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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) से ठीक पहले मोदी सरकार (Modi Govt) ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत मजदूरी बढ़ा दी है. केंद्र सरकार ने 3 से 10% तक मजदूरी में बढ़ोतरी की है. बदली हुई मजदूरी की दरें 1 अप्रैल से लागू हो जाएंगी.
लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल है कि क्या महंगाई के इस दौर में इस मामूली बढ़ोतरी से मजदूरों का गुजारा हो जाएगा? बताएंगे आपको केंद्र सरकार पर राज्यों का कितना बकाया है? साथ ही उस रिपोर्ट के बारे में भी बात करेंगे जो बताती है कि न्यनतम मजदूरी कितनी होनी चाहिए?
नोटिफिकेशन के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सबसे ज्यादा मजदूरी में बढ़ोतरी गोवा में 10.56 फीसदी (34 रुपये) और कर्नाटक में 10.44 फीसदी (33 रुपये) हुई है. आंध्र प्रदेश में 10.29%, तेलंगाना में 10.29% और छत्तीसगढ़ में 9.95% का इजाफ हुआ है.
सबसे ज्यादा मजदूरी हरियाणा में 374 रुपए और सबसे कम मजदूरी 234 रुपए अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में है. वहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगभग 10% की वृद्धि देखी गई है- मौजूदा 221 रुपये से 243 रुपये प्रति दिन.
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सबसे कम 3 प्रतिशत (7 रुपये) की बढ़ोतरी देखने को मिली है. हरियाणा, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, राजस्थान, केरल और लक्षद्वीप जैसे आठ राज्यों में 5% से नीचे की बढ़ोतरी देखने को मिली है.
द हिंदू बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, मनरेगा योजना का संचालन करने वाली ग्रामीण विकास मंत्रालय ने हाल ही में संशोधित मजदूरी दरों को अधिसूचित करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति ली थी क्योंकि आगामी आम चुनावों के लिए देश भर में आदर्श आचार संहिता पहले से ही लागू है.
मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 के आंकड़ों के हिसाब से मनरेगा योजना में 14.34 करोड़ एक्टिव वर्कर्स हैं. ऐसे में सरकार के इस फैसले से इन मजदूरों की आय में बढ़ोतरी होगी.
बता दें कि इस साल की शुरुआत में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति ने राज्यों में मनरेगा मजदूरी में भारी अंतर की ओर इशारा किया था. इसके साथ ही कहा था कि जीवन यापन की बढ़ती लागत के हिसाब से मजदूरी अपर्याप्त है और इसके अनुरूप नहीं है. पैनल ने न्यूनतम मजदूरी पर केंद्र सरकार की कमेटी (अनूप सत्पथी कमेटी) की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया था.
साल 2019 में अनूप सत्पथी कमेटी ने न्यूनतम मजदूरी पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में जुलाई 2018 तक भारत के लिए आवश्यकता आधारित राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 375 रुपये प्रति दिन (या 9,750 रुपये प्रति माह) तय करने की सिफारिश की गई थी.
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 22 राज्यों में मनरेगा के तहत प्रतिदिन मिलने वाली मजदूरी 300 रुपये से कम है.
अनूप सत्पथी कमेटी का कहना था कि मनरेगा में दर तय करते समय महंगाई का भी ख्याल रखा जाए. उनके NSSO-CES डेटा के अनुसार हर पांच साल में उपभोग टोकरी (consumption basket) की समीक्षा करने की भी सिफारिश की थी. वहीं जीवन यापन की लागत में बदलाव के अनुसार, हर छह महीने में कम से कम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के अनुरूप मूल न्यूनतम वेतन को संशोधित और अपडेट करने की सिफारिश की थी.
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2024 में कृषि श्रमिकों (AL) और ग्रामीण श्रमिकों (RL) के लिए पूरे भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) (आधार: 1986-87=100) 1 अंक बढ़कर क्रमशः 1258 और 1268 पर पहुंच गई है.
CPI-AL और CPI-RL पर आधारित महंगाई की दर जनवरी 2024 में 7.52% और 7.37% रही, जबकि दिसंबर 2023 में यह 7.71% और 7.46% थी. वहीं 2022 दिसंबर में CPI-AL और CPI-RL क्रमश: 6.85% और 6.88% थी.
दिसंबर 2018 से लेकर दिसंबर 2023 के बीच उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सामान्य) के आंकड़ों की तुलना करें तो ग्रामीण इलाकों में 4.28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में CPI (सामान्य) 1.65% था, जबकि 2023 में ये बढ़कर 5.93% तक पहुंच गया.
वहीं उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक दिसंबर 2018 में -2.84% था, जो दिसंबर 2023 में बढ़कर 8.97 फीसदी हो गया है.
साल 2005 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने MGNREGA की शुरुआत की थी. यह विश्व के सबसे बड़े रोजगार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है. यह योजना ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम एक सौ दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है. लेकिन सवाल है कि क्या मजदूरों को 100 दिन का रोजगार मिलता है?
मनरेगा की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में प्रति परिवार औसतन 51.68 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया गया. वहीं 2022-23 में प्रति परिवार मात्र 47.83 दिन का रोजगार मिला था. इससे पहले की बात करें तो 2021-22 में 50.07 और 2020-21 में औसतन 51.52 दिन का काम प्रति परिवार मिला था.
जानकारों का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा समय से राज्यों के बकाया फंड का भुगतान नहीं करने से काम की मांग में कमी आई है, वहीं वेतन भुगतान में भी देरी हुई है. इस तरह की बाधाओं के कारण मजदूर नियमित रूप से मनरेगा कार्य करने से हतोत्साहित हो रहे हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में MGNREGA के लिए खजाना खोल दिया. साल 2023-24 में मनरेगा का अनुमानित बजट 60,000 करोड़ रुपए था, जो 2024-25 में बढ़ाकर 86,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है.
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से मनरेगा पर बजट आवंटन हर साल बढ़ा है. 2014-15 में मनरेगा का बजट आवंटन 33,000 करोड़ से बढ़कर 2019-20 में 60,000 करोड़ तक पहुंच गया है.
2021-22 और 2022-23 में मनरेगा बजट में फिर मामूली बढ़त देखने को मिली थी. 2022-23 में 73000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और 2023-24 में आवंटन को घटा कर 60,000 करोड़ कर दिया गया था.
चलिए अब आपको बताते हैं कि किन राज्यों का कितना फंड बकाया है, यानी केंद्र सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है. दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान DMK सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने मनरेगा के तहत बकाया राशि का मुद्दा उठाया था. जिसका जवाब ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दिया था. संसद में पेश किए गए जवाब के मुताबिक, 29 नवंबर 2023 तक भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का कुल 6,960 करोड़ रुपया बकाया है. इसमें से 2,020 करोड़ वेतन और 4,939 करोड़ रुपया सामग्री का बकाया है.
टॉप 10 राज्यों का कुल बकाया करीब 5,196 करोड़ रुपये हैं. दादरा नगर हवेली और दमन-दीव का एक भी रुपया बकाया नहीं है. सभी राज्यों में से गोवा का बकाया मात्रा 23.48 लाख रुपये है.
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