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हिंदुत्व की ‘बंदूक’ से सरदार पटेल की हाईजैकिंग ना हो पाएगी

बोगस है नेहरू बनाम पटेल की बहस

नीरज गुप्ता
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Statue of Unity के जरिए पटेल को ‘अपना’ बनाने की कोशिश?
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Statue of Unity के जरिए पटेल को ‘अपना’ बनाने की कोशिश?
(फोटो ग्राफिक्स : हर्ष साहनी \द क्विंट)

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  • देश के पहले होम मिनिस्टर सरदार वल्लभभाई पटेल प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से बेहतर थे.
  • पटेल पीएम होते, तो पाकिस्तान की औकात नहीं थी कि हमारी तरफ नजर उठाकर देख पाता.
  • पटेल पीएम बनते, तो देश के हालात कुछ और होते. यानी हम सही मायने में ‘हिंदूराष्ट्र’ होते.

आजकल सोशल मीडिया पर सरदार पटेल को लेकर अलग-अलग नैरेटिव बरसाती मेंढक की तरह टर्रा रहे हैं और हमें कन्फ्यूज कर रहे हैं.

कथा जोर गरम है...

दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति यानी Statue of Unity के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल को वो सम्मान देने जा रहे हैं, जिसके वो ‘असल’ हकदार थे.

अब हम इस बात में नहीं जाएंगे कि लौह पुरुष की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा के लिए लोहा चीन से आया या इंडिया का है, लेकिन फिर भी ये बात करना जरूरी है कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले उन पटेल को अपना क्यों बनाना चाहते हैं, जिन्होंने गांधी की हत्या के बाद संघ परिवार पर प्रतिबंध लगाया था?
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सरदार पटेल ‘राजनीतिक हिंदुत्व’ के नायक?

रफीक जकारिया की किताब सरदार पटेल एंड इंडियन मुस्लिम्स के मुताबिक, पटेल ने एक बार संविधान सभा में कहा था:

अगर हमारे साथ अल्पसंख्यकों जैसा बर्ताव किया जाए, तो हमें कैसा लगेगा. ये सोचना हमारा यानी हिंदुओं का काम है, जो बहुसंख्यक हैं.
‘सरदार पटेल एंड इंडियन मुस्लिम्स’

इतिहासकार बिपिन चंद्र की किताब आजादी के बाद का भारत के मुताबिक, 1950 में पटेल ने एक भाषण में कहा था:

हम एक सेकुलर राज्य हैं. यहां हर मुसलमान को यह महसूस करना चाहिए कि वो भारत का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसके हक बराबर के हैं. अगर हम उसे ऐसा महसूस नहीं करा सकते, तो हम अपनी विरासत और देश के लायक नहीं हैं.
‘आजादी के बाद का भारत’

और ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं, जो ये साफ करते हैं कि सरदार पटेल के दिल में अल्‍पसंख्यकों के लिए कितनी जगह थी.

नेहरू Vs पटेल का हो-हल्ला

पहला प्वाइंट ये कि

‘नेहरू की बजाए पटेल प्रधानमंत्री होते, तो देश का नक्शा कुछ और होता.’

तो जनाब जान लीजिए :

देश की आजादी के वक्त यानी 15 अगस्त, 1947 को पटेल करीब 72 साल के थे और 15 दिसंबर, 1950 यानी देश के पहले आम चुनाव से पहले उनका देहांत हो चुका था.

स्तंभकार आकार पटेल ने अपने एक आर्टिकल में लिखा:

सरदार पटेल की विशालकाय मूर्ति को Statue of Unity खासतौर पर इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि उन्होंने आजादी के वक्त देशभर की रियासतों को एक करने का काम किया.

तो साहब, ये भी जान लीजिए कि जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर जैसी कुछ रियासतों को छोड़ दें, तो ज्यादातर रियासतें अंग्रेजों के रुखसत होने से पहले यानी देश की आजादी से पहले ही खुद को भारतवर्ष के झंडे तले शामिल कर चुकी थीं.

मतलब सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो 'ये' होता और उनके प्रधानमंत्री ना होने से 'वो' नहीं हुआ वाली बातें हवा-हवाई हैं.

तो कुल मिलाकर, लब्बो-लुआब ये कि 2019 के आम चुनाव से पहले हिंदुत्व और 'नेहरू बनाम पटेल' की बंदूक के बल पर सरदार पटेल की हाईजैकिंग करने की जो कोशिश हो रही है, वो कामयाब होनी मुश्किल है.

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