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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम/संदीप सुमन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले कांग्रेस पार्टी में भगदड़ मची है. फिल्म अभिनेत्री से नेता बनी उर्मिला मातोंडकर और मुंबई कांग्रेस के पूर्व कृपाशंकर सिंह के बाद अब पूर्व मंत्री हर्षवर्धन पाटिल ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया है. विखे भाई पाटिल समेत करीब एक दर्जन नेता पिछले 6 महीने पार्टी छोड़ चुके हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? क्यों नए से लेकर पुराने कांग्रेस नेता पार्टी छोड़ रहे हैं?
लोकसभा चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन इसकी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है. काडर ही नहीं नेताओं का भी मनोबल गिरा हुआ है. डर है कि कहीं विधानसभा चुनावों में भी यही हाल न हो जाए. मुख्य धारा में बने रहने के लिए नेता सत्ताधारी पार्टियों बीजेपी-शिवसेना की शरण में जा रहे हैं.
उर्मिला मातोंडकर ने लोकसभा चुनाव में हार को लेकर तब के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा को एक चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि जिन स्थानीय नेताओं और नेताओं ने चुनाव में ठीक से काम नहीं किया, उनपर एक्शन लिया जाए.
कहा जा रहा है कि चूंकि पार्टी ने उनकी शिकायत पर कोई एक्शन नहीं लिया, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया. अब इसमें कितनी सच्चाई है हम नहीं कह सकते. लेकिन एक बात तो तय है कि उर्मिला की चिट्ठी ने पार्टी में अंदरूनी कलह को उजागर कर दिया है.
जाहिर है महाराष्ट्र में असंतुष्टों को रोकने में नेतृत्व नाकाम साबित हो रहा है और नाकाम भी क्यों न हो, पार्टी में राष्ट्रीय से लेकर लोकल लेवल तक लीडरशिप को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. लंबे समय के इंतजार के बाद राष्ट्रीय स्तर पर सोनिया गांधी ने कमान संभाली भी तो कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर, लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था.
मुंबई में लोकसभा चुनाव से पहले संजय निरुपम ने और चुनाव के बाद मिलिंद देवड़ा ने इस्तीफा दिया. एकनाथ गायकवाड़ उसके बाद काफी समय तक कार्यकारी अध्यक्ष रहे और अभी हाल ही में उनकी सीट पक्की हुई.
जाहिर है कप्तान के बिना मुंबई में कांग्रेस की टीम बिखर सी गई. दूसरी तरफ बीजेपी-शिवसेना हर रोज ताल ठोक रही है. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि अगर दरवाजे खोल दें तो कांग्रेस-एनसीपी खाली हो जाएगी, यही बात महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने क्विंट से खास बातचीत में कही थी.
कुल मिलाकर कांग्रेस के नेताओं को खुला विकल्प दिया गया है. दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए संकट ये है कि जिस वक्त पार्टी को विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटना चाहिए था, उस वक्त वो तोड़फोड़ से जूझ रही है. जाहिर है चुनाव नतीजों में इसका असर देखने को मिल सकता है.
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