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वीडियो एडिटर- अभिषेक शर्मा
मुजफ्फरपुर की लीची अफवाह की कड़वाहट का शिकार हो गई है. मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 130 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन इन मौतों के लिए कुछ लोगों ने लीची को जिम्मेदार ठहराया. जैसे ही ये खबर फैली कि लीची की वजह से चमकी बुखार हो रहा है मानो लीची किसान, मजदूर और व्यापारी पर आफत सी आ गई. बाजार में लोगों ने लीची खरीदना बंद कर दिया. जिससे लीची के कारोबार को तगड़ा झटका लगा है. क्विंट ने मुजफ्फरपुर के उन गांवों का दौरा किया है जहां लीची फलती है.
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह बताते हैं, “पिछले साल भारत सरकार की बौद्धिक संपदा विभाग के द्वारा शाही लीची को बिहार का पेटेंट माना गया है. शाही लीची बिहार की शान है, गौरव है. उस लीची को कुछ नेताओं और पत्रकारों ने बदनाम किया है. बिहार में 32 हजार हेक्टेयर जमीन पर लीची के पेड़ लगे हैं. एक लाख परिवार इससे जुड़े हैं. 200 करोड़ रुपए तो मुजफ्फरपुर जिले में आते हैं. अफवाह की वजह से लीची से जुड़े लोगों को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.”
लीची बगान के मालिक बिंदेश्वर प्रसाद अपने बगान की तरफ दिखाते हुए कहते हैं,
एक और व्यापारी बताते हैं कि लगभग 30 साल से वो लीची बगान से खरीदकर बाजार में बेचते हैं. ये पहली बार है जब इतना बड़ा घाटा हुआ है. “हम लोगों की लगभग 2000 पेटी लीची टूट नहीं पाई. उससे 10 लाख रुपए से ऊपर का नुकसान हुआ है. कई लोगों ने अफवाह उड़ा दिया कि लीची खाने से बच्चों की मौत हुई है. अगर लीची खाने से मौत होती तो हमारे घर के बच्चे भी मरते? देशभर में लीची जाती है, वहां के बच्चे भी मरते? लेकिन सिर्फ मुजफ्फरपुर के बच्चे ही क्यों मरे? सरकार को ये पता लगाना चाहिए.”
बच्चा प्रसाद सिंह सरकार से मांग करते हुए कहते हैं,
बता दें कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने किया साफ कर दिया है कि लीची की वजह से इंसेफेलाइटिस नहीं हो रहा है. ना ही बच्चों की मौत की वजह लीची है.
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