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-23.9% GDP नहीं, इसके पीछे की गरीबी,बेकारी देखिए-चिदंबरम EXCLUSIVE

केंद्र के पास कंपनियों के लिए पैसा है,गरीब के लिए नहीं - चिदंबरम 

संजय पुगलिया
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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-23.9% पर आ गई जीडीपी को मत देखिए, इसके पीछे छिपी खराब तस्वीर को देखिए. देखिए कि लाखों बेरोजगार हो गए हैं, गरीबी को देखिए. सरकार अगर कॉरपोरेट की मदद कर सकती है तो गरीबों की भी कर सकती है और उसके पास पैसा भी है. ये कहना है पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का. वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी के आंकड़े, कोरोना और जीएसटी विवाद को लेकर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने चिदंबरम से से खास बातचीत की.

चिदंबरम ने कहा कि, कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देश अमेरिका है और दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित देश ब्राजील है. इसके अलावा बड़ी इकनॉमी जैसे- चीन, जापान, यूके, जर्मनी और फ्रांस नुकसान को काबू करने में सफल रहे. इनमें से एक-दो को छोड़ दें तो सभी की जीडीपी सिंगल डिटिज नंबर में है. लेकिन भारत जैसे देश में जीडीपी का -23.9% तक गिर जाना, जहां पर प्रति व्यक्ति आय काफी कम है और जहां करीब 40 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, एक बड़ा झटका है.

चिदंबरम ने कहा कि, जापान का उदाहरण लेकर देखते हैं, अगर उनकी इकनॉमी 10-15 फीसदी नीचे भी गिरी, लेकिन वहां लोग गरीब नहीं हुए और गरीबी रेखा से नीचे नहीं गए. वहां पर प्रति व्यक्ति आय फिर भी काफी ज्यादा है. लेकिन भारत में जीडीपी का -23.9% तक जाने का मतलब है कि वो लाखों लोग जो अभी गरीबी रेखा से ऊपर हैं उन्हें गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया जाएगा.

अगर हम 1997 और 2008 की बात करें तो तब भारत ने एक काफी बड़ा रिवाइवल पैकेज देखा था. जिसका हिस्सा आप भी थे. आप इस सरकार को क्या सलाह देंगे? क्या हम अगले 6 महीने के लिए 8 परसेंटेज प्वाइंट्स का बड़ा जीएसटी कट कर सकते हैं, क्या हम रेपो रेट में 200 बीपीएस की कटौती करके लोगों को हाउस लोन और कार लोन लेने की तरफ आकर्षित कर सकते हैं?

रेट कट से कोई फायदा नहीं होगा. लोगों के हाथों में पैसा जरूरी है, जिससे वो चीजों को खरीद सकें. मेरा कहना है कि 24 फीसदी की गिरावट का मतलब है कि नौकरियां जाएंगीं. अगर 10-15 फीसदी नौकरियां भी गईं तो उनकी इनकम भी गिरेगी. अगर 10-15 फीसदी परिवारों की इनकम कम हुई तो कई सारे परिवार गरीब हो जाएंगे. आपको लोगों के हाथ में पैसा देना होगा. इसीलिए रेट कट से कोई मदद नहीं मिलेगी. रघुराम राजन और अरविंद सुब्रमण्यम ने भी यही सलाह दी कि लोगों के हाथ में पैसा दीजिए. फिर चाहे आप 5 हजार रुपये दें या फिर 7500 रुपये, इस पर चर्चा हो सकती है, लेकिन लोगों को पैसा दें.

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क्या सरकार को इस वक्त नोट छापने के बारे में सोचना चाहिए? जिसके बारे में सरकार अभी नहीं सोच रही है.

फैक्ट ये है कि सिर्फ केंद्र सरकार के पास ही शक्तियां हैं. इन शक्तियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कुछ इकनॉमिस्ट्स ने कहा है कि नोट छापना एक बुरा आईडिया है, लेकिन हम ये नहीं कह रहे हैं कि सीधे नोट छापिए, आप सिर्फ डेफिसिट के उस हिस्से को मॉनिटाइज कीजिए, जिसे लेकर आपको लगता है कि वो आपको असहज कर सकता है या जो सिस्टम की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी को खतरे में डाल सकता है. लेकिन इसका एक ही रास्ता है कि आप कर्ज लें, उसे खर्च करें और गरीबों को सीधा पैसा ट्रांसफर करें.

लेकिन इसे खर्च कैसे किया जाए? सरकार के पास एक बड़ा फूड स्टॉक है, जिसे लोगों के काम में लाया जाना चाहिए. इसे रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने में इस्तेमाल किया जा सकता है, सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही है?

सरकार ऐसा नहीं कर रही क्योंकि उनके पास कोई इमेजिनेशन नहीं है. हमने कहा था कि हर परिवार को हर महीने 25 किलो चावल और गेंहूं अगले कुछ महीने तक दिया जाए, लेकिन उन्होंने सिर्फ 5 किलो दिया. आपने रिपोर्ट देखी होगी कि सिर्फ 33 फीसदी प्रवासियों को ही राशन मिला. अगर आप टारगेटेड डिस्ट्रिब्यूशन करेंगे तो हमेशा इसमें लूप होल रहेंगे. इसीलिए हमने कहा कि सभी को राशन दिया जाए. जिसे जरूरत नहीं होगी, वो राशन लेने दुकान पर पहुंचेगा ही नहीं. इसके लिए किसी भी तरह का कोई पहचान पत्र या अन्य कागज नहीं मांगा जाना चाहिए. अगर इसे यूनिवर्सल किया जाता तो हर जरूरतमंद तक राशन पहुंचता.

भारत में है पर्याप्त पैसा

डॉलर बॉन्ड इशू को लेकर चिदंबरम ने कहा कि ये बात बजट के वक्त हुई थी. लेकिन मुझे लगता है कि अगर सरकार फंड पैदा सकती है तो वो भारत में ही कर सकती है. देश में पर्याप्त पैसा है, जो सरकार को चाहिए. इसीलिए ओवरसीज बॉन्ड को लेकर नहीं सोचना चाहिए.

पूर्व वित्त मंत्री ने कोरोना महामारी को लेकर कहा कि, मैंने 6 हफ्ते पहले कहा था कि अगस्त के अंत तक हमारे देश में कोरोना मामले 35 लाख को पार करेंगे. हमने ये आंकड़ा 30 अगस्त को छुआ. अब मैं कहता हूं कि सितंबर अंत तक हमारे देश में 55 लाख से ज्यादा केस होंगे. अगर अमेरिका में ट्रंप कोरोना मिस मैनेजमेंट का उदाहरण हैं तो मोदी जी का क्या दावा है कि मैं ट्रंप का मैनेजमेंट सबसे खराब रहा है और मेरा नंबर उनके बाद है. मैं महामारी के लिए सरकार को दोष नहीं देता, लेकिन मैनेजमेंट में सरकार फेल रही है.

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