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मौलाना आजाद फेलोशिप क्यों और किसे दी जा रही थी, क्या वाकई ये 'ओवरलैप' था?

मौलाना आजाद फेलोशिप को केंद्र ने बंद कर दिया है. इसपर शिक्षाविदों ने क्विंट से बातचीत में कई गंभीर सवाल उठाए.

आश्ना भूटानी
शिक्षा
Published:
<div class="paragraphs"><p>मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप बंद: छात्रों ने फूंका स्मृति ईरानी का पुतला, विपक्ष खफा</p></div>
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मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप बंद: छात्रों ने फूंका स्मृति ईरानी का पुतला, विपक्ष खफा

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship), जिसने अब तक हजारों अल्पसंख्यक छात्रों को फायदा पहुंचाया, इस फेलोशिप को केंद्र सरकार ने बंद करने का फैसला लिया है. इसके जवाब में केंद्र ने कहा है कि ये अन्य फेलोशिप से ओवरलैप करती है.

8 दिसंबर की एक प्रेस रिलीज में अल्पसंख्यक मंत्रालय (Union Ministry of Minority Affairs) ने कहा,

"MANF योजना सरकार द्वारा लागू की गई और अन्य उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न अन्य फेलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप करती है और अल्पसंख्यक छात्र पहले से ही ऐसी कई योजनाओं के तहत कवर किए गए हैं, इसलिए सरकार ने MANF योजना को 2022-23 से बंद करने का फैसला किया है."

क्विंट के साथ बातचीत में शिक्षाविदों ने केंद्र के इस फैसले पर सवाल उठाया, और ये भी चिंता जताई कि अल्पसंख्यक छात्रों, खासकर मुस्लिम छात्रों पर इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा.

अल्पसंख्यक छात्रों के लिए फेलोशिप क्यों महत्वपूर्ण थी ?

यूपीए सरकार (UPA Government) के तहत शुरू हुई ये फेलोशिप, सच्चर कमेटी (Sachar Committee) की सिफारिशों को लागू करने के उपायों का एक हिस्सा थी. इसमें भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन किया गया था.

"मंडल आयोग और सच्चर समिति की रिपोर्ट जैसी विभिन्न रिपोर्ट्स से रिसर्च के बाद मिले सबूतों को देखना महत्वपूर्ण है, जो दिखाते हैं कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी शैक्षिक रूप से पिछड़ी हुई है. सच्चर समिति की रिपोर्ट मुस्लिम छात्रों के ड्रॉप-आउट दर जैसी कठोर वास्तविकताओं को उजागर करती है. यह फेलोशिप एक अद्भुत योजना थी. ये बहुत महत्वपूर्ण भी थी विशेष रूप से निम्न-आय वाले लोगों के लिए."
हरीश वानखेड़े, सेंटर फॉर पॉलिटिकल साइंस सहायक प्रोफेसर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

ये योजना हायर एजुकेशन करने वाले मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई और जैन छात्रों के लिए थी. फेलोशिप के लिए डिग्रियों में फुल टाइम और पार्ट टाइम एम.फिल (M.Phill) और पीएचडी (Ph.D.) में विज्ञान, मानविकी, सामाजिक विज्ञान और इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में डिग्री शामिल थी. फेलोशिप का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों की मदद करना था, जो विशेष रूप से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अपनी उच्च शिक्षा ले रहे हैं.

फेलोशिप वेबसाइट पर मानकों के मुताबिक, लाभार्थियों या उनके अभिभावकों की सालाना आय सभी स्रोतों से छह लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. फेलोशिप प्रति माह 10,000 रुपये से 28,000 रुपये के बीच मदद देती है.
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दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एन. सुकुमार ने कहा, "परिवार के समर्थन के अलावा, फेलोशिप अल्पसंख्यक छात्रों को यात्रा, किताबें और अन्य शैक्षणिक लागतों को कवर करने में मदद करेगा." इस फेलोशिप का लाभ ज्यादातर कम आय वाले मुस्लिम छात्र उठाते हैं.

"सरकार अल्पसंख्यक छात्रों के लिए धन क्यों कम कर रही है, जब शिक्षा ही उनके उत्थान का एकमात्र तरीका है."
एन. सुकुमार, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग. दिल्ली विश्वविद्यालय

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के इतिहास विभाग के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रजावी ने कहा, "इस कदम से मुस्लिम छात्रों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. फेलोशिप निम्न-आय समूहों की सहायता करती थी. ये मुसलमानों और महिलाओं को प्रभावित करेगा, क्योंकि फेलोशिप उन्हें घर से विरोध के बावजूद आर्थिक स्वतंत्रता देगी."

ओवरलैप क्यों और कहां?

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, "मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप अन्य फेलोशिप से ओवरलैप हो रही है", पर उन्होंने ये साफ नहीं किया कि कौन सी फेलोशिप MANF के साथ ओवरलैप कर रही थी.

इस बारे में बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में आर्ट फैकल्टी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर, अपूर्वानंद कहते हैं, "ये एक अस्पष्ट कारण है. ये नियम है कि एक छात्र एक से ज्यादा स्कॉलरशिप या फेलोशिप का लाभ नहीं उठा सकता है. वे इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि फेलोशिप किस स्कॉलरशिप के साथ ओवरलैप होती है. प्रकृति में कोई भी दो स्कॉलरशिप समान नहीं हैं. इसलिए, अगर वास्तव में कोई ओवरलैप या दोहराव है, तो उन्हें उस पर अधिक विवरण देना चाहिए."

प्रोफेसर रेजावी ने कहा कि अन्य छात्रवृत्तियां भी हैं, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को कवर करती हैं. हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति सीमित ही हैं.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission) की जूनियर रिसर्च फेलोशिप (Junior Research Fellowship) योजना का जिक्र करते हुए रेजावी कहते हैं कि ये योग्यता परीक्षा के आधार पर सभी के लिए है.

"हर कोई जेआरएफ के लिए योग्य नहीं हो पाता. इसलिए, आर्थिक रूप से पिछड़े मुस्लिम छात्रों के लिए MANF एक बहुत अच्छा विकल्प था. अगर सरकार वास्तव में ओवरलैप के बारे में कह रही है, तो वैकल्पिक कार्यक्रमों के नाम क्यों नहीं प्रदान करती है?

प्रोफेसर वानखेड़े ने क्विंट से कहा, "फेलोशिप को बंद करने के लिए कुछ ठोस कारण दिए जाने चाहिए थे, और अगर इसे बंद किया जा रहा है, तो क्या छात्रों के लिए कोई बेहतर फ्रेमवर्क या नीति है?"

इस तरह की फेलोशिप क्यों महत्वपूर्ण हैं, इस पर जानकारी देते हुए, अपूर्वानंद ने कहा, "ऐसी स्कॉलरशिप और फेलोशिप महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे एक निश्चित समुदाय के व्यक्तियों का उत्थान करते हैं, और वही व्यक्ति इन समुदायों का हिस्सा हैं. इसलिए भले ही 10 मुस्लिम छात्रों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए फेलोशिप मिल रही हो, लेकिन इसका असर समुदाय के प्रोफाइल के निर्माण पर पड़ता है."

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