती है.
बता दें कि लहरी बाई पिछले 10 सालों से बीज को सहेजने के लिए लगातार संघर्ष करती आ रही हैं. वो जिस गांव में जाती हैं वहां की उन्नत किस्म के बीज लेकर अपने जंगल मे उगाती हैं. लहरी बाई की जिला प्रशासन व प्रदेश सरकार से यही मांग है कि बेवर खेती कर लिए उन्हें जमीन का पट्टा दिया जाए ताकि वो इन पारंपरिक बीजों को और बेहतर ढंग से सहेज पाएं और उनको ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा पाएं.
डिंडोरी कृषि विभाग की नवनियुक्त प्रभारी उप संचालक अभिलाषा चौरसिया बेवर बीज बैंक को जानने और समझने के लिए ग्राम सिलपिढी पहुंची. इस दौरान लहरी बाई ने बीज बैंक में मौजूद तमाम किस्म के उन्नत बीज के बारे में जानकारी दी साथ ही जंगल जाकर लगाए गए पौधों को भी दिखाया.
कृषि विभाग की प्रभारी उप संचालक अभिलाषा चौरसिया ने कहा कि
उन्होंने आगे कहा कि अब कृषि विभाग जिन अलग-अलग प्राइवेट संस्थाओं के साथ एमओयू साइन किया है उनके जरिए लहरी बाई के बीज को और आगे बढ़ाएंगे, जिससे ज्यादा लोगों तक ये पहुंच पाए. लोगों की हेल्थ को लेकर कृषि विभाग हेल्दी और पोष्टिक पौधों का चयन करेगा, जिससे उसका फायदा लोगों को मिल सके.
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