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नाच-गाना-सेक्स से हटकर रेडलाइट एरिया वालों की कहानी कोई सुनता है?

क्या नेता इस रेड लाइट एरिया में वोट मांगने आते हैं? क्या यहां के लोग वोट करते हैं? 

शादाब मोइज़ी
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बिहार के मुजफ्फरपुर के बीच शहर में बसे एक रेड लाइट एरिया की कहानी.
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बिहार के मुजफ्फरपुर के बीच शहर में बसे एक रेड लाइट एरिया की कहानी.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- पूर्णेन्दु प्रीतम

"चतुर्भुज स्थान के बच्चों को जल्दी स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता है. कहते हैं लोग उस गंदे माहौल से आई है. इसलिए एडमिशन नहीं होगा. कहते हैं कि चतुर्भुज स्थान के बच्चों की वजह से स्कूल के बाकी बच्चे खराब हो जाएंगे." ये बातें बिहार के मुजफ्फरपुर के बीच शहर में बसे एक रेड लाइट एरिया में रहने वाली बेबी कहती हैं.

बेबी (बदला हुआ नाम) को टोकते हुए आयशा (बदला हुआ नाम) गुस्से में कहती हैं कि जो भी लोग कहते हैं वो उनकी सोच है.

इस जगह को लोग गलत समझते हैं. यहां डांस करने वाली भी हैं, गाना गाने वाली भी हैं. अच्छे-अच्छे घर की लड़की सेक्स वर्कर होती है तो कोइ कुछ नहीं कहता, उन जगहों की लड़की को लोग खराब नहीं समझते हैं क्योंकि उनकी सोसाइटी अलग है. उनका रहन सहन अलग है. लेकिन यहां का नाम सुनते ही लोग परेशान हो जाते हैं.
आयशा (बदला हुआ नाम)
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नेता चुनावों के दौरान कई तरह के मुद्दों पर चर्चा करते हैं, लोग बहस करते हैं. लेकिन इन इलाकों में रहने वाली महिलाओं के बारे में बात कम ही होती है. न ही इनकी जिंदगी कभी चुनावी मुद्दा बन पाती है. क्या इन लोगों के लिए चुनाव नई उम्मीदें लेकर आता है? यही जानने के लिए क्विंट पहुंचा मुगलकालीन इतिहास वाले रेड लाइट एरिया 'चतुर्भुज स्‍थान'. चतुर्भुज स्‍थान देश के सबसे पुराने रेड लाइट एरिया में से एक है.

क्या नेता यहां वोट मांगने आते हैं?

इस सवाल के दो जवाब मिले. पहला जवाब- नेता वोट मांगने के लिए इस इलाके में आते हैं. दूसरा- यहां नेता नहीं आते हैं बल्कि अपने लोगों को भेजते हैं. वोट मांगते हैं.

शबाना (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि जब उन लोगों को वोट लेना होता है तब ये इलाका अच्छा लगता है लेकिन जब काम कराना होता है तो कहते हैं, बदनाम इलाका है.

“अलग स्कूल और नौकरी का वादा कभी नहीं हुआ पूरा”

बेबी कहती हैं कि नेताओं ने कई वादे किए कि यहां के बच्चों के लिए अलग स्कूल होगा, नौकरी देंगे लेकिन कुछ नहीं हुआ.

हम लोग अपनी लड़कियों को पढ़ाते हैं. यहां से अलग जगह, नाम बदलकर रहती हैं लड़कियां. टॉप पर पढ़ती हैं. लेकिन असल नाम और पता बता नहीं सकते हैं, क्योंकि नाम बताने पर लोग गलत नजर से देखते हैं. अगर किसी को मालूम चल गया तो लोगों को नजरिया बदल जाएगा. फिर लड़कियां थक कर इसी जगह वापस आ जाती हैं.

शमां (बदला हुआ नाम) कहती हैं, "हम लोग चाहते हैं जो हम हैं वो हम लोगों के बच्चे न बनें. बच्चों को अच्छी सोसाइटी मिले. पढ़ लिखकर कुछ बने. मुझे कोई अगर गलत नजर से देखता है तो देखे, उसकी नजर है. लेकिन हम ये चाहते हैं कि जो हमारा बच्चा है उसको इज्जत मिले.

"2014 में मोदी जी वोट दिया था, लेकिन कुछ नहीं बदला"

5 साल से इस इलाके में रह रही 26 साल की खुशबू (बदला हुआ नाम) बताती हैं, मैं 5 सालों से यहां हूं. बहुत सारी परेशानी होती है. सरकार आम लोगों को बिना घूस के नौकरी देती नहीं है. ग्रेजुएट होना चाहिए या घूस दीजिए. बहुत सी तकलीफ हैं. फैमिली है तो फैमिली को चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है.

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में वोट दिया था तो खुशबू गुस्से में बात को खत्म करते हुए कहती हैं कि पिछली बार नरेंद्र मोदी को वोट दिया था. कमल के निशान पर. इस बार मैं शायद सोचूंगी. सोचूंगी क्या, मैं नहीं दूंगी इस बार वोट. क्योंकि उनके आने से हमारी लाइफ तो कुछ बदली है नहीं. जैसा कल था आज भी वैसा ही है.

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