Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी Vs राहुल की जंग में बीते 6 महीने का हाल समझ गए तो सब समझ गए

मोदी Vs राहुल की जंग में बीते 6 महीने का हाल समझ गए तो सब समझ गए

2019 का मुकाबला अब इकतरफा बिल्कुल नहीं होगा

राघव बहल
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साफ नीयत, सही विकास से नुकसान ?

क्या आपने प्रधानमंत्री मोदी का "साफ नीयत, सही विकास" वाला कैंपेन देखा है? इसमें गांव के दमकते चेहरों पर खूबसूरत मुस्कान तैरती नजर आती है, जो घर, बेहतरीन शिक्षा, बिजली, बैंक खाते और धुआं रहित रसोई गैस सिलेंडर मुहैया कराने के लिए मोदी को धन्यवाद दे रहे हैं. सच कहें, तो ये कैंपेन वाजपेयी के "इंडिया शाइनिंग" वाले कैंपेन से भी ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है. यहां भारत के गरीब चमक उठे हैं ! क्या हुआ अगर खेतों से आमदनी नहीं हो रही, नौकरियां नहीं हैं, अपराध बढ़ते जा रहे हैं, नस्ली हिंसा हो रही है, सामाजिक दरारें बढ़ रही हैं, बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं, आबादी में महिलाओं का अनुपात घटता जा रहा है...इन सब बातों पर ध्यान मत दीजिए, सिर्फ एक दूसरे का हाथ पकड़कर घेरा बनाइए और एक हरे-भरे खूबसूरत गांव में रिंगा-रिंगा-रोजेज गाइए. क्या कहा?

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आपको ईको चैंबर याद आ रहा है?

ये बात बिलकुल साफ है कि देश का राजनीतिक संतुलन बदल रहा है, हालांकि भूकंप का रिक्टर स्केल पर दर्ज होना अभी बाकी है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के 48 महीनों के कार्यकाल को अगर तीन बिलकुल अलग-अलग दौर में बांटकर देखें, तो उथल-पुथल साफ नजर आएगी.

पहला दौर : मई 2014 से 2017 तक, करीब 36 महीनों का वक्त ऐसा था, जब हैरान करने वाली ऊर्जा से भरे, बातूनी और हर जगह नजर आने वाले नेता के प्रति लोगों का लगाव लगातार बढ़ रहा था. इसकी चरम परिणति पहले नोटबंदी और फिर उत्तर प्रदेश की जबरदस्त जीत में देखने को मिली.

दूसरा दौर : जून से दिसंबर 2017 तक करीब 6 महीने का वो दौर, जब लोकप्रियता का ऊपर की ओर चढ़ते ग्राफ में ठहराव आ गया और शंकाओं के बादल घिरने लगे.

तीसरा दौर : दिसंबर 2017 से मई 2018 के वो 6 महीने, जब शासकों की लोकप्रियता का थमा हुआ ग्राफ, धीरे-धीरे तेज होती रफ्तार से नीचे गिरने लगा, और राहुल गांधी की कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय नेताओं के ग्राफ साफ-साफ ऊपर की ओर बढ़ते नजर आने लगे.

इसी दौर में राहुल गांधी का बढ़ता ग्राफ

मैं जानता हूं कि राहुल गांधी की धज्जियां उड़ाना, बुद्धिजीवियों का फैशन बन चुका है, लेकिन मैं ये बात खुलकर कहना चाहता हूं - उन्होंने पिछले 6 महीनों में कई जोखिम भरे फैसले लिए हैं और मोदी के ग्राफ में आई गिरावट का श्रेय काफी हद तक उन्हें दिया जाना चाहिए.
यहां मैं प्रधानमंत्री की ट्रेडमार्क स्टाइल में अनुप्रास अलंकार के इस्तेमाल की छूट लेना चाहूंगा. तो ये रहे राहुल के 5S :

1. Spunk (दिलेरी) - उन्होंने खुद सामने आकर गुजरात चुनाव अभियान का पूरी ताकत से नेतृत्व करने का साहस किया और शेर को उसकी मांद में घुसकर न सिर्फ ललकारा, बल्कि उसे करीब-करीब निपटा ही डाला. उन्होंने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर महाभियोग चलाने के मामले में याचिका दाखिल करने जैसे असाधारण फैसले को हरी झंडी भी दिखाई.

2. Savvy (सूझबूझ) - राहुल ने डिजिटल वर्ल्ड में देर से कदम रखा, लेकिन अब वो मोदी को हर कदम पर मात दे रहे हैं और राजनीतिक तौर पर, “जीतने लायक 300 लोकसभा सीटों” पर खास जोर लगाने का उनका फैसला एक असरदार और व्यावहारिक रणनीति है. वो इस पुरानी और घिसी-पिटी लकीर को पीटने में नहीं फंसे कि “हमारी कांग्रेस पार्टी 130 साल पुरानी है, हम एक राष्ट्रीय दल हैं, इसलिए हम सभी 543 सीटों पर लड़ेंगे.” “2019 के सेमीफाइनल में” 50% स्ट्राइक रेट के साथ 300 सीटों पर जोर लगाना ज्यादा बेहतर रणनीति है, बजाय इसके कि अपनी ताकत को उन तमाम सीटों पर बिखेर दिया जाए, जहां अब कांग्रेस का कोई असर नहीं रह गया है.

3. Secure (निडर और आत्मविश्वास से भरे) - वो अपनी भूमिका में काफी निडर और आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं. तभी उन्होंने अमरिंदर, सिद्धू, सिद्धारमैया, शिवकुमार, कमलनाथ, गहलोत, आजाद, चांडी और दूसरे कई बड़े नेताओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और बड़े फैसले लेने का पूरा अधिकार दे रखा है.

4. Scions/stars (नेतापुत्र/सितारे) - अखिलेश, तेजस्वी, जयंत चौधरी जैसे अन्य राजनीतिक उत्तराधिकारियों और हार्दिक, जिग्नेश जैसे तमाम उभरते सितारों के साथ राहुल का तालमेल काफी बढ़िया है. अपने बुजुर्गों से विरासत में मिले राजनीतिक संबंधों की पारंपरिक कटुता और संदेह से उलट, इन युवा नेताओं के आपसी संबंध काफी सकारात्मक ऊर्जा से भरे दिखते हैं.

5. Stoop (लचीलापन) - कर्नाटक में राहुल ने खुद पीछे रहकर सरकार बनाने का महत्वपूर्ण फैसला जिस तेजी के साथ लिया, उसके बाद से वो “झुककर मैदान जीतने” की असाधारण इच्छा दिखा रहे हैं. उनका ये रुख “हम इंडियन नेशनल कांग्रेस हैं और इसलिए शासन करना हमारी नियति है” वाले सख्त और अड़ियल रवैये से काफी अलग है. यहां एक बार फिर से वो जीतने की इच्छाशक्ति दिखा रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें  फिलहाल कुछ कदम पीछे हटना पड़ रहा हो.

तो 2019 का लोकसभा संग्राम देखने के लिए तैयार हो जाइए. अब ये मुकाबला एकतरफा नहीं रहा !

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