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"मैंने सोचा कि वो कौन से प्वाइंट हैं जिनपर अयोध्या जैसा आंदोलन चलाया जाए. हमने वाद डालने के लिए ऐसी महिलाओं को चुना जो आम महिलाएं हैं." ये कहना है ज्ञानवापी(Gyanvapi Masjid) में सबसे पहले शिवलिंग(Shivling in Gyanvapi Mosque) का दावा करने वाले और इस पूरे प्रकरण में हिन्दू पक्ष के पैरोकार सोहनलाल आर्य(Sohanlal Arya) का. 1984 से लेकर कई सालों तक विश्व हिन्दू परिषद् के महानगर उपाध्यक्ष और प्रवक्ता रहे सोहनलाल आर्य ही 1995 में ज्ञानवापी विवाद को अदालत में लेकर गए थे.
क्विंट ने ज्ञानवापी प्रकरण और इससे जुड़े तमाम सवालों पर सोहनलाल आर्य का पक्ष जानने के लिए उनसे बात की.
सोहनलाल कहते है "जब कारसेवा के लिए आयोध्या जाते थे तो वहां से लौटते समय दिमाग में हलचल होती थी कि यहां तो रामलला की मूर्ति प्रकट हुई है, लेकिन काशी में ऐसा क्या है जिससे आंदोलन कर महादेव को मुक्त किया जा सके."
1995 में ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी माता मंदिर प्रकरण अदालत पहुंचा
सोहनलाल बताते हैं कि एक बार विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने 300-400 कलश ज्ञानवापी मस्जिद की ओर फेंक दिए. इसके बाद सरकार ने वहां 10 फीट की बैरिकेडिंग कर दी.
सोहनलाल कहते है, 1995 में श्रृंगार गौरी के दर्शन करने के अधिकार और विश्रवेश्वर महादेव में अज्ञात देवी-देवताओं की पूजा करने के संदर्भ में हमनें वाद दायर कर दिया."
5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी के अंदर पूजा की मांगी है इजाजत
केस दाखिल करने वाली महिलाओं के बारे में सोहनलाल कहते है "मां श्रृंगार गौरी देवी हैं. इसलिए देवी के लिए देवी को ही चुना गया. बहुत ही सामान्य स्तर की महिलाओं को लेकर हमने आंदोलन शुरू किया और वक्त की कसौटी पर वह खरी उतर रही हैं"
शिवलिंग या फव्वारा?
ज्ञानवापी मस्जिद के वुजुखाने में मौजूद जिस आकृति को 'शिवलिंग' माना जा रहा है उसे मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है. शिवलिंग है या फव्वारा इस सवाल के जवाब में सोहनलाल कहते हैं-
"इस मामले में नही लागू होता है 1991 कानून"
सोहनलाल आर्य आगे कहते है कि धर्म स्थल विधेयक 3 (G) के अनुसार कोई भी भवन 1947 से पूर्व अगर 100 साल का है तो उस पर यह कानून लागू नही होता.
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