Home Voices Opinion कोविड टीके पर घटाना है डर,बचाना है पैसा, तो चाहिए वैक्सीन पासपोर्ट
कोविड टीके पर घटाना है डर,बचाना है पैसा, तो चाहिए वैक्सीन पासपोर्ट
मैं शर्त लगा सकता हूं कि “वैक्सीन पासपोर्ट”, हिचकिचाहट दूर करने में बच्चन कॉलर ट्यून से ज्यादा असरदार साबित होगा.
राघव बहल
नजरिया
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द क्विंट के को-फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ राघव बहल
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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मैंने मार्च की शुरुआत में वैक्सीन की पहली डोज ली. इससे उत्साहित होकर मैंने सरकार से निवेदन किया कि “मुझे वैक्सीन पासपोर्ट दीजिए क्योंकि अब मेरे शरीर में एंटीबॉडी आ गई है.” हैरानी की बात है कि कुछ पाठकों ने पलटकर मुझे फटकार लगाई “आधा-अधूरा जानकार होने के लिए, क्योंकि वैक्सीनेशन के बाद भी आप कोविड 19 संक्रमित हो सकते हैं/या बिना लक्षण वाले होकर दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं.” लेकिन मुझे ये पहले से पता था. मैं ये नहीं कह रहा था कि “मुझे अब पाबंदियों से मुक्त कर दो, मुझे मास्क पहनने की या सोशल डिस्टेंसिंग या किसी सुरक्षा प्रोटोकॉल की जरूरत नहीं है.”
“वैक्सीन पासपोर्ट” क्या है, सरल शब्दों में परिभाषा
फिर भी, चूंकि जो मैं कहना चाह रहा था उसे मेरे पाठकों ने गलत समझा, तो गलती मेरी थी. इसलिए मुझे एक बार फिर से आम बोलचाल की भाषा में, क्रमवार फिर से समझाने की कोशिश करने दीजिए:
“वैक्सीन पासपोर्ट” क्या है? ये बस एक कानूनी अनुमति है जो इसके धारक को कुछ करने जैसे यात्रा या कुछ लोगों के बीच शारीरिक तौर पर मौजूद रहने, या कहें एक रेस्टोरेंट या स्टेडियम में जाने की मंजूरी देता है क्योंकि वो एक मेडिकल प्रक्रिया से गुजरा है, जिसके कारण उसके कोविड 19 से संक्रमित होने या संक्रमण फैलाने का खतरा काफी कम हो गया है.
बेशक, “वैक्सीन पासपोर्ट” को लेकर बहस काफी बढ़ गई है- एक सुरक्षित बैकएंड सर्वर के रियल टाइम ऐप एक्सेस्ड क्यूआर-कोडेड डेटा के जरिए वैक्सीन कैसे दी जाए, जिससे इस बात की भी जांच हो सके कि पासपोर्ट धारक को स्टैंडर्ड इंटरनेशनल प्रोटोकॉल का पालन करते हुए वैक्सीन दी गई है या नहीं- जो इसे जितना ये जटिल और डरावना है, उससे भी ज्यादा बनाता है! मूल रूप से वैक्सीन पासपोर्ट सिर्फ एक कानूनी मंजूरी देता है.
इस मायने में, एक RT-PCR टेस्ट क्या है? जब नियम ये कहते हैं कि “आपको मुंबई या एक मॉल या एक फिल्म की शूटिंग में जाने के पहले नेगेटिव रिपोर्ट देना जरूरी है” आप पहले से ही नेगेटिव RT-PCR टेस्ट रिपोर्ट को एक “वैक्सीन पासपोर्ट” की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
यही नहीं हम लोग करीब एक साल से “नेगेटिव RT-PCR वैक्सीन रिपोर्ट पासपोर्ट” जारी और इस्तेमाल कर रहे हैं. इसलिए, इसे खोज मानकर परेशान न हों जिसकी वजह से (मुझ जैसे) अति आशावादी लोगों की अधकचरी जानकारी का जोश वायरस को फिर हवा दे सकता है.
नहीं मैडम, “वैक्सीन पासपोर्ट” कोविड 19 वायरस की तरह ही करीब-करीब एक साल पुराना है, इसलिए अनजान से डरने की जरूरत नहीं है.
“वैक्सीन पासपोर्ट” भेदभाव नहीं करता
लेकिन, “वैक्सीन पासपोर्ट” जारी करने को लेकर दो मुख्य आपत्तियां हैं. पहला, लोगों का कहना है कि ये भेदभाव करने वाला है, क्योंकि आप शायद उन लोगों को मजबूर कर रहे होंगे जो मेडिकली अनफिट हो सकते हैं या वैक्सीन विरोधी हैं या अनिवार्य वैक्सीनेशन का विरोध करते हैं. फिर से, नहीं मैडम, ये पूरी तरह से गलत है.
जो भी वैक्सीन लेना नहीं चाहता या लेने के योग्य नहीं है, वो नेगेटिव RT-PCR टेस्ट के जरिए पासपोर्ट हासिल कर सकता है, इसलिए किसी को किसी चीज से वंचित नहीं रखा जा रहा है.
दूसरी आपत्ति ये है कि “वैक्सीन लेने के बाद भी आप वायरस कैरियर हो सकते हैं.” ये अव्यवहारिक रूप से काल्पनिक है. आखिरकार, आप RT-PCR टेस्ट कराने और मुंबई एयरपोर्ट पर उतरने के बीच 72 घंटों में भी संक्रमण का शिकार हो सकते हैं. अगर ये “कम संभावना की घटना” के तौर पर स्वीकार्य है, तब इसी तरह हमें ये स्वीकार करना चाहिए कि “आप को टीका लग चुका है, लेकिन इसके बावजूद संक्रमित हो सकते हैं” की स्थिति की संभावना भी काफी कम है, यानी जोखिम की एक सीमा जिसके साथ रहने के लिए हमें तैयार होना चाहिए.
