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कुंभ के साधु नाराज, कहा- ‘क्या इसलिए BJP के पक्ष में माला फेरी थी’

राज्य सरकार पर साधु-संतों का आरोप है कि सरकार उनके साथ नाइंसाफी है

विक्रांत दुबे
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कुंभ के साधु नाराज, कहा- ‘क्या इसलिए BJP के पक्ष में माला फेरी थी’
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कुंभ के साधु नाराज, कहा- ‘क्या इसलिए BJP के पक्ष में माला फेरी थी’
(फोटो: विक्रांत दुबे/क्विंट हिंदी)

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प्रयागराज में कुंभ की तैयारी में योगी सरकार जुट गई है. मेले के लिए राज्य सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा कर दी है. अयोध्या मसला एक बार फिर गरमाने के बाद कुंभ मेले को लेकर सरकार काफी उत्साहित लग रही है. लेकिन कई नई व्यवस्था को लेकर कुछ साधु-संतों में भारी नाराजगी है.

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वजह? कुंभ में संतों की जगह में बदलाव

जगह में बदलाव को लेकर नाराज संतों ने राज्य सरकार और मेला प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला है. ये मोर्चा वैष्णव अखाड़ा ने खोला है, उनका कहना है कि अगर उन्हें अपनी पारंपरिक जमीन वापस नहीं मिलती है तो वो कुंभ मेले का बहिष्कार करेंगे.

हम लोग संगठित होकर ये मांग कर रहे हैं कि हम 275 मुकामधारियों को खाक चौक में ही जगह मिले. अगर वहां जगह न मिले तो दूसरी जगह न दिया जाए क्योंकि दूसरी जगह पर बहुत परेशानी होगी. हमारी परंपरा को ना तोड़ा जाए, खाक चौक एक ऐसी जगह हैं जहां भूखे लोगों को जगह मिलती है, सबको आश्रय मिलता है, लोगों को मदद मिलती है
महंत जयराम दास , महामंडलेश्वर

प्रशासन की अनदेखी से निराश हैं साधु-संत

भूमि आवंटन को लेकर संतों और प्रशासन के बीच ठन गयी है. पारंपरिक जमीन खाक चौक न मिलने से संत नाराज तो हैं ही और प्रशासन की अनदेखी से संत अब खाक चौक पर कैंप लगाने के लिए अड़ गए हैं. कुंभ मेले के दौरान यहां हजारों की संख्या में संत रुकते हैं.

अगर गंगा, गऊ, संत समाज नहीं होता तो विदेशी भी हमारे भारत में नहीं आते. गंगा, तीर्थराज प्रयाग और संत समाज के कारण ही विदेशियों को यहां बुलाया जा रहा है पर कुंभ में प्राथमिकता संतों की होती है, जनता जनार्दन की होती है न कि विदेशियों की. कुंभ परंपरा को कायम करने के लिए होता है, परंपराओं को नष्ट करने के लिए नहीं.
महंत जयराम दास, महामंडलेश्वर

राज्य सरकार पर साधु-संतों का आरोप है कि इससे पहले किसी भी सरकार ने साधु-संतों का पारंपरिक स्थान नहीं बदला है. आरोप है कि बीजेपी उनके साथ नाइंसाफी कर रही है. मार्च 2017 में योगी के सीएम बनने के बाद संत समाज में खुशी की लहर दौड़ गई थी और कई आशाएं जगी थीं लेकिन वक्त के साथ-साथ कुछ मदद न मिलने पर ये आशा, निराशा में बदल रही है.

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