Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उद्धव ने सीएम का ताज है पहना तो बोझ पड़ेगा सहना- ये हैं चुनौतियां?

उद्धव ने सीएम का ताज है पहना तो बोझ पड़ेगा सहना- ये हैं चुनौतियां?

आरे तो रुक गया, बुलेट ट्रेन का क्या होगा?

नीरज गुप्ता
वीडियो
Published:
महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे के सामने कई चुनौतियां हैं
i
महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे के सामने कई चुनौतियां हैं
(फोटो ग्राफिक्स: आर्णिका काला/द क्विंट)

advertisement

वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज

कैमरापर्सन- शिव कुमार मौर्या

इंग्लिश में एक कहावत है-

One who wears the crown, bears the crown.

हिंदी में कहें तो,

जिसने मुकुट पहना, उसे बोझ पड़ता है सहना.

शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे आजकल इस कहावत का मतलब बखूबी समझ रहे होंगे. खासतौर पर इसलिए भी, क्योंकि सीएम की कुर्सी पर बैठने से पहले उन्हें किसी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने का कोई तजुर्बा नहीं है.

कथा जोर गरम है कि...

महीने भर चली भारी उठापटक के बाद शिवसैनिक उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल तो गई लेकिन ये नई जिम्मेदारी उनके सामने चुनौतियों का नया पहाड़ भी लेकर आई है. उद्धव जानते हैं कि पिता बाल ठाकरे की तरह रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने और सिस्टम का हिस्सा बनकर फैसले लेने में काफी फर्क है. इसलिए सीएम की शपथ से पहले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं की एक बैठक में उन्होंने विनम्रता से कहा भी कि, ‘मुख्यमंत्री की कुर्सी में बहुत कीलें होती हैं.’

आइये देखते हैं कि सत्ता की फिसलन भरी डगर पर उद्धव ठाकरे के कहां-कहां डगमगाने का डर होगा?

चुनौती नंबर 1- किसानों का कर्ज

शपथ लेने के फौरन बाद की अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में उद्धव ‘सरकार’ ने किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला नहीं लिया लेकिन साझा सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में जिस तरह ‘तत्काल’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है उससे साफ है कि उनकी सरकार पर किसान कर्ज माफी को जल्द से जल्द लागू करने का दबाव होगा.

शुरुआती अंदाज के मुताबिक इसके लिए सरकार को अतिरिक्त 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. ये आसान नहीं है क्योंकि सरकारी खजाने पर 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. जानकार पूछ रहे हैं कि ये पैसा आएगा कहां से?
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चुनौती नंबर 2- बुलेट ट्रेन

मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन का क्या होगा?

देवेंद्र फडणवीस सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे शिवसेना नेता दीपक केसरकर ने कहा है कि नई सरकार के लिए बुलेट ट्रेन से ज्यादा किसानों की समस्या अहम है. जमीन अधिग्रहण को लेकर किसान भी बुलेट ट्रेन का विरोध कर रहे हैं. तो क्या जापान सरकार के सहयोग से बनने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय प्रोजेक्ट, बुलेट ट्रेन के भविष्य पर शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार में काले बादल छा गए हैं?

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का विरोध करते हुए साल 2018 में 1000 से ज्यादा किसानों ने गुजरात हाई कोर्ट में हलफनामे दिए थे(फोटो ग्राफिक्स: द क्विंट)

चुनौती नंबर 3- इन्फ्रास्ट्रक्चर

फडणवीस सरकार के दौरान मुंबई के 6 मैट्रो कॉरिडोर समेत करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट निर्माणाधीन थे. इन सभी को जारी रखना नई सरकार की चुनौती होगी. वैसे भी ठाकरे की पार्टी का आधार शहरी वोटर है और मुंबई में सड़क और दूसरी व्यवस्थाओं को लेकर शिवसेना की अगुवाई वाली बीएमसी की छवि खराब है. ऐसे में 2022 में बीएमसी का चुनाव जीतने और नई सरकार की छवि को बनाए रखने के लिए उद्धव सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खास ध्यान देना होगा.