ऐसे लोग जिन्होंने नियमों के मुताबिक वैक्सीन की डोज (मौजूदा समय में तय अंतराल पर कोविशील्ड और कोवैक्सीन की दो डोज) ले ली है, उनके ऑटोमैटिक “वैक्सीन पासपोर्ट” की मैं इतनी वकालत क्यों कर रहा हूं? खासकर ऐसे समय में जब देश पर कोरोना की दूसरी लहर का खतरा है? क्योंकि इसका एक भी नकारात्मक पहलू नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू हैं. एक नजर डालें तो:
10 करोड़ लोगों के टीकाकरण से हम कुछ दिन ही दूर हैं- जिसका मतलब ये है कि करीब-करीब हर चार संभावित वयस्कों में से एक पूरी तरह से कोरोना से सुरक्षित हो जाएगा. इसके अलावा, “शुरुआत में वैक्सीन लेने वाले” इन लोगों का बड़ा हिस्सा शहरी इलाके से हो सकता है, जिनके पास पर्याप्त बचत और खर्च करने के लिए पैसे होंगे.
अब कल्पना कीजिए कि इनका दसवां हिस्सा विदेश यात्रा करना चाहता है. मौजूदा नियमों के मुताबिक, उन्हें देश में कम से कम दो RT-PCR टेस्ट कराने होंगे जिसके लिए करीब दो करोड़ टेस्ट करने होंगे. 1,000 प्रति टेस्ट की दर इस पर 2000 करोड़ का खर्च आएगा. ये कितना अनावश्यक और पूरी तरह से बेकार है!
अब ये भी सोचिए कि इस आबादी का पांचवां हिस्सा या दो करोड़ लोग शायद देश के अंदर ही अपने बच्चों/रिश्तेदारों के पास जाना चाहते हों. इसके लिए 8 करोड़ टेस्ट करने होंगे यानी और 8,000 करोड़ की बर्बादी.
और एक मॉल या थिएटर या लॉकडाउन से पीड़ित नागरिकों के पास एक पूरी तरह से भुला दिया गया वीकेंड आउटिंग किसे अच्छा नहीं लगेगा? इसलिए, 8 करोड़ और टेस्ट और 8000 करोड़ बर्बाद करने के लिए तैयार हो जाइए.
अंत में, मैं शर्त लगा सकता हूं कि “वैक्सीन पासपोर्ट” हिचकिचाहट दूर करने में बच्चन-खान-कोहली-तापसी/कंगना के जिंगल से ज्यादा असरदार साबित होगी. क्योंकि हर बार 1,000 रुपये देकर कौन टेस्ट के लिए अपनी नाक को तकलीफ देगा, जब उन्हें बार-बार होने वाले इस कष्ट से दो डोज में ही मुक्ति मिल जाएगी.
वैक्सीन पासपोर्ट कोविड 19 टीकाकरण के लिए बड़े संसाधन की बचत/मुक्त कराएगा
तो, आप मेरा मतलब समझे, या नहीं?
ऊपर हमारे काफी वास्तविक चित्रण में, करीब 18,000 करोड़ के एक जैसे, बेकार खर्च को बचाया जा सकता है अगर हम नेगेटिव RT-PCR टेस्ट को वैक्सीन सर्टिफिकेट के तौर पर अनुमति देते हैं. इसे पूरे कोविड 19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए निर्धारित किए गए केंद्र सरकार के 35,000 करोड़ के बजट के साथ रख कर देखें? क्या अतिरिक्त संसाधनों को गैर जरूरी RT-PCR टेस्ट करने पर बर्बाद करने के बजाए वैक्सीन प्रोडक्शन पर नहीं लगाना चाहिए?
याद रखिए, जब 40 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हो जाएगा, ये बर्बादी चार गुना हो जाएगी, जिसमें 72,000 करोड़ रुपये बरबाद हो चुके होंगे, जब तक कि हम वैक्सीन पासपोर्ट को दोगुनी रफ्तार से अनुमति नहीं देते.
इजरायल, यूरोपीय यूनियन, थाइलैंड, न्यूयॉर्क, जापान... ये सभी तेजी से “वैक्सीन पासपोर्ट” जारी कर रहे हैं. कमऑन इंडिया, वायरस पर काबू पाने की इस अहम लड़ाई में आप इतना धीरे नहीं चल सकते.
पोस्टस्क्रिप्ट: ऐसा न हो कि मैं फिर से गलत समझा जाऊं, मैं फिर से दोहराता हूं. सभी “वैक्सीन पासपोर्ट” धारकों को मास्क पहनना और ईमानदारी से सभी सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन करना जरूरी है.
(राघव बहल, क्विंटिलियन मीडिया के को-फाउंडर और चेयरमैन हैं, जिसमें क्विंट हिंदी भी शामिल है. राघव ने तीन किताबें भी लिखी हैं-'सुपरपावर?: दि अमेजिंग रेस बिटवीन चाइनाज हेयर एंड इंडियाज टॉरटॉइस', "सुपर इकनॉमीज: अमेरिका, इंडिया, चाइना एंड द फ्यूचर ऑफ द वर्ल्ड" और "सुपर सेंचुरी: व्हाट इंडिया मस्ट डू टू राइज बाइ 2050")
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