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उत्तराखंड चुनाव: जहां से शुरू हुआ चिपको आंदोलन, वही रैनी गांव खतरे में

असुरक्षित चिन्हित किए जाने के बावजूद रैनी के निवासियों का राज्य सरकार ने अभी तक पुनर्वास नहीं किया है

एंथनी रोजारियो
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उत्तराखंड चुनाव: जहां से शुरू हुआ चिपको आंदोलन, वही रैनी गांव खतरे में

(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

एक साल पहले फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमौली में आए प्रलय में रैनी गांव के 200 लोग बह गए थे. ये गांव ऐतिहासिक चिपको आन्दोलन फेम स्व. गौरा देवी का गांव है. लेकिन अब ये गांव धीरे-धीरे, लेकिन पक्के तौर पर डूब रहा है.

“अगर बारिश हुई तो हमारा गांव निश्चित रूप से बह जाएगा” ये कहते हुए 40 साल के प्रेम सिंह राना का गला सूख जाता है. उन्होंने उस प्रलय में अपनी मां को खो दिया था.

अपनों को खोने के बाद रैनी गांव अब खुद भी डूबने की कगार पर है. जिस पहाड़ी पर ये गांव बसा है वो 2021 की बाढ़ में ‘अस्थिर’ हो चुकी है. अब ये गांव रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है.

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नंदा देवी की पहाड़ियों में ये गांव ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना के खंडहरों के ठीक ऊपर स्थित है. यह वही प्रोजेक्ट है जो 2021 में अचानक आई बाढ़ में एक झटके में बिखर गया था.

लेकिन बाढ़ के बाद गांव को असुरक्षित चिन्हित किए जाने के बावजूद रैनी के निवासियों का राज्य सरकार पुनर्वास नहीं कर पाई है.

प्रलय का वो काला दिन

7 फरवरी 2021 की सुबह गोदंबरी देवी और उनकी 75 वर्षीय सास अमृता देवी पुल के पास अपने खेत में मौजूद थीं. मौसम साफ था और दोनों एक सरकारी योजना के तहत लगाए गए पेड़ों से पत्ते इकट्ठा करने के लिए आई थी.

उन्होंने जब अपना काम करना शुरू ही किया था, तभी गोदंबरी ने एक अजीब सी आवाज सुनी.

"अचानक, मुझे एक शोर सुनाई दिया और जब मैंने ऊपर देखा, तो मुझे ग्लेशियर से बड़े-बड़े पत्थर गिरते हुए दिखाई दिए. मैंने अपनी सास से कहा कि ग्लेशियर टूट कर नदी में आ रहा है"
गोदंबरी देवी

गोदंबरी देवी हवाओं की रफतार में अपने गांव की ओर बह गई थी लेकिन उनकी सास वहां से नहीं हिल सकी. परिवार ने उन्हें इस घटना के बाद महीने भर तक ढूंढा लेकिन वो नहीं मिल पाईं.

आपदा का कारण क्या था?

2021 की आपदा का व्यापक अध्ययन करने वाले प्रोफेसर वाईपी सुंद्रियाल कहते हैं कि हिमस्खलन के बाद बनी एक अस्थायी झील के कारण बाढ़ आई थी.

“ऋषिगंगा में अचानक आई बाढ़ एक बड़े हिमस्खलन से उत्पन्न हुई थी, जिसने रोंथी धारा को अवरुद्ध कर दिया था. तक़रीबन 8 से 13 घंटों के लिए ये अवरुद्ध रहा. इसके बाद, इकठ्ठा हुए पानी के दबाव के कारण रोंथी धारा को अवरुद्ध करने वाला मलबा टूट गया. वहां से झील के टूटने के बाद, पानी ने रास्ते में और अधिक मलबा एकत्र किया और नीचे स्थित जलविद्युत परियोजना को पूरी तरह से नष्ट कर दिया.”
- वाईपी सुंदरियाल (भूविज्ञान विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय)

डूबता हुआ रैनी गांव

अचानक आई बाढ़ ने 200 से अधिक लोगों की जान ले ली थी. उनमें से अधिकांश एनटीपीसी की परियोजनाओं में मजदूर थे. इस बाढ़ ने उस क्षेत्र को भी प्रभावित किया जहां रैनी गांव खड़ा है.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2021 में, विशेषज्ञों की एक टीम ने सुझाव दिया था कि रैनी के निवासियों का कहीं और पुनर्वास किया जाए. क्योंकि यह "असुरक्षित है और यहां स्थिरीकरण की आवश्यकता है."

चमोली के जिला मजिस्ट्रेट हिमांशु खुराना कहते हैं कि-

“सरकारी जमीन की कमी है और हम इसे जल्द से जल्द तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. इसके बाद हम उस जमीन का जियोलॉजिकल सर्वे करेंगे. ऐसा होने तक, ग्रामीण उत्तराखंड में अपनी जमीन खरीद सकते हैं, जिस पर उन्हें राज्य की पुनर्वास नीति के तहत सब्सिडी दी जाएगी.”

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