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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
बकरीद यानी ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी दी जाती है, वो जो प्रिय हो. इस बार ये हो रहा है अलग अंदाज में. ईद-बकरीद पर लोग गले मिलकर एक दूसरे को बधाई देते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण इस बार लोग इससे बच रहे हैं. दिल्ली के जामिया में इस बार बकरीद किस तरह से मनाई जा रही है इसका जायजा लिया शादाब मोइज़ी ने.
मस्जिदों में इस बार हर साल के मुकाबले कम भीड़ देखी गई. लोगों ने अपने घरों में ही नमाज पढ़ी. इसके अलावा जो लोग मस्जिद गए भी, उनके लिए सोशल डिस्टेंसिंग को अनिवार्य किया गया. जामिया की मस्जिदों में ये नियम रखा गया कि 10 साल से कम और 60 साल से ज्यादा लोग नमाज पढ़ने न आएं. इसके साथ ही जो लोग आए उनकी थर्मल स्क्रीनिंग भी क गई.
ढाई महीने पहले लॉकडाउन के दौरान ईद-उल-फितर का त्योहार भी इस बार फीका ही रहा था. लोग घरों में रहने को मजबूर रहे. न मस्जिद की नमाज हुई न मिलना मिलाना. ठीक इसी तरह इस बार बकरीद पर भी लोग एक दूसरे के घर नहीं जा पा रहे. बकरीद पर एक दूसरे के घर जाना, जरूरतमंदों और पड़ोसियों में खाना बांटने की परंपरा है, लेकिन इस बार इसकी भी कुर्बानी देनी पड़ रही है. बकरीद में कुर्बानी के जानवर का तीन हिस्सा किया जाता है.एक गरीब का हिस्सा होता है, एक दोस्त-रिश्तेदार का होता है, एक हिस्सा कुर्बानी देने वाले परिवार का होता है. इसका पालन करने में भी मुश्किल हो रही है.
इस बार बकरीद बाजार भी कमजोर ही रहा. खरीदार कम थे तो बकरे बेचने वाले मायूस. मेवात और यूपी से दिल्ली के बाजारों में बकरों को लेकर आए पशुपालक मायूस लौटे. लेकिन वो कहते हैं ना जान है तो जहान है. इस कोरोना के संकट से निकले तो फिर ईद आएगी, फिर त्योहार होगा, फिर बहार होगी. ईद मुबारक.
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