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2014 में नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने और दिल्ली जाने के महज एक साल बाद, 22 साल के हार्दिक पटेल गुजरात (Gujarat Elections) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए सबसे बड़ा संकट बनकर उभरने लगे.
हार्दिक (Hardik Patel) ने पाटीदार समुदाय के लिए नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए एक जन आंदोलन का नेतृत्व किया और 2002 के दंगों के बाद पहली बार, गुजरात ने हिंसा और अशांति के लिए राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दीं.
राज्य के सबसे बड़े बीजेपी नेताओं में से एक, गुजरात की कमान आनंदीबेन पटेल के पास मुख्यमंत्री के रूप में थी. एक साल बाद आंदोलन चरम पर पहुंचा तो आनंदीबेन ने अगस्त 2016 में सीएम पद से इस्तीफा दे दिया, कथित तौर पर उन्होंने कहा कि 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले गुजरात में युवा नेतृत्व के लिए ऐसा किया गया है.
अब 2022 पर आते हैं, बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हार्दिक ने वीरमगाम के एक मंदिर में ग्रामीणों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि "जब आनंदीबेन मंत्री थीं, तो कुछ क्षेत्रों में सबसे ज्यादा विकास के काम हुए"
पाटीदार आंदोलन का एक कार्यकर्ता के रूप में नेतृत्व, आनंदीबेन के नेतृत्व वाली सरकार पर इस्तीफा देने तक कई हमले, कांग्रेस के साथ दो साल का लंबा कार्यकाल ये सब एक तरफ और बीजेपी के साथ केवल पांच महीने के सफर में हार्दिक की ये तारीफ दूसरी तरफ.
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