Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कभी आरक्षण का विरोध करने वाला मराठा समुदाय सड़कों पर क्यों है?

कभी आरक्षण का विरोध करने वाला मराठा समुदाय सड़कों पर क्यों है?

महाराष्ट्र की कुल आबादी में एक तिहाई मराठाओं की है.

मयंक मिश्रा
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(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट)
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(फोटो: श्रुति माथुर/क्विंट)

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मराठा आरक्षण आंदोलन को दो शब्दों में समझिए- रिलेटिव डेप्रिवेशन.

इसका मतलब है ऐसी सामूहिक भावना जिसमें लगता है कि हम पहले की तुलना में पिछड़ गए हैं और दूसरे की तुलना में भी पिछड़ गए हैं.

महाराष्ट्र के इतिहास में एक बड़ी दुश्मनी रही है- ब्राह्मणों और मराठाओं के बीच. सालों पहले ब्राह्मणों का बोलबाला था. लेकिन 1920 के बाद से यह बदलने लगा. और राज्य बनने के बाद से तो मराठाओं के सामने किसी और ग्रुप की चुनौती ही नहीं बची. साठ के दशक से अब तक हर विधानसभा में कम से कम 40% भागीदारी मराठाओं की रही है. और राज्य के 16 मुख्यमंत्रियों में गैर मराठाओं को आप उंगली पर गिन सकते हैं.

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इसके अलावा चाहे शुगर कोऑपरेटिव हों, कोऑपरेटिव बैंक या फिर प्राइवेट शिक्षण संस्थानों का स्वामित्व इन सारे क्षेत्रों में मराठाओं की तूती बोलती रही है. इस समुदाय ने 80 के दशक में ओबीसी आरक्षण का पुरजोर विरोध किया था. अब यह ग्रुप ओबीसी का हिस्सा होकर खुद आरक्षण का फायदा उठाना चाहता है.

दो बातें समझनी होंगी. महाराष्ट्र की कुल आबादी में एक तिहाई मराठाओं की है. लेकिन इस समुदाय में एक क्रीमी लेयर है—प्रभावशाली नेता, शुगर फैक्ट्री चलाने वाले, मेडिकल कॉलेज के मालिक, कोऑपरेटिव्स बैंक्स कंट्रोल करने वाले और बड़े किसान.

लेकिन बड़ा तबका छोटे और मार्जिनल किसानों का है. 2014 के सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक करीब 20 परसेंट मराठा परिवार भूमिहीन है और 15% के पास 3 एकड़ से कम जमीन की मिल्कियत है. सिर्फ 3% किसान परिवार ऐसे हैं जिन्हें संपन्न कहा जा सकता है.

एक तो छोटी किसानी और उसपर से खेती से होने वाली आमदनी में लगातार गिरावट. एक रिसर्च पेपर के मुताबिक अस्सी के दशक के किसानों की औसत आमदनी में सालाना 3 % की बढ़ोतरी हो रही थी, नब्बे के दशक में इस बढ़ोतरी की रफ्तार 2 % से कम हो गई. 2004 के बाद कुछ सालों तक आमदनी बढ़ने की रफ्तार में तेजी आई. लेकिन 2011-12 के बाद से तंगहाली तेजी से बढ़ी है और आमदनी बढ़ने की रफ्तार 1 % के आसपास रह गई है.

अब सोचिए कि साल दर साल अगर आमदनी नहीं बढ़ती है तो कितनी हताशा होती है. मराठाओं के साथ ही कुछ ऐसा ही हो रहा है. इसीलिए वो सड़कों पर आ गए हैं, अपनी मांग को हर हाल में मनवाने की कोशिश में लगे हैं.

उफान पर मराठा आरक्षण आंदोलन (फोटो: Twitter/@neetakolhatkar)

आंदोलन अभी इतना तेज क्यों हुआ?

गरीबी तो सालों पुरानी कहानी है. शायद अब तक शांत रहे इसके पीछे एक vicarious pleasure वाली साइकोलॉजी थे. लगता था कि अपने समुदाय वाले सत्ता में हैं दिन तो बदलेंगे ही. राज्य के मुख्यमंत्री और दर्जनों मंत्री मराठा समुदाय के हैं ही. प्रतिद्वंदियों का राजनीतिक सत्ता में नामोनिशान नहीं.

2014 में विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी भी गई और मंत्रिमंडल में मराठाओं की संख्या में भारी कमी. अब लग रहा कि राजनीतिक सत्ता भी गई. तो डेप्रिवेशन चुभने लगा है. अब सबकुछ ठीक होता नहीं दिख रहा है. अब आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.

ध्यान रहे कि महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में मराठाओं की संख्या 50 परसेंट हुआ करती थी. पिछली सरकार में भी यही हाल था. मुख्यमंत्री भी मराठा. फिलहाल मुख्यमंत्री गैर मराठा और मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी करीब 15%. ऐसे में रिजर्वेशन के लिए आंदोलन अपनी खो रही हैसियत को पाने की तलाश है.

मयंक की बात का एक और एपिसोड: देश में सारे चुनाव एक साथ कराने की बात इसलिए हजम नहीं होती...

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Published: 03 Aug 2018,12:58 PM IST

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