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Exclusive: इलेक्टोरल बॉन्ड लोकतंत्र के लिए खतरा है- ओपी रावत

बॉन्ड पूरे सिस्टम की पारदर्शिता खत्म कर देगा, ये बहुत खतरनाक हो सकता है: ओपी रावत

पूनम अग्रवाल
न्यूज वीडियो
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन, अभिषेक शर्मा

कैमरा पर्सन: शिव कुमार मौर्य

क्विंट के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने राजनीतिक चंदे में इस्तमाल होने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड और इससे होने वाले प्रभाव के बारे में चर्चा की. ओपी रावत ने फेक न्यूज से लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त के अपने कार्यकाल के दौरान आने वाली समस्याओं से निपटने का अनुभव भी शेयर करते हुए हर सवाल के बेबाकी से जवाब दिए.

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चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सरकार को चिट्ठी लिखी, क्या आपके कार्यकाल में इलेक्टोरल बॉन्ड पर कोई चर्चा हुई? 

बॉन्ड पूरे सिस्टम की पारदर्शिता खत्म कर देगा, ये बहुत खतरनाक हो सकता है, इलेक्टोरल बॉन्ड सिस्टम- कैंपेन फाइनेंस(डोनेशन) को कमजोर कर देगा, इससे लोकतंत्र और कमजोर हो सकता है, संदिग्ध लोगों का पैसा KYC, किसी भी इंसान या कॉर्पोरेट कंपनी के जरिए चुनाव में इस्तेमाल करने के लिए लाया जा सकता है और इससे चुनाव पर असर पड़ सकता है, रिस्क हो सकता है, KYC बैंक के पास ही रहेगी और इसपर कोई जांच संभव नहीं है तो ऐसे में कोई शख्स या जिस किसी के पास पैसे हो वो डोनेट कर सकता है यहां तक कि विदेशी पैसा भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है और अगर कोई पड़ताल होती है तो आपके पास कोई नाम नहीं होता.

क्या आपको लगता है कि चुनाव आयोग से इलेक्टोरल बॉन्ड पर चर्चा होनी चाहिए थी?

ये एक कानूनी प्रक्रिया के तौर पर नहीं आया, और ये जरूरी भी नहीं है लेकिन जहां तक पोलिटिकल फंडिंग की बात है, लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी स्टेक होल्डर से चर्चा करने के बाद फैसला लेना सही है और बेहतर है

क्विंट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक रिपोर्ट की थी जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड में छिपे हुए नंबर की बात सामने आईजिसे सिर्फ अल्ट्रा वॉयलेट लाइट में ही देखा जा सकता है, आप इसपर क्या कहना चाहेंगे?

अगर ऐसा कोई नंबर मौजूद है जो KYC डॉक्यूमेंट से पता लगाया जा सकता है और जिससे खरीदने वाले का पता लगाया जा सकता है तो इसका (इलेक्टोरल बाॅन्ड) उद्देश्य खत्म हो जाता है अगर नंबर से कुछ हासिल नहीं होता है तो ये बेकार है 

क्या आपको लगता है कि पोलिटिकल फंडिंग में काले धन का इस्तेमाल होने भी हो सकता है?

असल में, ये ऐसा है जैसे आप किसी काले बक्से में हैं जिसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है बिना रिसर्च के ऐसी किसी भी चीज पर कहना सही नहीं होगा जहां पर भी पारदर्शिता नहीं होती वो सिस्टम कमजोर होता है क्योंकि कोई नहीं जानता कि किस रास्ते और कैसे पैसे सिस्टम में लाए जा रहे हैं और दूसरी बात ये कि अगर आप कह रहे हैं कि KYC के जरिए आप पड़ताल कर सकते हैं(डोनर की पहचान को लेकर) तो इससे पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाता है

आने वाले दिनों में चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी? और आप उन चुनौतियों से कैसे निपटे?

चुनाव से पहले लोगों का पैसे बांटना, शराब देना जैसी चीजे रोकना हमारा पहला चैलेंज रहा, दूसरा है फेक न्यूज, पेड न्यूज और मीडिया के मामले, तीसरा है सोशल मीडिया जहां डेटा हार्वेस्टिंग और प्रोफाइलिंग से वोटर को प्रभावित किया जा सकता है जो लोकतंत्र के लिए खतरा है ये सभी चीजें मैंने अपने कार्यकाल के दौरान देखीं और आगे भी ये चैलेंज रहेंगे सिर्फ देश में हीं नहीं बल्कि बाहर भी ये समस्याएं हैं, हर कोई इन चीजों से निपटने के लिए  कुछ न कुछ कर ही रहा है

मतदान होने के बाद मतगणना में देरी क्यों?

मतगणना नहीं हो सकती क्योंकि सिस्टम में ये निर्धारित है, मतदान के बाद, EVM और बाकी चीजें जमा की जाती हैं और दूसरे दिन जनरल आब्जर्वर राजनीतिक पार्टियों के सामने जांच शुरू करता है जिसका वीडियो भी बनता हैजांच में कागजों की, वोट अकाउंट की, वोटर के अकाउंट की और बाकी चीजें देखी जाती हैं, सब कुछ सही है या नहीं देखने के बाद जब वो संतुष्ट हो जाते हैं तब प्रक्रिया आगे बढ़ती है अगर पोलिंग स्टेशन पर कोई गड़बड़ दर्ज की जाती है तो आब्जर्वर वहां दोबारा चुनाव कराने का सुझाव देता है, तो एक दिन जांच के लिए और एक दिन दोबारा चुनाव के लिए होता है और दोबारा चुनाव में भी कुछ गड़बड़ हो सकती है तो उसके लिए भी एक दिन रखना होता हैतो इसलिए कम से कम 3 दिन चाहिए होते हैं

ऐसी कौन सी चीजे हैं जिसे आप अपने कार्यकाल के दौरान करना चाहते थे या ऐसी कोई चीज कि रिटायर होने के पहले आपको वो चीजें कर देनी चाहिए थी?

चुनाव आयुक्त को कानून की चिंता है- ‘ पीपल एक्ट 1951, इलेक्शन रुल 1961, और इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन रूल 1960 ‘ हुआ इससे हमें काफी मदद मिली, लेकिन अब वक्त बदल रहा है, सोशल मीडिया और पैसों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और ये खतरा है जो दिन-ब-दिन दोगुना होता जा रहा है, इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें नए कानूनी तरीकों की जरूरत है जो ग्लोबल लेवल पर प्रैक्टिस किए जा रहे हैं, इसके लिए हमने अधिकारियों का एक ग्रुप बनाया है जो इन कानून और नियमों को ध्यान से रिव्यू कर रही है, और हम इसकी रिपोर्ट सबमिट कर चुके हैं लेकिन ये साल चुनावों से भरा हुआ है और चुनाव आयोग के पास अभी इसके लिए समय नहीं है, इसलिए कानून मंत्रालय के पास ये सुझाव या संशोधन के लिए नहीं जा सकता, ये पछतावा रहेगा क्योंकि ये किसी भी चुनाव के लिए एक बेहद जरूरी कदम है, हम व्यवस्था को और मजबूत बना सकते हैं

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