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वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज
कैमरापर्सन- शिव कुमार मौर्या
इंग्लिश में एक कहावत है-
One who wears the crown, bears the crown.
हिंदी में कहें तो,
जिसने मुकुट पहना, उसे बोझ पड़ता है सहना.
शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आजकल इस कहावत का मतलब बखूबी समझ रहे होंगे. खासतौर पर इसलिए भी, क्योंकि सीएम की कुर्सी पर बैठने से पहले उन्हें किसी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने का कोई तजुर्बा नहीं है.
महीने भर चली भारी उठापटक के बाद शिवसैनिक उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल तो गई लेकिन ये नई जिम्मेदारी उनके सामने चुनौतियों का नया पहाड़ भी लेकर आई है. उद्धव जानते हैं कि पिता बाल ठाकरे की तरह रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने और सिस्टम का हिस्सा बनकर फैसले लेने में काफी फर्क है. इसलिए सीएम की शपथ से पहले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं की एक बैठक में उन्होंने विनम्रता से कहा भी कि, ‘मुख्यमंत्री की कुर्सी में बहुत कीलें होती हैं.’
आइये देखते हैं कि सत्ता की फिसलन भरी डगर पर उद्धव ठाकरे के कहां-कहां डगमगाने का डर होगा?
शपथ लेने के फौरन बाद की अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में उद्धव ‘सरकार’ ने किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला नहीं लिया लेकिन साझा सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में जिस तरह ‘तत्काल’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है उससे साफ है कि उनकी सरकार पर किसान कर्ज माफी को जल्द से जल्द लागू करने का दबाव होगा.
मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन का क्या होगा?
देवेंद्र फडणवीस सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे शिवसेना नेता दीपक केसरकर ने कहा है कि नई सरकार के लिए बुलेट ट्रेन से ज्यादा किसानों की समस्या अहम है. जमीन अधिग्रहण को लेकर किसान भी बुलेट ट्रेन का विरोध कर रहे हैं. तो क्या जापान सरकार के सहयोग से बनने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय प्रोजेक्ट, बुलेट ट्रेन के भविष्य पर शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार में काले बादल छा गए हैं?
फडणवीस सरकार के दौरान मुंबई के 6 मैट्रो कॉरिडोर समेत करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट निर्माणाधीन थे. इन सभी को जारी रखना नई सरकार की चुनौती होगी. वैसे भी ठाकरे की पार्टी का आधार शहरी वोटर है और मुंबई में सड़क और दूसरी व्यवस्थाओं को लेकर शिवसेना की अगुवाई वाली बीएमसी की छवि खराब है. ऐसे में 2022 में बीएमसी का चुनाव जीतने और नई सरकार की छवि को बनाए रखने के लिए उद्धव सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खास ध्यान देना होगा.
अक्टूबर 2019 में उत्तरी मुंबई की आरे कॉलोनी के जंगलों में पेड़ों की कटाई को लेकर खासा बवाल मचा था. ये पेड़ मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट के एक पार्किंग शेड के लिए काटे जाने थे. पेड़ कटाई के विरोध में उतरे लोगों के एक ग्रुप की कमान शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने संभाली थी.
अब जबकि खुद जूनियर ठाकरे और शिवसेना ही आरे में पेड़ कटाई का विरोध कर रही थी तो अब उनके सरकार में आने के बाद क्या मेट्रो को अपना रास्ता बदलना पड़ेगा?
क्या रत्नागिरी रिफानरी और पेट्रो-कैमिकल लिमिटेड का 60 मिलियन टन क्षमता वाला नानर रिफाइनरी प्रोजेक्ट गया ठंडे बस्ते में? युवा सेना प्रमुख आदित्य ठाकरे ने नानर रिफाइनरी परियोजना का खुला विरोध किया था जिसके बाद 3 लाख करोड़ की लागत वाली परियोजना रद्द कर दी गई थी.
हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उस वक्त के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने परियोजना को फिर से शुरु करने के संकेत दिए और तीन सरकारी तेल कंपनियों समेत दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी सउदी अरामको के साथ एमओयू साइन किए. लेकिन शिवसेना के रुख को देखते हुए अब इस परियोजना को ठंडे बस्ते में गया ही समझिए.
महाराष्ट्र पुलिस का भीमा कोरेगांव केस याद है आपको? पुणे के पास भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने साल 2018 में कई लेफ्ट-विंग एक्टिविस्ट की गिरफ्तारियां की थीं जिसका कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पुरजोर विरोध किया था. अब कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार में है और महाराष्ट्र पुलिस सरकार के तहत आती है. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि भीमा कोरेगांव केस को महाराष्ट्र की नई सरकार किस तरह से आगे बढ़ाएगी?
उद्धव ठाकरे अपनी पहली ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘सेक्युलर’ शब्द को लेकर पूछे गए एक सवाल पर उखड़ गए. यानी ये शब्द बार-बार उनके सामने आएगा. एनसीपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में ‘संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों’ को बनाए रखने का दावा करने वाले उद्धव ठाकरे के लिए बाल ठाकरे की हिंदुत्व वाली छवि और विरासत को बचाए रखना भी चुनौती होगी.
साथ ही जिस बीजेपी से करीब 25-30 साल पुराना नाता तोड़कर शिवसेना ने सूबे में सरकार बनाई है उसी बीजेपी की सरकार केंद्र में है. तो केंद्र की मोदी सरकार के साथ तालमेल भी उद्धव ठाकरे का कड़ा इम्तिहान होगा.
यानी एक ही डंडे में लगे तीन पार्टियों के झंडे फिलहाल तो भले ही सत्ता की बयार में लहरा रहे हों लेकिन प्रशासनिक फैसलों की आंधी में इन्हें बचाए रखने के लिए उद्धव ठाकरे को कड़ी मशक्कत करनी होगी.
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