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मोदी कैबिनेट विस्तार की चर्चा, नाराज सहयोगियों को मनाने की कोशिश!

उपचुनाव के नतीजों ने बढ़ाई BJP आलाकमान की चिंता

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में चौथे विस्तार की चर्चा सियासी गलियारों में जोरों पर है. आम चुनाव के आखिरी साल में इसे मोदी मंत्रिमंडल का आखिरी विस्तार माना जा रहा है. मंत्रिमंडल विस्तार पर इन दो मुद्दों की छाया खासतौर पर दिखेगी.

  • नाराज सहयोगी
  • 2019 का रोडमैप
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सहयोगियों की नाराजगी

हाल में हुए 11 विधानसभा और 4 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के फ्लॉप शो के बाद पार्टी के भीतर खलबली का माहौल है. कई महीनों से तीखे तेवर दिखा रही शिवसेना ने पालघर का लोकसभा चुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़ा. हालांकि बीजेपी चुनाव जीत गई लेकिन ये पहला मौका था कि एनडीए की पुरानी सहयोगी शिवसेना ने बीजेपी की टक्कर में अपना उम्मीदवार उतारा हो.

उत्तर प्रदेश के कैराना में हार के लिए योगी सरकार में मंत्री सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने योगी आदित्यनाथ को ही जिम्मेदार बता दिया.

हाल में नोटबंदी के दौरान बैंकों के कामकाज पर सवाल उठा कर जेडूयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ने की चर्चा को गरम कर दिया था.

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जेडीयू की ‘जी हुजूरी’?

विरोध की इन आवाजों ने बीजेपी आलाकमान के कान खड़े किए हैं. 19 अगस्त 2017 लालू यादव की आरजेडी से नाता तोड़कर एनडीए में शामिल हुई जेडीयू को 3 सितंबर 2017 को हुए कैबिनेट के तीसरे विस्तार में जगह नहीं मिली थी. लेकिन सहयोगियों को साधे रखने की नीति के मद्देनजर चौथे विस्तार में जेडीयू को जगह मिलने के पूरे आसार हैं.

लेकिन सवाल ये है कि नीतीश कुमार सरकार में नुमाइंदगी चाहेंगे या नहीं. उनका फैसला इस बात का स्पष्ट इशारा होगा 2019 के आम चुनाव में जेडीयू एनडीए के साथ जाना चाहता है या नहीं.

विरोध की ‘सेना’

मोदी मंत्रिमंडल में शिवसेना के अनंत गीते अकेले मंत्री हैं. हर कैबिनेट विस्तार में शिवसेना का कोटा बढ़ाने का जिक्र होता है लेकिन हो नहीं पाता. पालघर उपचुनाव के बाद तीखे तेवर दिखाते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने मुखपत्र ‘सामना’ में लिखा:

शिवसेना बीजेपी की सबसे बड़ी ‘राजनीतिक शत्रु’ है. शिवसेना का प्रखर हिन्दुत्ववाद बीजेपी के लिए अड़चन पैदा कर सकता है.
संजय राउत, सांसद, शिवसेना

पालघर जीत के बाद हालांकि बीजेपी की सौदेबाजी की ताकत बढ़ी है लेकिन फिर भी केंद्र में कोटा देकर वो शिवशेना को खुश करने की कोशिश कर सकती है.

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कौन से अहम मंत्रालय हैं खाली?

8 मार्च 2018 को टीडीपी के अशोक गजपति राजू के इस्तीफे के बाद सुरेश प्रभु को सिविल एविएशन का अतिरिक्त चार्ज दिया गया था.

अब एक ऐसे वक्त में जब सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया विनिवेश की प्रक्रिया से गुजर रही है, सिविल एविएशन में अलग मंत्रालय की जरूरत महसूस की जा रही है. चूंकि ये मंत्रालय सहयोगी कोटे का रहा है को किसी सहयोगी को ही मिल सकता है.

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को सूचना और प्रसारण मंत्रालय से हटाने के बाद उनके डिप्टी राज्यवर्धन सिंह राठौर को ही मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया गया. सरकार का प्रवक्ता होने के नाते ये मंत्रालय सहयोगी दलों को तो नहीं जा सकता लेकिन किसी को कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है.

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दूसरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत

ये बीजेपी ही है जो कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाले यूपीए को गठबंधन के मूल-मंत्र का पाठ पढ़ाया करती थी लेकिन वाजपेयी सरकार से उलट मोदी सरकार में सहयोगी सबसे ज्यादा नजरअंदाज और नाराज दिखे. चुनाव के आखिरी साल में एनडीए का सबसे पुराना सहयोगी अकाली भी आंखे तरेर रहा है. फरवरी 2018 में अकाली सांसद सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा था:

अटल बिहारी वाजपेयी जब पीएम थे तब घटक दलों को साथ लेकर चलते थे. लेकिन मोदी हमें महत्व नहीं देते.
सुखदेव सिंह ढींढसा, राज्यसभा सांसद, अकाली दल

टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू तो औपचारिक तौर पर एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं. उधर करेले पर नीम चढ़ाते हुए कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने केंद्र और राज्यों में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी महागठबंधन की बुनियाद रख दी है. ऐसे में 2019 से पहले बीजेपी कैबिनेट विस्तार के जरिये नाराज सहयोगियों को साधने और राज्यों में सोशल इंजीनियरिंग सेट करना चाहती है। इसके लिए सहयोगी दलों से बाकायदा बातचीत शुरु की जाएगी.

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पिछले फेरबदल

मोदी मंत्रिमंडल में अब तक तीन बार बड़े बदलाव हो चुके हैं.

  • पहला - 9 नवंबर, 2014
  • दूसरा - 5 जुलाई, 2016
  • तीसरा - 3 सितंबर, 2017

13 मई, 2018 को भी मंत्रिमंडल में छोटे बदलाव करते हुए स्मृति ईरानी से सूचना और प्रसारण मंत्रालय ले लिया गया था.

फिलहाल मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 78 सदस्य हैं। यह आंकड़ा 82 तक हो सकता है. यानी चार मंत्रियों की और जगह है. यूं तो पीएम मोदी मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस की बात करते रहे हैं लेकिन चुनाव का आखिरी साल है और इसमें तो काम से ज्यादा राजनीति ही होनी है.

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