टाइम के साथ कैसे बदलता गया मोदी के लिए TIME का नजरिया

‘करिश्माई नेता से कम्युनल’ तक पीएम मोदी के लिए बदलता TIME का नजरिया 

ईश्वर रंजना
न्यूज वीडियो
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‘करिश्माई नेता से कम्युनल’ तक पीएम मोदी के लिए बदलता TIME का नजरिया 
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‘करिश्माई नेता से कम्युनल’ तक पीएम मोदी के लिए बदलता TIME का नजरिया 
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

  • 'कुशल शासक से विरोध को दबाने वाले'
  • 'विजनरी से नाकाम इकनॉमिस्ट तक'
  • 'करिश्माई नेता से कम्युनल'

2014 से 2020 तक आते - आते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को लेकर टाइम मैगजीन (TIME Magazine) का नजरिया काफी बदल चुका है. वैसे तो पीएम मोदी (PM Modi) इस बार TIME के '100 Most influential people 2020' की सूची में चौथी बार शामिल हुए हैं. लेकिन पिछली बार की तरह इस बार मैगजीन ने उनकी या बीजेपी की तारीफों के पुलिंदे नहीं बांधे हैं.

आपको बता दें कि हर साल इस सूची में शामिल होने वाले हर व्यक्ति के बारे में लेखक, इन्फ्लुएंसर या एक्सपर्ट मैगजीन में लिखते हैं. इस साल, पीएम मोदी के बारे में टाइम के एडिटर कार्ल विक ने लिखा है:

“भारत के करीब सभी प्रधानमंत्री लगभग 80% हिंदू आबादी से ही रहे हैं. लेकिन उनमें से मात्र मोदी ने ही ऐसे शासन किया है मानो कोई और उनके लिए मायने ही नहीं रखता हो. पहले उनका चुनाव सशक्तिकरण जैसे लुभावने वादे पर हुआ. उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने न केवल कुलीनता बल्कि बहुलवाद को भी दरकिनार कर दिया. इसमें विशेष रूप से भारत के मुसलमान निशाने पर आए. कोरोनावायरस महामारी जैसी संकट की घड़ी असहमति का गला घोंटने का बहाना बन गई और दुनिया का सबसे आकर्षक और चमकदार लोकतंत्र अंधेरे में चला गया.”
कार्ल विक, टाइम मैगजीन के एडिटर

ये पीएम मोदी और देश में बीजेपी सरकार की तीखी आलोचना है...

इससे पहले टाइम मैगजीन पीएम मोदी के बारे में 2014, 2015 और 2017 में भी लेख छाप चुका है लेकिन तब मैगजीन का रवैया मोदी के प्रति इतना तीखा नहीं था

'करिश्माई, तीव्र, निर्णायक शैली वाले व्यक्तित्व’: फरीद जकारिया (2014)

100 लोगों की सूची में आए पीएम मोदी का पहला विवरण CNN के फरीद जकारिया ने लिखा था. उस समय उन्होंने पीएम मोदी का काफी संतुलित विवरण दिया था. जकारिया ने मोदी को यूपीए -2 सरकार का "नेगेटिव रिएक्शन" बताया. साथ में उन्होंने मोदी के हिन्दू राष्ट्रवादी व्यक्तित्व को भी रेखांकित किया था. जकारिया ने मोदी के बारे में लिखा -

“भारत में मनमोहन सिंह का शासन है, जो एक सीधे -साधे 81 वर्षीय टेक्नोक्रेट हैं. जिनके पास अपनी कोई राजनीतिक शक्ति नहीं है. इसके ठीक विपरीत मोदी, करिश्माई, तीव्र, पूरी तरह से निर्णायक शैली वाले व्यक्तित्व के हैं. वो भारत के सबसे तेजी से विकास करने वाले राज्यों में से एक गुजरात के मुख्यमंत्री हैं. “
फरीद जकारिया, पत्रकार
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भारत में सुधारवाद के प्रमुख: बराक ओबामा (2015)

2015 में टाइम मैगजीन ने पीएम मोदी को दूसरी बार सूची में शामिल किया. इस बार, उनका विवरण और किसी ने नहीं बल्कि खुद बराक ओबामा ने लिखा. अपने पहले कार्यकाल में एक साल के अंदर ही, पीएम मोदी ओबामा को प्रभावित करने में सफल हो चुके थे.

