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बिहार (Bihar) में रामचरितमानस पर शुरू हुआ विवाद उपेंद्र कुशवाहा पर आ टिका है. यहां छोटा भाई (उपेंद्र कुशवाहा), बड़े भाई (नीतीश कुमार) से अपना हिस्सा मांग रहा है. हालांकि, हिस्सा तो अब तक नहीं मिला है लेकिन बड़े भाई ने संदेश जरूर दे दिया है.
नीतीश कुमार ने कहा, 2 बार पार्टी से भागने के बाद भी हमने उन्हें पार्टी में शामिल किया. अगर किसी को पार्टी छोड़ कर जाना है तो जाने दीजिए. पार्टी को कुछ नहीं होगा. अगर आप प्रतिदिन कुछ बोलेंगे इसका मतलब आप कहीं और विचार कर रहे हैं.
अब सवाल यह है कि जब पार्टी के सबसे बड़े नेता ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है तो फिर उपेंद्र कुशावहा क्यों नहीं खुलकर कुछ बता रहे हैं कि आखिर उनकी और नीतीश कुमार की क्या डील हुई थी? और अगर डील के मुताबिक, नीतीश ने उन्हें (उपेंद्र) हिस्सा नहीं दिया तो फिर अब तक वो किस चीज का इंतजार कर रहे? हालांकि, सवाल यह भी है कि नीतीश कुमार कह रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को कहीं जाना है तो चलें जाएं तो फिर वो 2021 में उन्हें (कुशवाहा) क्या सोचकर जेडीयू में लाए थे. मललब साफ है कि दोनों शह मात का खेल, खेल रहे हैं.
इस बीच, उपेंद्र कुशवाहा ने 19 और 20 फरवरी को पटना में कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई है. हालांकि, जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने साफतौर पर कह दिया है कि जो बैठक में जाएगा उसके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई होगी जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा अब जदयू संसदीय दल के चेयरमैन नहीं हैं.
हो सकता है कुशवाहा मीटिंग के जरिए अपनी ताकत का एहसास कराना चाहते हों. लेकिन इन सबका मतलब एकदम साफ है कि अब न तो कुशवाहा पार्टी के हो सकते हैं और न जदयू उन्हें साथ रखने के मूड में दिख रही है. तो क्या अब उपेंद्र कुशवाहा भी जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव और आरसीपी सिंह की कतार में शामिल हो जाएंगे? या फिर उनके (उपेंद्र) पास विकल्प है और है तो क्या?
वहीं, नीतीश कुमार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब उन्हें कुशवाहा का साथ नहीं चाहिए? क्या लवकुश समीकरण का तोड़ मुख्यमंत्री ने निकाल लिया है? अब उनके पास क्या विकल्प है और इस पूरे घटनाक्रम का बिहार की सियासत पर क्या असर पड़ेगा.
राजनीतिक विशलेषक संजय कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार जब उपेंद्र कुशवाहा को जदयू में लेकर आए तो उस वक्त की राजनीतिक परिस्थितियां बिल्कुल अलग थीं. आरजेडी बार-बार नीतीश पर हमलावर थी, उस वक्त सीएम ने उपेंद्र कुशवाहा को भरोसा दिया था कि अब आपको ही बिहार देखना है क्योंकि बिहार में जाति की राजनीति हावी है, तो वो चाहते थे कि लवकुश समीकरण को उपेंद्र कुशवाहा के जरिए मजबूत किया जाए. इसलिए जेडीयू में आने के बाद से उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार के कई जिलों का दौरा करना शुरू किया था. कुशवाहा मान रहे थे कि नीतीश विरासत उन्हें ही सौंपेंगे इसलिए वो (उपेंद्र कुशवाहा) कहते थे कि
संजय कुमार ने कहा कि महागठबंधन के साथ आने से नीतीश के सुर बदल गए और वो मंचों से कहने लगे कि 2025 में तेजस्वी यादव नेतृत्व करेंगे और यही कुशवाहा के बगावत का कारण बना. उपेंद्र कुशवाहा को लगा उनकी अनदेखी हो रही है और वो वहीं से हिस्सा और बंटवारे की बात करने लगे.
