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शराबबंदी वाले बिहार में खुलेआम शराब से 'गुलजार बाजार'

दिन के उजाले में भी शराब से 'गुलजार' है बिहार, पुलिस जानते हुए भी रहती है अनजान

उत्कर्ष सिंह
न्यूज वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p><strong>बिहार में लोग खुलेआम पी रहे शराब</strong></p></div>
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बिहार में लोग खुलेआम पी रहे शराब

फोटो: क्विंट हिंदी

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

बिहार में जहरीली शराब से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. बीते 15 दिनों में करीब 60 लोगों की जान जा चुकी है. कुछ जगहों पर पुलिस ने छापेमारी की है, कई गिरफ्तारियां हुई हैं और कुछ शराब भी पकड़ी गई है. लेकिन ये सब कुछ तात्कालिक नजर आता है. आज हम आपको बिहार में शराबबंदी की जमीनी हकीकत बता रहे हैं. बुद्ध की धरती बोधगया के कोल्हौरा गांव में हर रविवार लगने वाले साप्ताहिक बाजार में दिन के उजाले में खुलेआम कच्ची शराब की बिक्री होती है. यहां सिर्फ कच्ची शराब बेची ही नहीं जाती बल्कि लोग बड़े आराम से बैठकर शराब पीते हैं. इस बाजार को 'गुलजार बाजार' नाम से पुकारा जाता है.

बिना किसी डर के शराब का बाजार 

दरअसल बोधगया के अतिया गांव के पास खुले मैदान में जीविका संस्था के प्रयास से साप्ताहिक बाजार लगता है. जहां आस-पास के गांव के लोग सामान बेचने और खरीदने के लिए जुटते हैं. इस बाजार में रोजमर्रा की जरूरत की सभी चीजें उपलब्ध होती हैं और साथ में उपलब्ध होती है कच्ची शराब. शराब बेचने और पीने वाले इतने बेखौफ होते हैं कि उन्हें पुलिस-प्रशासन का कोई डर नहीं होता.

जानकारी के मुताबिक, दोपहर से ही 10-14 साल के नाबालिग बच्चे और महिलाएं गैलेन में कच्ची शराब भरकर बाजार पहुंचने लगते हैं. शाम 4 बजे तक बाजार सज जाता है और फिर यहां शराबियों का मजमा लग जाता है. आस-पास के गांवों से लोग शराब पीने आते हैं, साथ ही पास के पुल से गुजरने वाली गाड़ियों के ड्राइवर-हेल्पर भी गाड़ी किनारे लगाकर पीने के लिए बैठ जाते हैं.
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पुलिस क्यों रहती है बेखबर?

स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस साप्ताहिक बाजार में शराब खरीद-बिक्री की सारी खबर पुलिस थाने को भी है लेकिन उन्हें उनका हिस्सा हर महीने पहुंच जाता है. यही वजह है कि पुलिस रविवार को इस इलाके में गश्ती पर नहीं आती है. हैरानी इस बात पर भी है कि यह बाजार ठीक एक निजी स्कूल के ठीक सामने मैदान में लगता है. बोधगया दोमुहानी के पास ही यातायात थाना भी है लेकिन कभी भी इस बाजार से शराब पीकर निकलने वाले लोगों को नहीं पकड़ा जाता.

ये बाजार जिस मैदान में लगता है, वो बोधगया और मगध विश्विद्यालय दोनों थानों के अंतर्गत पड़ता है. चूंकि आरोप है कि दिन के उजाले में बिना किसी डर शराब खरीद-बिक्री का ये खेल पुलिस के संरक्षण में हो रहा है, इसलिए हमने बोधगया और मगध विश्वविद्यालय थाने में संपर्क करना चाहा. लेकिन आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि पुलिस ने हमारे स्थानीय सहयोगी को ये कहकर थाने से लौटा दिया कि "आप इन चीजों में मत पड़िए."

ऐसा भी नहीं है कि ये हालात सिर्फ बोधगया के किसी गांव में है, हर दिन बिहार के किसी न किसी कोने से जहरीली शराब से मौत की खबरें आ रही हैं. आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी के बाद से बिहार में जहरीली शराब से होने वाली मौतों की संख्या कई गुना बढ़ चुकी है. यानी एक तरफ सरकार न तो अंग्रेजी शराब पर पूरी तरह से रोक लगा पाई है और दूसरी तरफ कच्ची शराब और ड्रग्स का इस्तेमाल भी बढ़ गया है. शराब बेचने और पीने वालों ने नई-नई तरकीबें खोज निकाली हैं. पुलिस पर भी शराब माफियाओं से साठगांठ के आरोप हैं. सवाल ये कि जब पुलिस और प्रशासन खुद शराब बेचने और बिकवाने के खेल में शामिल है तो शराबबंदी कैसे सफल हो सकती है?

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