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नर्मदा: इधर बांध का जश्न,उधर सैलाब- 178 गांवों की कौन सुनेगा?

मैत्रेयी रमेश
न्यूज वीडियो
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(फोटो: Altered by Quint)
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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम

अपनी 69वीं सालगिरह पर पीएम मोदी ने 'मां' नर्मदा की पूजा की और नमामि देवी नर्मदे महोत्सव में पीएम मोदी ने कहा कि- नर्मदा की योजना से गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को लाभ मिलेगा. प्रकृति हमारे लिए आराध्य है, पर्यावरण को बचाते हुए कैसे विकास किया जाता है, इसका उदाहरण केवडिया में देखने को मिलता है.

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लेकिन नर्मदा घाटी में आई बाढ़ से 178 गांव डूब गए और उनकी आवाज अनसुनी रह गई.सरदार सरोवर बांध के गेट जून, 2017 में बंद किए गए थे. 2 साल बाद सितंबर 2019 में पानी सबसे उंचे स्तर 138 मीटर तक पहुंच चुका था. नर्मदा बचाओ आंदोलन के जरिए जल्द से जल्द बांध के गेट खोलने की उठी मांग की गई थी. क्योंकि बांध की वजह से गांव में बाढ़ आ रही थी. और बाढ़ में करीब 32,000 परिवारों ने अपना घर खो दिया था.

एक सामाजिक कार्यकर्ता जो अथियाले ने अगस्त 2018 को नई दिल्ली में कहा था कि-

वो बांध के दरवाजे खोलना नहीं चाहते और पानी को ऊपर से बहने देना चाहते हैं, वो ऊपर के बांध के दरवाजे खोल रहे हैं, लेकिन सरदार सरोवर बांध के दरवाजे नहीं खोलना चाहते और इस कारण से कई गांव में पानी भर जाता है. लोगों को ये समस्या नहीं होती, अगर उनका पुनर्वास हुआ होता.
जो अथियाले, सामाजिक कार्यकर्ता
नर्मदा बचाओं आंदोलन में लगातार अपनी आवाज उठाने वालीं मेधा पाटकर ने कई साल पहले ही इस खतरे को लेकर आगाह भी किया था, उन्होंने सितंबर (2019) में 9 दिन तक सत्याग्रह चलाकर लोगों के पुनर्वास की मांग की.

अगस्त 2018 को नई दिल्ली सामाजिक कार्यकर्ता मधुरेश कुमार कहते हैं कि- “पहली बात तो यही है कि उन्हें बांध में 139 मीटर तक पानी को बढ़ने नहीं देना चाहिए, दूसरी बात ये कि आज ही उन्हें गेट खोल देना चाहिए, तीसरी और बहुत गंभीर बात, प्लीज आप निर्देशों का पालन करें. SC और नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्राइब्यूनल ने जो पुनर्वास के लिए कहा है, उसे लागू करें.

बड़ा सवाल ये है कि नेता जश्न मना रहे हैं लेकिन बाढ़ की परेशानी झेलते लोग किसको अपनी हालत बताएं और किस तरह मुसीबतों से लड़ें?

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