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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना के गठबंधन वाली नई सरकार आने के बाद भीमा-कोरेगांव मामले में डेढ़ सालों से गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग जोर पकड़ने लगी है. मुंबई में पत्रकारों, वकीलों और लेखकों के एक ग्रुप ने भी सीएम ठाकरे को लेटर लिखकर लोगों पर लगाई गई धाराओं को वापस लेने की मांग की है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने लोगों को हिरासत में लेने के बाद एक थ्योरी लोगों के सामने रखी थी कि हिरासत में लिए लोग पीएम की हत्या की साजिश रच रहे थे. लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई हुई तब सॉलिसिटर जनरल के इस मामले में एक शब्द भी नहीं कहा. अब आरोप लग रहे हैं कि उन लोगों को सिर्फ राजनीतिक साजिश के तहत फंसाया गया है.
वही इस मामले में आनंद तेलतुंबडे पर भी आरोप लगाए गए हैं. उनकी पत्नी रमा का कहना है पूरा मामला झूठा है और राजनीतिक प्रतिशोध के तहत ये गिरफ्तारियां हुई हैं-
31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में भीमा कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. पुणे के विश्रामबाग थाने में दर्ज एफआईआर के मुताबिक कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए थे, जिस वजह से जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा हुई. तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस थे.
महाराष्ट्र पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को हुए एक सम्मेलन ‘यलगार परिषद’ के बाद भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में 1 जनवरी 2018 को पांच एक्टिविस्टों के खिलाफ मामला दर्ज किया. पुलिस ने इन एक्टिविस्टों पर भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने का आरोप लगाया. इसके बाद 28 अगस्त को देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक गौतम नवलखा, वारवारा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनॉन गोंजालवेस को गिरफ्तार कर लिया गया. 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी.
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