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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
ये जो इंडिया है ना, इसके लाखों गरीब इस वक्त बेबस हैं. कुछ गुस्से में हैं. पैसा नहीं, खाना नहीं. काम नहीं. आपने इन लोगों को मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर देखा, सैकड़ों की तादाद में? कहा जा रहा है कि कुछ अफवाह उड़ी थी कि ट्रेन चलेगी, इन्हें घर ले जाएगी. यही सब सुनकर ये लोग स्टेशन पहुंच गए. ये लोग इतने बेचैन हैं कि न तो इन्हें सोशल डिस्टेंसिंग की फिक्र रही और न ही पुलिस की लाठियों का डर.
बेरोजगार हो चुके, गुस्से से भरे हुए कामगारों की ऐसी ही तस्वीरें हमें सूरत में दिखीं.अहमदाबाद में दिखीं, ये सच है कि मोदी और राज्यों की सरकारों के सामने विकट समस्या है.लेकिन ये भी साफ है कि हमने अपनी सबसे गरीब आबादी के भगवान भरोसे छोड़ दिया है.
24 मार्च को सिर्फ चार घंटे की मोहलत देकर देश भर में 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया गया. मोदी जी ने अपील की थी कि जो जहां है वहीं रहे, लेकिन लाखों मजदूरों ने पैदल ही घर की ओर जाना तय किया.
आखिर क्यों.? क्या इन्हें कोरोना का डर नहीं था, क्यों ये झोला उठाए, अपने बच्चों को कंधे पर बिठाए कई दिनों तक पैदल चलने को तैयार थे? क्योंकि शहरों में बिन पैसा, बिन नौकरी रुक कर करते भी तो क्या? किसी तरह गांव पहुंचना ही इनकी आखिरी उम्मीद थी. तो सरकार से कहां गलती हुई? सरकार के पास दो रास्ते थे.
नंबर 1- इन मजदूरों को उनके गांव जाने देती. इसके लिए सारी ट्रेन, सारी बसों.असल में कुछ एक्स्ट्रा ट्रेन बसों की जरूरत थी. इन्हें एक हफ्ता चलाते फिर लॉकडाउन लगाते. इससे शहरों में भीड़ छंटती. फिर गांवों में भी सोशल डिस्टेंसिंग बेहतर तरीके से होती और शहरों में भी. लेकिन सरकार ने कहा - जहां हो वही रहो. लेकिन आप वाकई में ऐसा चाहते थे तो आपको बेरोजगार होने जा रहे इन मजदूरों की जेब में कुछ पैसे डालने थे. लेकिन आपने वो नहीं किया.
तो जरूरी है कि इस मसले का कोई हल निकले..उसके लिए हमें चाहिए कि सबसे पहले तो हम ये समझें कि मसला कितना संजीदा है. सिर्फ टीवी पर प्रवचन देने से काम नहीं चलेगा.
नंबर 2 - गरीबों, इन फंसे हुए लोगों के लिए तुरंत खाने और पैसा का इंतजाम कीजिए और पक्का कीजिए कि ये उनतक पहुंच भी जाए.
अर्थशास्त्री मोहन गुरू स्वामी के मुताबिक देश में करीब 13 करोड़ लोग दिहाड़ी मजदूर हैं. इन लोगों को 40 दिन तक बिना आमदनी के गुजारने हैं. ये तादाद देश की कुल आबादी का दसवां हिस्सा है. CMIE के मुताबिक इनमें से 30% लोग लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी बेरोजगार रहेंगे.यानी 3 से 4 करोड़ मजदूरों को लॉकडाउन के बाद भी अपना घर चलाने के लिए कई महीनों तक खाना और नगदी चाहिए होगी.
एक्सपर्ट समझा चुके हैं कि निर्माल सीतारमन ने 1.7 लाख करोड़ रुपए का जो पैकेज घोषित किया वो किस तरह बहुत छोटा है.इससे बहुत ज्यादा बड़े राहत पैकेज की जरूरत है.शायद दस गुना ज्यादा बड़ा.
ऐसा नहीं है कि पैसे नहीं हैं. मोहन गुरूस्वामी कहते हैं कि पैसे हैं.
तो कुल मिलाकर स्थिति ये है कि देश के सामने विकट समस्या खड़ी है, अर्थशास्त्री इस समस्या का हल भी सुझा चुके हैं, लेकिन ताज्जुब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन खामोश हैं.वाकई वो 27 मार्च की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद आमतौर पर चुप ही हैं
लेकिन सिर्फ कैश से ही बात नहीं बनने वाली.खाना भी चाहिए.पीडीएस से पांच किलो अतिरिक्त अनाज और एक किलो दाल के ऐलान तो किया गया, लेकिन ये राशन शहरों में फंसे मजदूरों तक पहुंच रहा है.
ये जो इंडिया है ना, इसके लिए जरूरी है कि वो उन लोगों का खास ख्याल रखे, जिनपर लॉकडाउन की मार सबसे ज्यादा पड़ी है और ये तुरंत करना होगा, ढंग से करना होगा और उनके सम्मान को ठेस न पहुंचे, ये सोचते हुए करना होगा.
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