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एकजुट विपक्ष की मुहिम में शायद पहली बार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बाहें फैलाकर कांग्रेस को न्योता दिया है. लेकिन इस पहल के मायने क्या हैं. नीतीश की व्यग्रता उनके अबतक के प्रयासों के बारे में क्या बताती है? इसी कार्यक्रम में तेजस्वी ने भी कांग्रेस को एक नसीहत दी है, उसमें कितना दम है?
मौका था पटना में आयोजित CPI (ML) के राष्ट्रीय सम्मेलन का. नीतीश कुमार ने मंच से विपक्षी एकजुटता का आह्वान किया. नीतीश ने कहा कि 2024 में सभी विपक्षी दल एकजुट होकर लड़ेंगे तो बीजेपी का सफाया हो जाएगा. लेकिन उनके इस बयान में उम्मीद कम और डिस्परेशन ज्यादा दिखती है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बिहार में नीतीश की साख कमजोर हुई है. वो विपक्षी एकता के नाम पर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं. लेकिन अगर ऐसा है तो एक बड़ा सवाल उठता है- क्या विपक्षीय पार्टियां उन्हें अपने नेता के तौर पर स्वीकार करेंगी?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि,
वो आगे कहते हैं कि नीतीश पहले भी प्रयास कर चुके हैं, लेकिन उन्हें अभी तक मनचाहा रिस्पॉन्स नहीं मिला है.
रामचरितमानस विवाद हो या फिर नीतीश के खिलाफ RJD नेताओं का बयान. इन मुद्दों ने बिहार महागठबंधन में चल रही खटपट को जगजाहिर कर दिया था. वहीं उपेंद्र कुशवाह की बगावत से भी बिहार में जेडीयू को झटका लगा है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि,
ये तो हो गई नीतीश कुमार की बात. अब जरा बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को सुनिए. जिन्होंने कांग्रेस को ही नसीहत दे दी.
तेजस्वी की ये बात गौर करने लायक है. पिछले दो लोकसभा चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में मिली हार के बाद कांग्रेस कमजोर दिख रही है. कई विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के पीछे खड़ा होने से कतरा रही हैं. ऐसे में तेजस्वी की ये सलाह कि दो कदम कांग्रेस बढ़े और छोटी पार्टियों को लीड करने दे, कारगर साबित हो सकती है.
लेकिन क्या कांग्रेस ऐसा करेगी. अगर राष्ट्रीय परिपेक्ष में इसे समझे तो अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस अभी भी मजबूत है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का अपना जनाधार है, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ ऐसा नहीं है. वहीं कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए संदेश देने की कोशिश की है कि अगर विपक्ष का कोई नेतृत्व कर सकता है तो वो कांग्रेस ही है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि,
सलमान खुर्शीद कह रहे हैं कि पहले आई लव यू कौन कहेगा? इशारों-इशारों में खुर्शीद ने साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस के साथ आना होगा. मतलब कि कांग्रेस को नेतृत्वकर्ता के रूप में स्वीकार करना होगा. वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि,
वहीं नीतीश को कांग्रेस कबूल है और कांग्रेस को नीतीश कबूल हैं इस सवाल पर मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि, "चुनाव से पहले या चुनाव के बाद ये अभी से ये मान लेना सही नहीं होगा. क्योंकि हर हालत में कांग्रेस की स्थित नीतीश कुमार के विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास से ज्यादा बेहतर है."
अब जरा आपको विपक्षी एकता के सामने की चुनौतियों से रूबरू करवा देते हैं. ये तीन तस्वीरों को देखिए- पहले हैं अरविंद केजरीवाल, दूसरे हैं केसीआर और तीसरी हैं ममता बनर्जी. विपक्षी एकता के राह में ये तीनों सबसे बड़ी चुनौती हैं. इन्हें साधे बिना विपक्षी एकता की बात नहीं हो सकती. ये तीनों नेता कांग्रेस के पीछे खड़ा होने को तैयार नहीं है. इसको वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी ऐसे समझाते हैं कि,
बहरहाल, अगले साल लोकसभा चुनाव होना है. उससे पहले इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना में चुनाव होने हैं. ऐसे में इन चुनाव के नतीजे भी विपक्षी एकता का भविष्य तय करने में मुख्य भूमिका निभाएंगे. वहीं देखना होगा कि नीतीश कुमार अपनी इस कोशिश कितने कामयाब होते हैं.
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