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26 जनवरी को हुई हिंसा के शिकार पुलिसकर्मियों ने सुनाई आपबीती

26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा में करीब 400 पुलिसकर्मी घायल हो गए

पूनम अग्रवाल
न्यूज वीडियो
Published:
(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)
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(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: दीप्ति रामदास

26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा में करीब 400 पुलिसकर्मी घायल हो गए. लाल किले के पास हुई हिंसा में घायल कुछ पुलिसकर्मियों ने क्विंट से बातचीत में बताया कि उन्होंने रैली के लिए पूरी तैयारी की थी लेकिन उन्हें संयम बरतने का निर्देश दिया गया था.

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पुलिसकर्मियों ने बताया कि अबतक की ड्यूटी में कई तरह के प्रदर्शनों को देखा है लेकिन इस तरह का माहौल कभी नहीं देखा. दिल्ली पुलिस के एएसआई जोगिंदर राज बताते हैं कि जो भी वर्दी में लोग अंदर जा रहे थे, प्रदर्शनकारी उनपर लाठी-डंडों से हमला कर रहे थे.

मैं भी उस वक़्त वहीं था. ये भी पता नहीं चल रहा था कि डंडा कौन मार रहा है, सरिया कहां से आ रहा है. मेरे पीठ, कंधों पर काफी डंडे लगे. पीछे से उन्होंने तलवार भी मारी लेकिन मैं सीढ़ियों से कूद गया. मेरे साथ करीब 45 मिनट तक 35-40 लोग फंसे रहे.
एएसआई जोगिंदर राज, दिल्ली पुलिस

दिल्ली पुलिस की कॉन्स्टेबल रेखा कुमारी बताती हैं कि पहले जो किसान आए तो शांतिपूर्वक बैठ गए थे. उसके बाद जो किसान आए उन्होंने दंगा-फसाद शुरू किया. फ़ायरिंग भी हुई जबकि पुलिस शांतिपूर्वक खड़ी थी. फायरिंग हुई, पत्थरबाजी हुई, डंडे-तलवार लिए हुए थे. और वो पुलिस के पीछे पड़ गए.

हमारे यहां गणतंत्र दिवस की तैयारी अच्छे से थी. दोपहर में किसानों के ट्रैक्टर बैरिकेड को तोड़ते हुए लाल क़िले के प्रांगण में जाकर खड़े हो गए. उसके बाद इतनी संख्या में किसान आने लगे कि दोनों तरफ से रोड भर चुका था. लालक़िले में पैर रखने की भी जगह नहीं थी. हमारे सीनियर अधिकारियों ने हमें आदेश दिया था कि आप बहुत संयम बरतते हुए इनकी सुरक्षा का खयाल रखेंगे. किसी भी तरह कि कोई अवांछित घटना नहीं होनी चाहिए. हमारा पूरा स्टाफ अच्छी तरह से अपनी ड्यूटी निभा रहा था.
कॉन्स्टेबल संदीप कुमार, दिल्ली पुलिस

कॉन्स्टेबल रेखा कुमारी बताती हैं कि हमें पता ही नहीं था कि वो लालक़िले पर आएंगे. हमारी फोर्स ने प्रबंध अच्छा कर रखा था. उम्मीद नहीं थी कि किसान इतना बड़ा बवाल कर सकते हैं. एएसआई जोगिंदर राज कहते हैं कि ये नहीं लग रहा था कि वो किसान हैं. क्योंकि हमारे साथ काम करने वाले भी किसान के बच्चे हैं. किसान कभी अपने भाइयों पर वार नहीं करते, जैसे हो रहे थे.

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