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मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (Maulana Azad National Fellowship), जिसने अब तक हजारों अल्पसंख्यक छात्रों को फायदा पहुंचाया, इस फेलोशिप को केंद्र सरकार ने बंद करने का फैसला लिया है. इसके जवाब में केंद्र ने कहा है कि ये अन्य फेलोशिप से ओवरलैप करती है.
8 दिसंबर की एक प्रेस रिलीज में अल्पसंख्यक मंत्रालय (Union Ministry of Minority Affairs) ने कहा,
क्विंट के साथ बातचीत में शिक्षाविदों ने केंद्र के इस फैसले पर सवाल उठाया, और ये भी चिंता जताई कि अल्पसंख्यक छात्रों, खासकर मुस्लिम छात्रों पर इस फैसले का क्या प्रभाव पड़ेगा.
यूपीए सरकार (UPA Government) के तहत शुरू हुई ये फेलोशिप, सच्चर कमेटी (Sachar Committee) की सिफारिशों को लागू करने के उपायों का एक हिस्सा थी. इसमें भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन किया गया था.
ये योजना हायर एजुकेशन करने वाले मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ईसाई और जैन छात्रों के लिए थी. फेलोशिप के लिए डिग्रियों में फुल टाइम और पार्ट टाइम एम.फिल (M.Phill) और पीएचडी (Ph.D.) में विज्ञान, मानविकी, सामाजिक विज्ञान और इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में डिग्री शामिल थी. फेलोशिप का उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों की मदद करना था, जो विशेष रूप से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अपनी उच्च शिक्षा ले रहे हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एन. सुकुमार ने कहा, "परिवार के समर्थन के अलावा, फेलोशिप अल्पसंख्यक छात्रों को यात्रा, किताबें और अन्य शैक्षणिक लागतों को कवर करने में मदद करेगा." इस फेलोशिप का लाभ ज्यादातर कम आय वाले मुस्लिम छात्र उठाते हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के इतिहास विभाग के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रजावी ने कहा, "इस कदम से मुस्लिम छात्रों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. फेलोशिप निम्न-आय समूहों की सहायता करती थी. ये मुसलमानों और महिलाओं को प्रभावित करेगा, क्योंकि फेलोशिप उन्हें घर से विरोध के बावजूद आर्थिक स्वतंत्रता देगी."
अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, "मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप अन्य फेलोशिप से ओवरलैप हो रही है", पर उन्होंने ये साफ नहीं किया कि कौन सी फेलोशिप MANF के साथ ओवरलैप कर रही थी.
इस बारे में बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में आर्ट फैकल्टी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर, अपूर्वानंद कहते हैं, "ये एक अस्पष्ट कारण है. ये नियम है कि एक छात्र एक से ज्यादा स्कॉलरशिप या फेलोशिप का लाभ नहीं उठा सकता है. वे इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि फेलोशिप किस स्कॉलरशिप के साथ ओवरलैप होती है. प्रकृति में कोई भी दो स्कॉलरशिप समान नहीं हैं. इसलिए, अगर वास्तव में कोई ओवरलैप या दोहराव है, तो उन्हें उस पर अधिक विवरण देना चाहिए."
प्रोफेसर रेजावी ने कहा कि अन्य छात्रवृत्तियां भी हैं, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को कवर करती हैं. हालांकि, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए छात्रवृत्ति सीमित ही हैं.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission) की जूनियर रिसर्च फेलोशिप (Junior Research Fellowship) योजना का जिक्र करते हुए रेजावी कहते हैं कि ये योग्यता परीक्षा के आधार पर सभी के लिए है.
प्रोफेसर वानखेड़े ने क्विंट से कहा, "फेलोशिप को बंद करने के लिए कुछ ठोस कारण दिए जाने चाहिए थे, और अगर इसे बंद किया जा रहा है, तो क्या छात्रों के लिए कोई बेहतर फ्रेमवर्क या नीति है?"
इस तरह की फेलोशिप क्यों महत्वपूर्ण हैं, इस पर जानकारी देते हुए, अपूर्वानंद ने कहा, "ऐसी स्कॉलरशिप और फेलोशिप महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे एक निश्चित समुदाय के व्यक्तियों का उत्थान करते हैं, और वही व्यक्ति इन समुदायों का हिस्सा हैं. इसलिए भले ही 10 मुस्लिम छात्रों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए फेलोशिप मिल रही हो, लेकिन इसका असर समुदाय के प्रोफाइल के निर्माण पर पड़ता है."
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