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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
1973-74 में देश गंभीर रोजगार संकट में फंसा था. ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 6.8 पर्सेंट तक जा पहुंची थी. शहरों में तो यह 8 पर्सेंट के खतरनाक स्तर तक चली गई थी. तब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी. 1973-74 के आर्थिक सर्वे में उसने ऊंची बेरोजगारी दर पर लिखा था:
सर्वे में यह भी लिखा गया था, ‘आर्थिक विकास से पर्याप्त संख्या में रोजगार के मौके नहीं बन रहे, जो हमारी सबसे बड़ी चिंता है. पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या इस साल तेजी से बढ़ी है. इसका हमें खासतौर पर अफसोस है क्योंकि उनकी शिक्षा पर जो पैसा खर्च किया गया है, यह उसकी भी बर्बादी है.’
सर्वे को पढ़कर लगता है कि सरकार रोजगार संकट पर माफी मांग रही है. बेरोजगारी बढ़ने के कारण भी छिपे हुए नहीं थे. लगातार दो साल तक मॉनसूनी बारिश सामान्य से कम हुई थी, जिससे कृषि क्षेत्र की पैदावार घट गई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण सरकारी खजाना खाली हो गया था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कुछ हफ्तों में 3 डॉलर से 12 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी. इससे विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया था.
यह तो तब की बात थी. आज पर आते हैं. मोदी सरकार के अपने नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) सहित कई रिपोर्ट्स से देश में आज गंभीर रोजगार संकट के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन केंद्र इसे मानने तक को तैयार नहीं. 1973-74 के मुकाबले आज आर्थिक हालात कहीं ज्यादा बेहतर हैं. अनाज की रिकॉर्ड पैदावार, बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार, हेल्दी टैक्स कलेक्शन, सस्ते कच्चे तेल और भारत व वैश्विक अर्थव्यवस्था की अच्छी ग्रोथ के बीच देश गंभीर रोजगार संकट में फंसा है.
इस पर देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने हाल में न्यूयॉर्क टाइम्स में ‘इंडिया कैन हाइड अनएंप्लॉयमेंट, बट नॉट द ट्रुथ’ यानी ‘भारत बेरोजगारी छिपा सकता है, लेकिन सच नहीं’ शीर्षक से लेख लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है,‘मोदी सरकार की आर्थिक नीति में कुछ बड़े कारोबारी समूहों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया गया और छोटी कंपनियों, ट्रेडर, कृषि क्षेत्र और मजदूरों की अनदेखी हुई. इसके नतीजे अब दिख रहे हैं.’
बसु ने रोजगार संकट पर कई आंकड़े पेश किए हैं. एनएसएसओ की लीक हुई रिपोर्ट से यह बात सामने आई थी कि देश में बेरोजगारी दर 6.1 पर्सेंट के साथ 45 साल में सबसे अधिक हो गई है. सरकार ने इस रिपोर्ट को ही दफन कर दिया.
बसु ने अपने लेख में सीएमआईई की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है, जिसमें देश में दिसंबर 2018 में बेरोजगारी दर 7.38 पर्सेंट पहुंचने का अनुमान लगाया गया है.
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एंप्लॉयमेंट ने ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2018’ यानी ‘भारत में रोजगार की स्थिति 2018’ नाम से व्यापक शोध किया था. बसु ने इसके हवाले से बताया है कि देश के युवाओं में बेरोजगारी की दर 16 पर्सेंट है.
इन रिपोर्ट पर सरकार की प्रतिक्रिया पर आपको हंसी आएगी. 7 फरवरी को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई आंकड़ों का जिक्र कर संकेत दिया कि उनके राज में रोजगार के मौके तेजी से बढ़े हैं. उनमें से कुछ आंकड़े आप भी देखिए:
प्राइम मिनिस्टर सर, इन आंकड़ों से रोजगार बढ़ने का दावा करके आप उन लोगों का अपमान कर रहे हैं, जो अच्छी नौकरी पाने की योग्यता रखते हैं. चार दशक पहले इंदिरा गांधी (वह भी आपकी तरह बहुत मजबूत नेता थीं) ने रोजगार पर अपनी सरकार की विफलता को स्वीकार किया था. कम से कम आप भी इतना तो कर ही सकते हैं.
आखिर, किसी समस्या की पहचान के बाद ही उससे निपटने की शुरुआत होती है. जब आंकड़े चीख-चीखकर रोजगार संकट की मुनादी कर रहे हों, तो आप कब तक इस सच को झुठलाते रहेंगे.
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What Modi Can Learn from Indira Gandhi on How to Report Jobs Data
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