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अथ श्री महाराष्ट्र कथा:शिवसेना-NCP-कांग्रेस में कहां फंस गया पेंच?

जब राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है तो ये तीनों पार्टियां फास्ट लोकल में चढ़ी हैं.

रौनक कुकड़े
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महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के बाद सरकार बनाना कितना मुश्किल होगा?
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महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के बाद सरकार बनाना कितना मुश्किल होगा?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

कारवां गुजर गया, गुब्बार देखते रहे...

इस वक्त शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सियासी सरगर्मियों को देख यही कहने का मन कर रहा है. जब राज्यपाल के पास समर्थन का लेटर पहुंचाने की जल्दी थी तो स्लो लोकल पर सवार थे और अब जब राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है तो ये तीनों पार्टियां फास्ट लोकल में चढ़ी हैं. शिवसेना से खुद उद्धव ठाकरे ने मोर्चा संभाल लिया है....इधर कांग्रेस-एनसीपी ने पांच नेताओं की टीम बना दी है.

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लेकिन तीन पहियों की गाड़ी चलाना इतना भी आसान नहीं है, पावर शेयरिंग का फॉर्मूला क्या हो, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम क्या हो? इन पर पेच फंसा है..अगर इनपर सहमति बन भी गई तो राष्ट्रपति शासन के बाद सरकार बनाना कितना मुश्किल होगा?

ये सब हम आपको बताएंगे और ये भी बताएंगे कि ऐलान करने के बाद भी शिवसेना सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई?

पहले ये जान लीजिए कि इन तीनों पार्टियों में क्या खिचड़ी पक रही है?

सपोर्ट चाहिए तो हमारी मांगे मानो. ये बात कुछ दिन पहले शिवसेना बीजेपी से कह रही थी..अब यही बात शिवसेना से एनसीपी-कांग्रेस कह रही हैं. खबर है कि सपोर्ट के लिए एनसीपी-कांग्रेस ने शिवसेना के सामने लंबी चौड़ी फेहरिस्त रख दी है.

मुंबई के ट्राइडेंट होटल में उद्धव ने कांग्रेस-एनसीपी से बातचीत की है. एनसीपी-कांग्रेस से क्या बात हुई उद्धव अभी ये पत्ता नहीं खोल रहे. लेकिन चर्चा है कि शिवसेना-एनसीपी में ढाई-ढाई साल सीएम कुर्सी की बात हो रही है. खबर तो ये भी चल रही है कि कांग्रेस भी डिप्टी सीएम का पद मांग रही है.

लेकिन मामला यहीं तक नहीं है. एनसीपी-कांग्रेस की और भी मागें हैं- एक ये कि शिवसेना हार्ड हिंदुस्तव के मामले पर अपना रुख साफ करे

फिर क्या नई सरकार बनने के बाद भी शिवसेना सामना अखबार के जरिए सत्ता में रहते हुए भी विपक्ष की भूमिका निभाती रहेगी, ये भी साफ करे.

सहमति एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर भी बननी है...सूत्र बताते हैं कि कुल 6 मुद्दों पर सहमति बनती दिख रही है.

पहला एजेंडा है- किसानों कर्ज माफी - यानी कर्ज के बदले किसानों की गिरवी जमीन के कागज लौटाए जाएंगे

दूसरा एजेंडा है- किसानों को पर्याप्त पानी देने व्यवस्था की जाएगी

फिर है किसानों की साहूकारों से मुक्ति - इसके लिए किसानों का बैंकों से सस्ता लोन मुहैया कराने की नीति बनाने की बात है.

  • बिजली दरों में कटौती की जाएगी
  • हर साल एक तय संख्या में रोजगार के अवसर पैदा किए जाएंगे.
  • और आखिरी एजेंडा है धीमे पड़े डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में तेजी लाना

लेकिन मसला ये है कि अगर पावर शेयरिंग फॉर्मूला बन गया और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम भी बन गया तो क्या सरकार बनाने का मौका मिलेगा?

तो सरकार बनाने के लिए कानून के पिच पर भी बैटिंग चल  रही है. शिवसेना ने कहा था कि समर्थन जुटाने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिला, इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट जाएगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में हमारे रिपोर्टर बता रहे हैं कि ये मामला अभी तक लिस्ट ही नहीं हुआ है.

शिवसेना सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई?

इसका जवाब ये हो सकता है कि अगर एक बार पार्टी अदालत में चली जाती तो राजभवन का दरवाजा बंद हो सकता था. शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस अगर राज्यपाल के सामने पर्याप्त संख्या का लेटर हाजिर करती हैं तो फिर ये उनके विवेक पर निर्भर करता है कि वो उन्हें फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाएं या नहीं.

आमतौर पर राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का मौका देना चाहिए क्योंकि मौजूदा विधानसभा उन्होंने निलंबित रखी है, भंग नहीं की है. लेकिन बीजेपी के फैक्टर को भी नहीं भूलना चाहिए. राज्यपाल मौका नहीं देते हैं तो ये पार्टियां कोर्ट जा सकती हैं, जहां से उन्हें राहत मिल सकती है...और अगर ये मामला कोर्ट पहुंचा तो सरकार बनने में काफी समय लग सकता है...

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