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तबलीगी जमात का ‘कोरोना जिहाद’ या मीडिया ने फैलाई ‘नफरत की बीमारी’?

कोर्ट ने तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज से जुड़े 36 विदेशी जमातियों को बरी कर दिया है.

शादाब मोइज़ी
वीडियो
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तबलीगी जमात पर मीडिया की कवरेज 
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तबलीगी जमात पर मीडिया की कवरेज 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा

अस्सलामु अलैकुम वा रमतुल्लाही वा बरकातुहु, आज हम आपको सिखाएंगे कोरोना बम बनाना, कोरोना जिहाद करना, तबलीग करेंगे, वायरस फैलाएंगे.. रुकिए, रुकिए , कुछ महीनों पहले जब कोरोना भारत में पांव पसार रहा था, तब मीडिया ने आपके सामने ऐसी ही तस्वीर बनाई थी न.. टोपी, दाढ़ी वाला कोरोना फैला रहा है, जैसे मानो कोरोना उसके काले बैग में हो.. हां वही काला बैग, जिसके बारे में मीडिया कुछ साल पहले तक आपको बता रहा था कि कैसे मुसलमान काले बैग में बम लेकर जाते हैं. और फिर उर्दू में लिखा लेटर उनके बैग में रखा होता है, जिसमें बम बनाने की जानकारी होती है. ये वाला झूठ पुराना हो गया तो अब कोरोना जिहाद की कहानी बनाई गई.

खैर अब मीडिया और नफरत फैलाने वालों का बनाया हुआ ख्याली पुलाव खराब हो रहा है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि एक बार फिर कोर्ट ने तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज से जुड़े 36 विदेशी जमातियों को बरी कर दिया है. सभी 36 जमातियों पर कोविड महामारी एक्ट के उल्लंघन का आरोप था. लेकिन पुलिस अदालत में कुछ भी साबित नहीं कर पाई.

मतलब ये हुआ कि जिस तबलीगी जमात के लोगों को बदनाम करने की कोशिश की गई थी वो झूठ पर आधारित थी. इसलिए हर झूठे प्रचार और नफरत फैलाने वालों से हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

चलिए कोर्ट ने क्या कहा उससे पहले आपको देश के बड़े पत्रकार और न्यूज चैनल होने का दावा करने वालों के खोखले दावों से मिलवाते हैं.

(फोटो: स्क्रीन शॉट)
(फोटो: स्क्रीन शॉट)
(फोटो: स्क्रीन शॉट)

ये तो सिर्फ कुछ ट्विट्स हैं.. जिसमें बिना किसी सबूत बिना किसी सच्चाई सिर्फ और सिर्फ नफरत फैलाने का काम किया गया. 'निजामुद्दीन का विलेन कौन?', 'जमात से कोरोना फैलने की इनसाइड स्टोरी' जैसी बिना सर पैर की हेडलाइन गिनावाने बैठें तो कई घंटे लग जाएंगे.

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जब तबलीगी जमात पर कोरोना फैलाने का इलजाम लगाया जा रहा था तब तेजी के साथ एक धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाने की भी दर्जनों खबरें आई थीं. यहां तक कि दिल्ली की आम आदमी वाली सरकार ने तो तबलीगी जमात के जुड़े कोरोना पॉजिटिव लोगों की जानकारी अलग से बताना शुरू किया, लेकिन जब दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने इसपर आपत्ति जताई तब जमात से जुड़े लोगों के लिए हेल्थ बुलेटिन में 'स्पेशल ऑपरेशन' लिखना शुरू किया गया. लेकिन अब ऐसे ही 'स्पेशल' सोचने वालों के लिए दिल्ली की एक अदालत ने कुछ कहा है.

दरअसल, दिल्ली के साकेत कोर्ट में 36 विदेशी नागरिकों पर महामारी एक्ट के उल्लंघन का आरोप था. फैसले की सुनवाई करते हुए चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने 36 विदेशी नागरिकों को सभी आरोपों से बरी कर दिया.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा-

“उचित रूप से संभावित” है कि उनमें से कोई भी प्रासंगिक अवधि में मर्कज में मौजूद नहीं था और उन्हें अलग-अलग जगहों से उठाया गया ताकि उन पर दुर्भावना से मुकदमा चलाया जा सके.”

पहले भी कोर्ट ने सरकार और मीडिया को लगाई थी फटकार

ये पहली बार नहीं है जब कोर्ट ने जमात से जुड़े केस में पुलिस और सरकार के थ्योरी को फेल बताया हो. इससे पहले अगस्त के महीने में 29 विदेशियों के खिलाफ FIR रद्द करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि इन सभी को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि महामारी के समय सरकार बलि का बकरा ढूंढती है और जमात में शामिल इन विदेशी लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ है.

कोर्ट ने सिर्फ पुलिस ही नहीं बल्कि मीडिया की कवरेज की भी आलोचना की और इसे प्रोपगेंडा बताया था. कोर्ट ने कहा था, “इन विदेशियों को वर्चुअली हैरेस किया गया.”

सबसे खास बात ये है कि जिस तेजी और आक्रामकता के साथ मीडिया ने एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने वाली खबरें चलाई थीं, अब जब एक-एक कर अदालतों में वो झूठ बेनकाब हो रहा है तब न प्राइम टाइम में बहस हो रही है न हेडलाइन बन रही है और न ही कोई सरकार स्पेशल कॉलम बना रही है. इसलिए किसी के झूठ, नफरत और फरेब पर सवार होने से पहले सच की सीट बेल्ट लगाइए, क्योंकि बदनाम करने वाली गाड़ी सच के सामने पंकचर ही होती है. और हो सके तो अपने आसपास झूठ फैलाने वालों से पूछिए जनाब ऐसे कैसे?

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