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कैमरा पर्सन: सुमित बडोला
नागरिकता कानून पर मचे बवाल और जेएनयू में हुई हिंसा के साये में दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है. 8 फरवरी को वोटिंग होगी और 11 फरवरी को नतीजों के साथ देश की राजधानी तय करेगी कि वहां अगली सरकार किसकी होगी.
दिल्ली में फिलहाल आम आदमी पार्टी की सरकार है और चुनाव कैंपेन के नजरिये से उनका फंडा भी सबसे क्लियर दिखता है. मुख्यमंत्री के चेहरे की बात करें तो आम आदमी पार्टी को अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव लड़ना है. पार्टी का कैंपेन स्लोगन भी साफ है- अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल
बीजेपी में ऊहापोह है. मनोज तिवारी दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष हैं. काफी मुखर भी नजर आते हैं. लेकिन पार्टी चुनाव की नदी अपने खेवैया पीएम नरेंद्र मोदी के सहारे पार करना चाहती है. बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत भी पीएम नरेंद्र मोदी की रैली से ही की.
कांग्रेस पार्टी डांवाडोल स्थिति में है. ना तो मुख्यमंत्री का चेहरा है ना मुद्दों का कोई मोहरा.
दिल्ली में लोकसभा की सिर्फ सात सीटें हैं और राज्यसभा की तीन. पूर्ण राज्य का दर्जा भी नहीं है. लेकिन 70 सीटों की विधानसभा का चुनाव ना सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के नजरिये से भी अहम है.
हाल में हरियाणा में झटका और महाराष्ट्र-झारखंड में हार झेल चुकी बीजेपी के लिए ये बेहद अहम चुनाव है. इस चुनाव में हुई ऊंच-नीच हिचकोले खा रही बीजेपी की गाड़ी को बुरी तरह पटरी से उतार सकती है.
आम आदमी पार्टी के लिए तो ये करो या मरो का मामला है है. 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतकर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने इतिहास रच दिया था. लेकिन उसके बाद किसी राज्य में पार्टी उस प्रदर्शन के आसपास भी नहीं पहुंच पाई.
पिछले कुछ महीनों में सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी रणनीति बदली है. अब हर मुद्दे पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पंजा लड़ाने के बजाए वो दिल्ली के मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं. कच्ची कॉलोनियों के नियमतिकरण और दिल्ली में शिक्षा का स्तर बढ़ाने जैसे मुद्दों का ज्यादा प्रचार कर रहे हैं.
कांग्रेस की बात करें तो वो अपनी मजबूती से ज्यादा दूसरों की कमजोरी पर ही निर्भर कर रही है. लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की बात चली थी जो सिरे नहीं चढ़ पाई. इस बार भी गठबंधन की कोई बात होती नहीं दिखती. लेकिन क्या कुछ सीटों पर बीजेपी को हराने के लिए रणनीतिक गठबंधन हो सकता है? फिलहाल इसे लेकर भी कोई जमीन तो तैयार नहीं दिखती. बीजेपी, कांग्रेस और आप में बंटे हुए वोट को अपने फायदे के तौर पर देखती है.
वहीं ‘आप’ को लगता है कि राष्ट्रवाद और एंटी पाकिस्तान का रिटोरिक विधानसभा चुनाव में नहीं चलने वाला और वो बीजेपी को बेहतर स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं, सस्ता बिजली-पानी, रोजगार और महंगाई जैसे प्रैक्टिकल मुद्दों पर घेरेगी.
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