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हॉकी के गढ़ भोपाल से क्यों नहीं निकल रहे उतने चैंपियन?

भारत के हॉकी मक्का भोपाल से अब क्यों नहीं निकल रहे नेशनल खिलाड़ी

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<div class="paragraphs"><p>हॉकी के लिए प्रसिद्ध भोपाल ने खो दिया अपना क्रेज</p></div>
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हॉकी के लिए प्रसिद्ध भोपाल ने खो दिया अपना क्रेज

(Photo: Altered by Quint)

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल को कभी भारत में 'हॉकी की नर्सरी' के रूप में जाना जाता था, जिसमें 10 से अधिक ओलंपिक और 17 राष्ट्रीय खिलाड़ी थे.

लेकिन पिछले दो दशकों में इस शहर ने भारत को एक भी ओलंपिक खिलाड़ी नहीं दिया है. स्वर्ण युग के अंतिम खिलाड़ी समीर दाद हैं, जिन्होंने 2000 के सिडनी ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था.

हॉकी के प्रति प्रेम में भोपाल शहर में क्या बदलाव आया?

भोपाल आज हॉकी खेल की जिस स्थिति में पहुंचा है इसके कई कारण हैं, जैसे गुटबाजी, कथित पूर्वाग्रह और हॉकी खेल के प्रबंधन में राजनीतिक चहल-पहल.

1980 के दशक में शहर के पास 10 सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों जैसे भेल, इंडियन एयरलाइंस, पुलिस डिपार्टमेंट, ONGC व अन्य के साथ कुल लगभग 65 क्लब थे.

सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों ने इन खिलाड़ियों को रोजगार दिया और उन्हें अपनी प्रतिभा को चमकाने का मौका दिया.

1984 के Los Angeles Olympics में नेशनल हॉकी टीम के सदस्य और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित जलालुद्दीन रिज़वी ने क्विंट से बात करते हुए पुराने वक्त को याद किया. उन्होंने बताया कि 1978 में भोपाल नगर निगम (BMC) द्वारा बनवाए गए ऐशबाग स्टेडियम में हॉकी खेलने वाले खिलाड़ियों को शहर में बहुत सम्मान के साथ पहचाना जाता था.

भोपाल के ऐशबाग स्टेडियम की मौजूदा हालत

(फोटो- द क्विंट)

भोपाल के ऐशबाग स्टेडियम की मौजूदा हालत

(फोटो- द क्विंट)

भोपाल के ऐशबाग स्टेडियम की मौजूदा हालत

(फोटो- द क्विंट)

1931 में भोपाल के नवाब द्वारा शुरू किए गए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर के ओबैदुल्ला खान गोल्ड कप के अलावा, शहर में हर साल लगभग 1980-1982 तक दर्जनों टूर्नामेंट होते थे.

इन सबसे स्थानीय प्रतिभाओं का उभारने में मदद मिली, विदेशी खिलाड़ी भी भाग लेने के लिए आए और स्थानीय लोगों को भी नए कौशल सीखने में मदद मिली. लेकिन जैसे-जैसे गुटबाजी बढ़ी, क्लब बंद होने लगे और सरकारी विभागों ने टीमों को संरक्षण देना बंद कर दिया.

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हाल ही में मध्य प्रदेश हॉकी टीम के कोच बनाए गए समीर दाद ने बाताया कि 1984 में भोपाल से दो टीमें रंगास्वामी राष्ट्रीय हॉकी चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए दिल्ली गईं, जिससे भोपाल हॉकी की छवि धूमिल हुई और चयनकर्ताओं ने भोपाली टीमों पर अधिक ध्यान नहीं दिया. सेलेक्शन के वक्त गुटबाजी के कारण टीमें नॉकआउट मैच में जीत हासिल करने में विफल रहीं. यह शहर में हॉकी के ताबूत में अंतिम कील थी.

उन्होंने आगे बताया कि टोक्यो ओलंपिक में भारत के हालिया प्रदर्शन से प्रेरित होकर कई बच्चों ने ऐशबाग स्टेडियम में अभ्यास करना शुरू कर दिया है. स्टेडियम शहर के बीचो-बीच स्थित है जो कि नि:शुल्क है.

देश की आजादी के पहले भी भोपाल से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले, जिनमें अहमद शेर खान भी शामिल थे. उन्होंने ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ियों के साथ खेला था. इनाम-उर-रहमान, सैयद जलालुद्दीन रिज़वी और समीर दाद शहर के कुछ ऐसे सितारे हैं जिन्होंने ओलंपिक में स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में देश का प्रतिनिधित्व किया.

पिछले दो दशकों में भोपाल से हॉकी में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले जैसे मोहम्मद उमर (Gold, Junior Men’s Asia Cup, 2015), अफ्फान यूसुफ (Gold, Asian Champions Trophy, 2016) और मौजूदा वक्त में भोपाल से जूनियर महिला टीम की खिलाड़ी गोलकीपर खुशबू खान हैं.

रिज़वी ने कहा कि मध्य प्रदेश का सबसे पुराना और एकमात्र हॉकी स्टेडियम ‘ऐशबाग स्टेडियम’ अपने भवन से लेकर खेल मैदान तक सालों से पुनरुद्धार का इंतजार कर रहा है. स्टेडियम खेल विभाग और नगर निगम के बीच विवाद का विषय बन गया है.

सैयद जलालुद्दीन रिज़वी

(फोटो- द क्विंट)

स्टेडियम से तीन किमी दूर रहने वाले और दिन में दो बार अभ्यास करने वाले 16 वर्षीय गुलरेज़ खान कहते हैं कि स्टेडियम के फटे हुए मैदान की मरम्मत करवाने की जरूरत है. इसके खराब हालत के चलते अक्सर अभ्यास के दौरान चोट लग जाती है.

अनुभवी और उत्साही युवाओं द्वारा प्रतिदिन अभ्यास करने का जुनून इस बात का गवाह है कि भोपाल अभी भी हॉकी के लिए समर्पित है. हालांकि शहर में खेल को फिर से उसी स्थिति में लाना आसान नहीं होगा, लेकिन डैड वह सब करने के लिए तैयार हैं जो वह कर सकते हैं.

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