चुनौती नंबर 4- आरे मेट्रो शेड

अक्टूबर 2019 में उत्तरी मुंबई की आरे कॉलोनी के जंगलों में पेड़ों की कटाई को लेकर खासा बवाल मचा था. ये पेड़ मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट के एक पार्किंग शेड के लिए काटे जाने थे. पेड़ कटाई के विरोध में उतरे लोगों के एक ग्रुप की कमान शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने संभाली थी.

चिपको आंदोलन की तर्ज पर आरे के पेड़ों को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे थे लोग(फाइल फोटो: पीटीआई)

अब जबकि खुद जूनियर ठाकरे और शिवसेना ही आरे में पेड़ कटाई का विरोध कर रही थी तो अब उनके सरकार में आने के बाद क्या मेट्रो को अपना रास्ता बदलना पड़ेगा?

चुनौती नंबर 5- नानर रिफाइनरी प्रोजेक्ट

क्या रत्नागिरी रिफानरी और पेट्रो-कैमिकल लिमिटेड का 60 मिलियन टन क्षमता वाला नानर रिफाइनरी प्रोजेक्ट गया ठंडे बस्ते में? युवा सेना प्रमुख आदित्य ठाकरे ने नानर रिफाइनरी परियोजना का खुला विरोध किया था जिसके बाद 3 लाख करोड़ की लागत वाली परियोजना रद्द कर दी गई थी.

हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उस वक्त के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने परियोजना को फिर से शुरु करने के संकेत दिए और तीन सरकारी तेल कंपनियों समेत दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी सउदी अरामको के साथ एमओयू साइन किए. लेकिन शिवसेना के रुख को देखते हुए अब इस परियोजना को ठंडे बस्ते में गया ही समझिए.

चुनौती नंबर 6- भीमा कोरेगांव केस

महाराष्ट्र पुलिस का भीमा कोरेगांव केस याद है आपको? पुणे के पास भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने साल 2018 में कई लेफ्ट-विंग एक्टिविस्ट की गिरफ्तारियां की थीं जिसका कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पुरजोर विरोध किया था. अब कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार में है और महाराष्ट्र पुलिस सरकार के तहत आती है. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि भीमा कोरेगांव केस को महाराष्ट्र की नई सरकार किस तरह से आगे बढ़ाएगी?

चुनौती नंबर 7- हिंदुत्व की छवि

उद्धव ठाकरे अपनी पहली ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘सेक्युलर’ शब्द को लेकर पूछे गए एक सवाल पर उखड़ गए. यानी ये शब्द बार-बार उनके सामने आएगा. एनसीपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में ‘संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों’ को बनाए रखने का दावा करने वाले उद्धव ठाकरे के लिए बाल ठाकरे की हिंदुत्व वाली छवि और विरासत को बचाए रखना भी चुनौती होगी.

शपथ ग्रहण से पहले पिता बाल ठाकरे को श्रद्धांजली देते उद्धव ठाकरे(फोटो: पीटीआई)
अब ये बात तो बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं कि महाराष्ट्र की नई सरकार परस्पर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों की सरकार है. ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए सहयोगियों को साथ लेकर चलना आसान नहीं होगा.

साथ ही जिस बीजेपी से करीब 25-30 साल पुराना नाता तोड़कर शिवसेना ने सूबे में सरकार बनाई है उसी बीजेपी की सरकार केंद्र में है. तो केंद्र की मोदी सरकार के साथ तालमेल भी उद्धव ठाकरे का कड़ा इम्तिहान होगा.

यानी एक ही डंडे में लगे तीन पार्टियों के झंडे फिलहाल तो भले ही सत्ता की बयार में लहरा रहे हों लेकिन प्रशासनिक फैसलों की आंधी में इन्हें बचाए रखने के लिए उद्धव ठाकरे को कड़ी मशक्कत करनी होगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT