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NaBFID: इंफ्रा पर अरबों खर्च है कबूल, लेकिन गलतियां न जाइए भूल

आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं

राघव बहल
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आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं
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आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं
(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)

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जब सरकार ने एकदम नया डेवलपमेंट फायनांस इंस्टीट्यूशन (DFI) का ऐलान किया गया, जिसे नेशनल बैंक फॉर फायनांसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (NaBFID) कहा गया तो मेरे मुंह से आह निकली, IDBI, IFCI, ICICI, IDFC, और IIFCL की असफल कड़ी में एक और नाम जोड़ा गया.

अब मुझे गलत नहीं समझिए. इसका उद्देश्य बहुत अच्छा है. अल्ट्रा लॉन्ग टर्म फायनांसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए एक सक्षम माहौल बनाने के लिए भारत को हर जरूरी कदम उठाने चाहिए. देश ने सड़कों, डीप-सी पोर्ट, पावर प्रोजेक्ट्स और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) में 7400 बड़ी परियोजनाएं की शृंखला जिसमें बहुत कुछ शामिल है,

पर अगले पांच सालों में 111 लाख करोड़ (1.5 ट्रिलियन डॉलर) निवेश करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इससे हमारी अर्थव्यवस्था को मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने के लिए जिस रफ्तार की जरूरत है उसमें मदद मिल सकती है. मेरी लड़ाई महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि DFI संस्थाओं की असफल विरासत और उसके डिजाइन से है.

मेरी लड़ाई महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि DFI संस्थाओं की असफल विरासत और उसके डिजाइन से है.

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DFI संस्थाओं को रियायत ने ऐतिहासिक तौर पर अक्षमता और भ्रष्टाचार को पैदा किया है

आपको 1960 की बात बताते हैं जब हमारी अर्थव्यवस्था सरकार के “नियंत्रण में” थी. देश की बचत का इस्तेमाल करने के लिए कई DFI को काफी ज्यादा रियायतें दी गईं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लॉन्ग टर्म फंड्स के लिए अलग रास्ता खोलने के अलावा उनके बॉन्ड्स को कानूनी रूप दिया.

ऐसे दौर में जब भारतीय कंपनियों की पहुंच विदेशी पूंजी तक नहीं थी तब DFI इंटरनेशनल एजेंसी से सॉफ्ट लोन ले सकती थीं. जैसा कि अनुमान था, 'दिल्ली से फोन कॉल', जान-पहचान वालों को फाइनेंस, गलतियं, बेतहाशा खर्च, इन जैसे हजारों कारणों से 1990 का दशक आते-आते इनकी बैलेंस शीट इनके नियंत्रण से बाहर हो गई. इसके साथ ही DFI को बंद कर दिया गया या उन्हें कमर्शियल बैंक में बदल दिया गया

आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं (या डरावनी हैं, इस बात पर निर्भर करती हैं कि मुद्दे पर आप किस तरफ हैं:

  • 12 गुना का अनिवार्य लाभ लेने के खतरे से लड़ने के लिए इक्विटी में 20,000 करोड़ के साथ अनुदान में 5,000 करोड़, क्योंकि NaBFID को तीन साल के अंदर 3.25 लाख करोड़ के एसेट बुक तक पहुंचने की जरूरत है.
  • केंद्र सरकार विदेशी देनदारियों को मात्र 0.1% कमीशन पर गारंटी देगी, जिससे बैलेंस शीट में नकदी का प्रवाह लगातार सुनिश्चित होता रहे. इतना ही नहीं, इस उदारता के ऊपर से एक और रियायत यानि कि सभी हेजिंग कॉस्ट की भरपाई-वाह, ये 5-6% ब्याज सब्सिडी के समान है.
  • आरबीआई अपने कर्ज देने के विशेष रास्ते को फिर से शुरू करेगी, इस बार शॉर्ट टर्म कोलैटरल के बदले नकद देने के लिए यानी मांग के अनुसार वर्किग कैपिटल उपलब्ध कराना
  • और ये है सोने पर सुहागा-लॉन्ग टर्म कैपिटल उपलब्ध कराने वालों को 10 साल के लिए इनकम टैक्स की छूट, जिससे घरेलू और संस्थागत बचत का लगातार प्रवाह बना रहे
  • अंत में बैड लोन का फैसला लेने वाले NaBFID के सीनियर मैनेजमेंट से सवाल करने के लिए कोई भी जांच एजेंसी नहीं, जबतक कि केंद्र सरकार इसके लिए विशेष तौर पर मंज़ूरी नहीं दे

‘जबर्दस्त’ रियायत में छुपी मुसीबत

एक बार फिर मुझे इतने बड़े स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर को फायनांस करने की बड़ी महत्वाकांक्षा अच्छी लगती है. लेकिन मैं NaBFID से घिरे इन तीन छुपे संकट से डरा हुआ हूं:

  • “नेशन बिल्डिंग” यानि “देश निर्माण” की नैतिक भव्यता का निर्माण. एक बड़े बिजनेस न्यूजपेपर के एडिटोरियल पेज के इस वाक्य को देखिए: “बड़े सरकारी काम और विकास परियोजनाएं शॉर्ट और मीडियम टर्म में शायद पक्के तौर फायनेंसियल रेट ऑफ रिटर्न नहीं दिला सकें लेकिन इनका देश के लिए कई गुना प्रभाव और ‘इकनॉमिक रिटर्न’ है”. भगवान के लिए ऐसे अच्छे स्वयंसिद्ध शब्दों का इस्तेमाल NaBFID के बैलेंस शीट पर नुकसान के लिए नहीं करना चाहिए. हम कह सकते हैं कि इसमें “NPA” (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) से भी पहले सड़ांध आ जाएगी. इसलिए, NaBFID को हर निवेश पर मुनाफ़ा/अच्छा रिटर्न हासिल करना ही चाहिए. अगर कोई सामाजिक हित साधना ही हो और उससे कोई नुक़सान हो तो वो NaBFID के मत्थे मढ़ने के बजाय सरकार को साफ़ पारदर्शी सब्सिडी देनी चाहिए ( याद कीजिए कि सरकार ने कैसे अपना नुक़सान FCI के खाते में दिखा दिया था)
  • ये सुखद है कि सरकार का 100 फीसदी स्वामित्व घटकर “आखिरकार” 26 % रह जाएगा जिसमें कई साल लग सकते हैं. इसलिए दुर्भाग्य से NaBFID अपने महत्वपूर्ण, कार्य संस्कृति बनाने वाले सालों में एक सरकारी उद्यम के सभी रंग-ढंग अपना लेगा. दिल्ली से फोन कॉल, जान-पहचान वालों को लोन, बेतहाशा खर्च..अफसोस ये सब हो सकता है.
  • चूंकि NaBFID को शुरुआत से आधारभूत संरचना की जरूरत होगी और लोगों की भर्ती करनी होगी, इसलिए पूरी तरह से बेकार में दोबारा काम करना होगा. वित्तीय क्षेत्र में कई अच्छी निजी/सरकारी संस्थाओं ने परियोजना जोखिम/क्षमता के मूल्यांकन में अच्छी क्षमता हासिल कर ली है. उन्होंने हेजिंग रिस्क का एक अच्छा मॉडल तैयार कर लिया है. उनके पास दफ्तर की जगह, कंप्यूटर, सर्वेयर, क्वांट मॉडलर, कानून से जुड़े लोग, वित्तीय समझ रखने वाले लोग, आप जिनके भी नाम लीजिए, उनके पास सब हैं. तो, एक और संस्था क्यों बनाई जाए जिसके लिए दफ्तर तैयार करने पर फिर से खर्च हो. इससे भी बुरा, सबसे ज्यादा खर्च, कीमत में हेर फेर, ज्यादा बिल बनाना यानि भ्रष्टाचार के सभी तरीके इन्हीं “प्रोजेक्ट एसेसमेंट” ऑपरेशन के दौरान होते हैं-इसलिए भाग्य को एक बार और क्यों जांचें परखें?

लीक से हटकर सोचना: NaBFID के लिए एक नई संरचना

तो, पचास अरब डॉलर (3.25 लाख करोड़ से ज्यादा) का सवाल ये है:

क्या NaBFID के लिए कोई वैकल्पिक संरचना है, जिसमें ज्यादा बरबादी भी न हो और न ही वित्तीय हेरा फेरी को लेकर असुरक्षा हो?

हां, एक अल्ट्रा-लॉन्ग-टर्म बॉन्ड एक्सचेंज के लिए दो तरफा बोली, गहराई और नकदी देने के लिए एक आधुनिक, कम संपत्ति वाला सुपर स्पेशलिस्ट मार्केट मेकर के तौर पर. ये हर हाल में जीतने वाली स्थिति होगी:

  • 3.25 लाख करोड़ की शुरुआती पूंजी के साथ लिस्ट की गई बॉन्ड्स की प्राइस कोट के बीच खरीद-बिक्री के लिए नैनोसेकेंड एल्गोरिदमिक ट्रेडिंग मॉडल का इस्तेमाल करते हुए, हमारा नया DFI हर दिन दो तरफा लाखों-करोड़ों नकदी को आकर्षित कर सकता है.
  • वास्तिवक उधार देने, गिरवी रखने, निगरानी और जब्ती के मुश्किल और संभावित गड़बड़ काम में इसे अपने हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं होगी. ये काम निजी कंपनियों के विशेषज्ञों के पास होगा.
  • इसका रिस्क एसेसमेंट अधिकार केवल उन कंपनियों तक सीमित होगा जो सूचीबद्ध हैं और जिनका कारोबार एक्सचेंज में होता है. इसे अलग-अलग तरह के उद्योगों में, जहां हर एक में उच्च विशेषज्ञता वाले लोगों की जरूरत होती है, हजारों करोड़ के ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट की अंधी गलियों और खतरे से जूझने की आवश्यकता नहीं होगी. ये काम पूरी तरह से योग्य इनवेस्टमेट शॉप्स के लिए छोड़ दिया जाएगा.
  • इसे कई बड़े शहरों में बड़ी इमारतों, बड़ी संख्या में कंप्यूटरों और बहुत ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत नहीं होगी.. सिर्फ बॉन्ड ट्रेडिंग की समझ रखने वाले गुरिल्ला सेना की जरूरत होगी.

ओह, मैं कितना चाहता था कि हमारे नीति निर्माता 1960 के दशक से बदनाम संरचनाओं पर वापस जाने के बजाए, बिल्कुल नए आइडिया के साथ अपनी महत्वाकांझा को टॉप-अप कर लें.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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