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पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी (Amarmani Tripathi) जेल से रिहा हो गया. 2003 के चर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी पाए गए अमरमणि और उनकी पत्नी को हाल में ही सरकार के आदेशों पर जेल से रिहा किया गया. 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से सियासी गलियारों में हलचल बढ़ गई.
राजनीति में कुछ भी बिना मकसद के नहीं होता. अमरमणि त्रिपाठी को जेल से छोड़ने के पीछे सरकार की क्या मंशा हो सकती है इसका अंदाजा लगाने के लिए हमने लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल से बातचीत की.
उनका कहना था कि 2020 में विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद प्रदेश की बीजेपी सरकार के ऊपर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. अमरमणि त्रिपाठी को रिहा करने के पीछे सरकार की ऐसे आरोपों से दूरी बनाने की मंशा हो सकती है.
महाराजगंज, गोरखपुर और नेपाल से सटे कई अन्य जिलों में अमरमणि त्रिपाठी का बोलबाला था. कोई भी पार्टी इस चेहरे से जुड़े राजनीतिक लाभ को भुनाने की कोशिश क्यों करेगी इसको समझने के लिए पहले अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक कैरियर जानना होगा.
उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण बाहुबलियों में से एक अमरमणि त्रिपाठी ने सन अस्सी के दशक में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था. उत्तर प्रदेश के बाहुबलियों का जरायम की दुनिया में नाम कमाने के बाद राजनीति में कदम रखने का एक रिवाज सा है. हालांकि, अमरमणि त्रिपाठी को शुरुआत में सफलता नहीं मिली. 1981 और 1985 में उन्होंने बाहुबली ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. त्रिपाठी को पहली जीत 1979 में महाराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से मिली. आगे चलकर त्रिपाठी ने इसी सीट से 1996 2002 में जीत दर्ज की.
त्रिपाठियों का प्रभुत्व 2017 में भी काम आया जब अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमन मणि ने अपने पिता के परंपरागत नौतनवा सीट से जीत दर्ज की. राजनीतिक रसूक की एक बानगी यह भी है कि अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी सजा का आधा से ज्यादा समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद के बीआरडी अस्पताल में काटा है.
अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई पर उत्तर प्रदेश की विपक्षी पार्टियों ने भी खुलकर बीजेपी का विरोध नहीं किया. इसका एक कारण यह भी है कि त्रिपाठी अपने राजनीतिक कैरियर में कांग्रेस, बीजेपी, एसपी और बीएसपी समेत सभी बड़ी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों से जुड़े रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल बताते हैं कि राजनीति में किसी संभावना को दरकिनार नहीं किया जा सकता. अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई का विरोध न करने का कारण यह भी हो सकता है इनमें से कई पार्टियां नए सिरे से त्रिपाठी से जुड़ने का प्रयास कर सकती हैं.
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