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IPL में इतना पैसा है! करोड़ो में खिलाड़ी बिकते हैं, 5 स्टार होटलों में टिकते हैं और महंगे-महंगे शौक पूरे करते दिखते हैं. लेकिन IPL में पैसा आता कहां से है? कौन देता है? आप कहेंगे BCCI, लेकिन नहीं BCCI तो खुद पैसा लेने वालों में से है? और एक सबसे अहम सवाल, कि क्या इतना पैसा मिलने के बावजूद आईपीएल के खिलाड़ी 'गरीब' हैं? क्या है इसका बिजनेस मॉडल (IPL Business Model)?
सबसे पहले 'मीडिया राइट्स और सेंट्रल स्पॉन्सरशिप' की बात करें तो इसका कंट्रोल सीधे BCCI के हाथ में होता है. IPL शुरू होने से पहले BCCI मीडिया राइट्स जारी करता है, जैसे इस बार डिजिटल में वायकॉम 18 और टीवी में स्टार स्पोर्ट्स को कुल 48,390 करोड़ रुपये में मीडिया राइट्स मिले. इसके अलावा BCCI IPL से जुड़े सेंट्रल स्पॉन्सर्स लाता है जैसे इस बार का टाइटल स्पॉन्सर टाटा है. इसने 2022 और 2023 के लिए BCCI को 335 करोड़ रुपये दिए हैं.
इसके अलावा भी छोटे-छोटे बहुत सारे स्पॉन्सर्स होते हैं. तो मीडिया राइट्स और सेंट्रल स्पॉन्सरशिप से जो पैसा आता है, उसका 50 फीसदी BCCI और 50 फीसदी IPL टीम्स यानी फ्रेंचाइजी की जेब में जाता है.
IPL के मीडिया राइट्स 2008 से 17 यानी 10 सालों के लिए 8200 करोड़ में सोनी ने खरीदे थे. 2018 से 2022 यानी 5 सालों के लिए ये राइट्स 16,348 करोड़ रु में डिज्नी स्टार के पास रहे और 2023 से 27 तक यानीअगले पांच सालों के लिए 48,390 करोड़ रुपये में मीडिया राइट वायकॉम 18 और डिज्नी स्टार के पास है.
2008 से 12 तक 40 करोड़ में DLF टाइटल स्पॉन्सर था.
2013 से 15 तक पेप्सी 79.2 करोड़ में टाइटल स्पॉन्सर रहा.
2016 -17 के लिए वीवो ने 100 करोड़ रुपये दिए.
2018-19 में फिर वीवो ने ही 440 करोड़ में टाइटल स्पॉन्सरशिप अपने पास रखी.
2020 में ये ड्रीम 11 के पास आ गया जिसने 220 करोड़ रुपये दिए
2021 में वीवो ने 440 करोड़ में आईपीएल स्पॉन्सर किया.
2022-23 सीजन के लिए टाटा 335 करोड़ रुपये में टाइटल स्पॉन्सर बना है.
कमाई का दूसरा जरिया- फ्रेंचाइजी के अपने स्पॉन्सर्स. आपने देखा होगा हर टीम की जर्सी पर, चाहे वो खिलाड़ी का ट्राउजर हो, बाजू हो या हेलमेट यहां तक पानी की बोतलों पर किसी न किसी ब्रांड का लोगो होता है. ये सब फ्रेंचाइजी के अपने स्पॉन्सर्स होते हैं और इनसे मिलने वाला पूरा पैसा फ्रेंचाइजी की ही जेब में जाता है. इसपर किसी और का कोई अधिकार नहीं है, BCCI का भी नहीं.
कमाई का तीसरा सोर्स- टिकटों की बिक्री. अगर कोई मैच देखने स्टेडियम जाता है तो इसके लिए टिकट खरीदता है. इससे जो पैसा इकट्ठा होता है वो 3 जगह बंटता है
कमाई का चौथा सोर्स है मर्चेंडाइज सेल, इसका भी पूरा पैसा सीधे आईपीलए टीम यानी फ्रेंचाइजी के खाते में जाता है. आपने देखा होगा कि फैन अपने पसंदीदा टीम की जर्सी या हैट जैसी चीजें पहन कर सपोर्ट करने आते हैं.
कमाई का पांचवा सोर्स- विज्ञापन, व्यूअरशिप और सबस्क्रिप्शन. इससे जो कमाई होती है व नो तो BCCI के पास जाता है न ही आईपीएल टीम के पास- इसका पूरा पैसा मीडिया राइट होल्डर्स के पास जाता है. उदाहरण के लिए मान लीजिए आप जियो सिनेमा पर मैच देख रहे हैं, तो इसके सबस्क्रिप्शन या मैच के बीच में चलने वाले विज्ञापन से होने वाली इनकम जियो सिनेमा के पास ही जाएगी. और इनडायरेक्टली ये पैसा इसकी पेरेंट कंपनी वायकॉम 18 के पास जाएगा.
IPL से कमाई का छठा जरिया- फ्रेंचाइजी ऑक्शन. साधारण भाषा में कहें तो टीमों की बिक्री. आईपीएल में जब भी कोई नई टीम जुड़ती है तो इसकी नीलामी की जाती है. इस नीलामी से मिलने वाला पूरा पैसा सीधे BCCI के पास जाता है.
अब वो सवाल जिसका जिक्र मैंने शुरुआत में किया कि क्या आईपीएल प्लेयर्स 'गरीब' हैं? आप भी सोच रहे होंगे कि इन खिलाड़ियों को लाखों-करोड़ो रुपये मिलते हैं, फिर ये 'गरीब' कैसे हुए.
दरअसल कुछ दिनों पहले Telegraph UK ने एक रिपोर्ट पब्लिश की, जिसमें उनका दावा है कि आईपीएल में पूरे रेवेन्यू का सिर्फ 18 फीसदी ही खिलाड़ियों को मिलता है और ये BCCI अपने खिलाड़ियों को जितना पैसा देती है उससे भी कम है. BCCI अपने प्लेयर्स को टोटल रेवेन्यू का 26% देती है, जबकि आईपीएल सिर्फ 18%.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इंग्लिश प्रीमियर लीग जैसे फुटबॉल लीग्स में प्लेयर्स को टोटल रेवेन्यू का लगभग 70 प्रतिशत पैसा मिलता है. अमेरिका में बेसबॉल, बास्केटबॉल, हॉकी और रगबी जैसी लीग्स में भी प्लेयर्स को टोटल रेवेन्यू का लगभग 50 प्रतिशत पैसा मिलता है.
आईपीएल में पिछली बार की तुलना में इस बार ब्रॉडकास्टिंग राइट्स भी लगभग तीन गुना प्राइस में बिके हैं. लेकिन खिलाड़ियों की सैलरी वहीं की वहीं है, तो अब आप समझे आईपीएल में पैसे का चक्कर.
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