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केजरीवाल और बीजेपी के पास दिल्ली विधानसभा चुनाव में क्या दांव हैं?

8 फरवरी को वोटिंग, 11 फरवरी को नतीजे

नीरज गुप्ता
न्यूज वीडियो
Updated:
बीजेपी पीएम मोदी के ‘नाम’ पर और आम आदमी पार्टी केजरीवाल के ‘काम’ पर ठोकेगी ताल.
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बीजेपी पीएम मोदी के ‘नाम’ पर और आम आदमी पार्टी केजरीवाल के ‘काम’ पर ठोकेगी ताल.
(ग्राफिक्स: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)

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कैमरा पर्सन: सुमित बडोला

नागरिकता कानून पर मचे बवाल और जेएनयू में हुई हिंसा के साये में दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है. 8 फरवरी को वोटिंग होगी और 11 फरवरी को नतीजों के साथ देश की राजधानी तय करेगी कि वहां अगली सरकार किसकी होगी.

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(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी)

दिल्ली चुनाव की अहम बातें?

दिल्ली में फिलहाल आम आदमी पार्टी की सरकार है और चुनाव कैंपेन के नजरिये से उनका फंडा भी सबसे क्लियर दिखता है. मुख्यमंत्री के चेहरे की बात करें तो आम आदमी पार्टी को अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव लड़ना है. पार्टी का कैंपेन स्लोगन भी साफ है- अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल

बीजेपी में ऊहापोह है. मनोज तिवारी दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष हैं. काफी मुखर भी नजर आते हैं. लेकिन पार्टी चुनाव की नदी अपने खेवैया पीएम नरेंद्र मोदी के सहारे पार करना चाहती है. बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत भी पीएम नरेंद्र मोदी की रैली से ही की.

कांग्रेस पार्टी डांवाडोल स्थिति में है. ना तो मुख्यमंत्री का चेहरा है ना मुद्दों का कोई मोहरा.

क्यों खास है दिल्ली?

दिल्ली में लोकसभा की सिर्फ सात सीटें हैं और राज्यसभा की तीन. पूर्ण राज्य का दर्जा भी नहीं है. लेकिन 70 सीटों की विधानसभा का चुनाव ना सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के नजरिये से भी अहम है.

दिल्ली और इसके आसपास के एनसीआर  को आप पूरे देश का छोटा रूप कह सकते हैं. यहां का चुनाव देश के मूड का सही अंदाजा देता है. देश की राजधानी औऱ वीआईपी लोगों का गढ़ होने के नाते एक नोशनल वेल्यू तो है ही.

AAP की अपेक्षा, BJP की परीक्षा

हाल में हरियाणा में झटका और महाराष्ट्र-झारखंड में हार झेल चुकी बीजेपी के लिए ये बेहद अहम चुनाव है. इस चुनाव में हुई ऊंच-नीच हिचकोले खा रही बीजेपी की गाड़ी को बुरी तरह पटरी से उतार सकती है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ भी पिछले करीब एक साल में हाथ से निकल चुके हैं और आने वाले चुनाव बिहार और बंगाल जैसे राज्यों के हैं जहां बीजेपी की राह वैसे ही आसान नहीं है.

आम आदमी पार्टी के लिए तो ये करो या मरो का मामला है है. 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतकर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने इतिहास रच दिया था. लेकिन उसके बाद किसी राज्य में पार्टी उस प्रदर्शन के आसपास भी नहीं पहुंच पाई.

(ग्राफिक्स: अरूप मिश्रा/ क्विंट हिंदी)

केजरीवाल ने बदली रणनीति

पिछले कुछ महीनों में सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी रणनीति बदली है. अब हर मुद्दे पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पंजा लड़ाने के बजाए वो दिल्ली के मुद्दों पर फोकस कर रहे हैं. कच्ची कॉलोनियों के नियमतिकरण और दिल्ली में शिक्षा का स्तर बढ़ाने जैसे मुद्दों का ज्यादा प्रचार कर रहे हैं.

अंदाजा लगाइये कि सड़क की राजनीति आक्रामक आंदोलनों से अपनी जगह बनाने वाले केजरीवाल ने जेएनयू और जामिया पर बस ट्वीट किया है. खुद वहां गए नहीं. शायद उनकी पार्टी को डर है कि नागरिकता कानून का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम में बदला तो दिल्ली चुनाव में नुकसान कर सकता है.

कांग्रेस की बात करें तो वो अपनी मजबूती से ज्यादा दूसरों की कमजोरी पर ही निर्भर कर रही है. लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की बात चली थी जो सिरे नहीं चढ़ पाई. इस  बार भी गठबंधन की कोई बात होती नहीं दिखती. लेकिन क्या कुछ सीटों पर बीजेपी को हराने के लिए रणनीतिक गठबंधन हो सकता है? फिलहाल इसे लेकर भी कोई जमीन तो तैयार नहीं दिखती. बीजेपी, कांग्रेस और आप में बंटे हुए वोट को अपने फायदे के तौर पर देखती है.

वहीं ‘आप’ को लगता है कि राष्ट्रवाद और एंटी पाकिस्तान का रिटोरिक विधानसभा चुनाव में नहीं चलने वाला और वो बीजेपी को बेहतर स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं, सस्ता बिजली-पानी, रोजगार और महंगाई जैसे प्रैक्टिकल मुद्दों पर घेरेगी.

दूर नहीं दिल्ली!

तो जनाब.. अब दिल्ली दूर नहीं, लेकिन ये मिलेगी किसे सवाल यही अहम है. क्विंट पर आपको चुनाव के हर अपडेट के साथ स्पेशल स्टोरीज, एक्यक्लूसिव इंटरव्यू और सटीक एनालिसिस मिलते रहेंगे. इसके लिए हमारा यू-ट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए हमारे टेलिग्राम चैनल से जुड़िए और फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, हेलो जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हमें लाइक कीजिए.

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Published: 06 Jan 2020,04:06 PM IST

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