ओबामा ने मोदी के बारे में लिखा कि:

“भारतीयों को अपने रास्ते पर चलने में मदद के लिए पक्के इरादों वाले मोदी ने जलवायु परिवर्तन का सामना करने के बावजूद गरीबी को दूर करने, शिक्षा में सुधार, महिला सशक्तीकरण और भारत की वास्तविक आर्थिक क्षमता को उभारने के लिए एक महत्वाकांक्षी विजन सामने रखा है”
बराक ओबामा

‘सेक्युलर और गरीब मुसलमानों को बलि का बकरा बनाया ': पंकज मिश्रा (2017)

2017 में, जब मोदी तीसरी बार सूची में शामिल हुए थे, तब टाइम का उनके प्रति नजरिया बदल चुका था. दरअसल, उस समय बीजेपी सरकार कम्युनल मॉब लिंचिंग और नोटबंदी के बाद के प्रभावों को लेकर घिरी हुई थी.

लेखक पंकज मिश्रा ने लिखा:

“लगभग तीन साल बाद, भारत के इकनॉमिक, जियोपॉलिटिकल और सांस्कृतिक वर्चस्व के बारे में उनका विजन साकार होने से अभी कोसो दूर है, ऊपर से उनके हिंदू राष्ट्रवादी सेक्युलर और लिबरल बुद्धिजीवियों के साथ-साथ गरीब मुसलमानों को भी बलि का बकरा बना रहे हैं”
पंकज मिश्रा, लेखक

2020 आते - आते शायद ही मोदी के 'सुशासन' के बारे में कोई ऐसा शब्द लिखा गया हो जिसका जकारिया और ओबामा ने 2014 और 2015 में जिक्र किया था दूसरी ओर कार्ल विक ने मोदी और बीजेपी को भारत के बहुलवाद को खारिज करने का दोषी ठहराया. साथ में उन्होंने मुसलमानों पर निशाना साधने और विरोध के स्वर को दबाने का भी आरोप लगाया

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती, 2020 की आयरनी ये है: मोदी को शाहीन बाग की दादी के साथ फीचर किया गया है

इस साल के टाइम मैगजीन के टॉप 100 में, मोदी को दिल्ली के शाहीन बाग से 82 वर्षीय बिलकिस 'दादी' के साथ स्पेस शेयर करना पड़ा, बिलकिस दादी इस साल की शुरुआत में सीएए के विरोध का चेहरा बन गई थीं.

शाहीन बाग का विरोध स्थल, जहां महिलाओं और बच्चों ने शांतिपूर्वक विवादास्पद और भेदभावपूर्ण CAA के खिलाफ प्रदर्शन किया, बीजेपी ने इसे दिल्ली में एक चुनावी मुद्दे के रूप में भी इस्तेमाल किया था - बिलकिस दादी जैसे प्रदर्शनकारियों को बार-बार 'देश विरोधी' कहा जाता था, एंटी नेशनल, आतंकी और देश को तोड़ने वाला बताया जाता था.

शाहीन बाग पर मोदी के बयान के बावजूद ... बिलकिस दादी के टाइम मैगजीन के टॉप 100 में फीचर करने को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काफी सराहा गया

टाइम मैगजीन का मोदी के प्रति बदलता नजरिया भी उनके प्रति दुनिया के बदलते नजरिए को दिखाता है, जिसे कभी एक होनहार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में देखा जाता था. इसमें कोई शक नहीं, मोदी की 2019 की प्रचंड जीत ने उन्हें 2024 तक स्पष्ट जनादेश दिया है. लेकिन अगर मोदी इस बारे में सोच रहे हैं कि इतिहास में उन्हें कैसे याद रखेगा, तो उन्हें इस साल की टाइम मैगजीन में लिखे शब्दों को निष्पक्ष आलोचना के रूप में लेना चाहिए और सही रिकॉर्ड स्थापित करने की दिशा में काम करना चाहिए, जब वो अगली बार TIME में जगह बनाएंगे

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