संजय कुमार कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा का बिहार की सियासत में प्रभाव है, तभी नीतीश ने उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा सांसद और विधान पार्षद तक बनाया. वो लवकुश समीकरण को साध कर बीजेपी पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहते थे. लेकिन महागठबंधन में जाने से जाति समीकरण इतना मजबूत हो गया कि अब कुशवाहा नीतीश के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गए.
बिहार बीजेपी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू को बचाने के लिए पार्टी के अंदर संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि नीतीश जल्द ही जेडीयू का आरजेडी में विलय कर देंगे और तेजस्वी को पार्टी की कमान देंगे, इस बात से जेडीयू के तमाम कार्यकर्ता और नेता नाराज हैं. बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि जेडीयू में नीतीश के बाद कोई जनाधार, आधार और प्रभाव वाला व्यक्ति है तो वो उपेंद्र कुशवाहा हैं.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा मास नहीं बल्कि कास्ट लीडर हैं और उनकी पूरी राजनीति इसी पर टिकी है. उपेंद्र कुशवाहा को लगता है कि नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, जिसकी बिहार में आबादी 1 से 2 प्रतिशत है तो वो इतने लंबे समय से सत्ता पर काबिज हैं जबकि कुशवाहा जाति बिहार में 7 से 8 प्रतिशत हैं तो उसके नेता को सम्मानजनक हिस्सेदारी सरकार में नहीं दी गई. अरूण पांडेय ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा इस समय अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.
दरअसल, पार्टी उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी से निकाल कर उन्हें शहीद का दर्जा नहीं देना चाहती क्योंकि इससे कुशवाहा समाज में संदेश जाएगा कि तेजस्वी की वजह से उन्हें (उपेंद्र) निकाला गया. इसलिए पार्टी के उनके बयानों से किनारा कर रही है. दूसरी तरफ उपेंद्र कुशवाहा के पास विकल्प ये है कि वो दोबारा अपनी पुरानी पार्टी को जीवित करें और अपने जाति को बताएं कि वो लवकुश को मजबूत करने नीतीश कुमार के साथ गए थे लेकिन उन्हें किनारे कर दिया गया. इसलिए वो चाहते हैं कि जदयू उन्हें निकाले जिससे वो विक्टिम कार्ड खेल सकें. इससे उनका विधान पार्षद का पद भी बचा रहेगा.
उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में जाएंगे इसको लेकर लगातार कयास लगाए जा रहे हैं. इस मसले पर राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार बताते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा अभी बहुत अपनी विश्वसनीयता नहीं बना पाएं, इसलिए बीजेपी उनको जल्दी लेने के मूड में नहीं है. बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा की ताकत देखना चाहती है, जिससे 2024 के चुनाव में मोलभाव ठीक से हो सके. कुशवाहा इस वजह से भी जदयू से अभी तत्काल इस्तीफा नहीं देंगे.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरूण पांडेय का मानना है कि बीजेपी का टारगेट नीतीश कुमार हैं और उनके आरजेडी के साथ जाने से अपर कास्ट नाराज है. पार्टी के पास अभी राज्य में 17 सांसद हैं और वो 2024 में इसे बढ़ाकर 25 से 30 करना चाहती है जिससे वो महागठबंधन से मुकाबला कर सके इसलिए वो आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को ऑपरेट कर रही है.
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा का 12 से 13 जिलों में प्रभाव है. कुशवाहा के साथ आने से नीतीश के लवकुश समीकरण को धक्का लगेगा इसलिए बीजेपी अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है. हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि उन्होंने 9 बार चुनाव लड़ा लेकिन जीत उन्हें सिर्फ 2 बार मिली.
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