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गांधी @150: मिलिए महात्मा से पहले वाले ‘साधारण’ इंसान से

वो इंसान जिसने चोरी भी की, झूठ भी बोला लेकिन सब पर जीत हासिल की

बादशा रे
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गांधी का कुबूलनामा: मिलिये महात्मा से पहले वाले ‘साधारण’ इंसान से
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गांधी का कुबूलनामा: मिलिये महात्मा से पहले वाले ‘साधारण’ इंसान से
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बापू, राष्ट्रपिता, एक नेता, स्‍वप्‍नदर्शी. ये गांधी हैं, जिन्‍हें हम सब जानते हैं. लेकिन, गांधीजी का जीवन केवल इतना ही नहीं. एक शख्‍स, जिसने शाकाहार का प्रचार किया, जबकि पूरी दुनिया में मांसाहार का जोर था. लंबे समय तक उन्होंने खादी बनाई, पर एक समय उन्होंने पत्नी और बच्चों को यूरोपियन स्टाइल के कपड़े पहनने को मजबूर भी किया था. वह आदमी जिसने चोरी की, जिसने झूठ बोला. चलिए मिलते हैं महात्मा के पीछे के इस आदमी से.

महात्मा: जिन्‍होंने महिलाओं का सशक्‍त किया

अगर मुझे एकपत्‍नी व्रत का पालन करना चाहिए, तो पत्‍नी को भी एकपति व्रत का पालन करना चाहिए. मैंने अपने आप से कहा. इस विचार के कारण मैं ईष्‍यालु पति बन गया. व्रत का ‘पालन करना चाहिए’ में से मैं ‘पालन करवाना चाहिए’ के विचार पर पहुंचा. और अगर पालन करवाना है, तो मुझे पत्‍नी की निगरानी रखनी चाहिए. मेरे लिए पत्‍नी की पवित्रता में शंका करने का कोई कारण नहीं था, पर ईर्ष्‍या कारण क्‍यों देखने लगी?
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

62 साल पुरानी, कस्तूरबा और गांधी की शादी, उनके दिल में एक दूसरे के प्रति सम्मान को दिखाता है.

महात्मा: ब्रह्मचर्य के पक्षधर

माता-पिता के प्रति मेरी अपार भक्‍त‍ि थी, उसके लिए मैं सब कुछ छोड़ सकता था. हालांकि सेवा के समय भी मेरा मन विषय को छोड़ नहीं सकता था. यह सेवा में अक्षम्‍य त्रुटि थी. इसी से मैंने अपने को एकपत्‍नी व्रत का पालन करने वाला मानते हुए भी विषयान्‍ध माना है. इससे मुक्‍त होने में मुझे बहुत समय लगा. मुक्‍त होने से पहले कई धर्मसंकट सहने पड़े.
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

गांधी का अपनी इच्छा से लिया गया ब्रह्मचर्य का प्रण कुछ भी झेल सकता था. उनके अपने प्रयोग भी.

महात्मा: खादी बनाकर आत्मसम्मान सिखाया

उस समय मैं मानता था कि सभ्‍य माने जाने के लिए हमारा बाहरी आचार-व्‍यवहार यूरोपियनों से मिलता-जुलता होना चाहिए. ऐसा करने से ही लोगों पर प्रभाव पड़ता है और प्रभाव पड़े बिना देशसेवा नहीं हो सकती है. इस कारण पत्‍नी और बच्‍चों की पोशाक मैंने ही पसंद की. आखिर उनका परिचय काठियावाड़ी बनियों के बच्‍चों के रूप में कराना मुझे कैसे अच्‍छा लगता?
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

'आधे नंगे फकीर' के नाम से पहचाने जाने वाले गांधी ने सूट-बूट वाले अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया.

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महात्मा: शाकाहार के प्रचारक

सच्‍चाई और प्रतिज्ञा की खातिर मुझे मांस से दूर रहना था. लेकिन उसी समय कामना की थी कि हर किसी को मांसाहारी होना चाहिए. किसी दिन पूरी तरह मुक्‍त होकर, सबके सामने मांस खोकर दूसरों को मांसाहार के लिए प्रेरित करना चाहता था. बाद में मेरी ये ध्‍ाारणा बदल गई.
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

गांधी का स्वैच्छिक शाकाहार उनके अहिंसावाद का ही एक रूप था.

महात्मा: जो कभी गलत नहीं कर सकते थे

यह चोरी मेरे मांसाहारी भाई के सोने के कड़े के टुकड़े की थी. उन पर करीब 25 रुपये का कर्ज हो गया था. उसकी अदायगी के बारे में हम दोनों भाई सोच रहे थे. मेरे भाई के हाथ में सोने का ठोस कड़ा था. उसमें से एक तोला सोना काट लेना मुश्किल न था. कड़ा कटा, कर्ज अदा हुआ.
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

गलतियां हर किसी से हो सकती हैं लेकिन एक गांधी ही अपनी गलतियों के बारे में खुलकर बात कर सकते थे.

महात्मा: धर्म सुधारक

मैं जन्‍म से हिंदू हूं. इस धर्म का भी मुझे अधिक ज्ञान नहीं है. दूसरे धर्मों का ज्ञान भी कम ही है. मैं कहां हूं, क्‍या मानता हूं, मुझे क्‍या मानना चाहिए, ये सब मैं नहीं जानता. अपने धर्म का अध्‍ययन मैं गंभीरता से करना चाहता हूं. दूसरे धर्मों का अध्‍ययन भी यथाशक्‍त‍ि करने का मेरा इरादा है.
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

गांधी ने अपना जीवन हिंदू धर्म को सुधारने और सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने में समर्पित कर दिया.

महात्‍मा: राष्‍ट्रपिता, अपने बेटे के लिए अजनबी

मुझे अक्सर महसूस होता है कि आज बड़े बेटे में जो गंदी आदतें पड़ गई हैं वो मुझे अपनी शुरुआती जिंदगी के अनुशासनहीन और बेतरतीब दिनों की याद दिलाती हैं. मुझे लगता है वो वक्त आधी अधूरी जानकारी और मौज मस्ती के दिनों का था. करीब करीब उन्हीं दिनों मेरा बड़ा बेटा भी होश संभाल रहा था, लेकिन उसने इसे मेरी अनुभवहीनता या भोग विलास वाले दिन मानने से इनकार कर दिया. बल्कि इसे ठीक उलट उसे लगने लगा कि ये मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त था. इसके बाद लाइफ जो बदलाव आए वो ज्ञान प्राप्त होने की गलतफहमी का नतीजा था.
महात्मा गांधी की आत्मकथा, ‘सत्य के प्रयोग’ से

गांधी ने अपने बच्चों की तरफदारी कभी नहीं की. उनके लिए सारे देशवासी उनके अपने बच्चों की तरह थे.

ये भी पढ़ें- महात्मा और बाल अपराधी: गांधी के सत्य के प्रयोग

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Published: 02 Oct 2018,11:57 AM IST

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