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मनरेगा का पिछले 10 साल में सबसे बड़ा अनुमानित बजट, चुनाव से पहले 'गरीब' वोटरों पर नजर?

Budget: साल 2023-24 में मनरेगा का बजट 60,000 करोड़ रुपए था, जो 2024-25 में बढ़ाकर 86,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

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चुनावी साल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने जो बजट (Budget 2024-25) पेश किया उसे लोकलुभावन भले ही न माना जा रहा हो लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा - MGNREGA) के बजट में सरकार ने बढ़ोतरी कर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को संदेश दे दिया है.

साल 2023-24 में मनरेगा का अनुमानित बजट 60,000 करोड़ रुपए था, जो 2024-25 में बढ़ाकर 86,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

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मांग पर हर पंजीकृत ग्रामीण परिवार को 100 दिन का रोजगार देने वाली राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA), महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है जो ग्रामीण आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को सपोर्ट करती हैं. इस समय नरेगा के तहत 20.5 करोड़ से अधिक लोग पंजिकृत हैं.

कोरोना महामारी के दौरान नरेगा लाखों ग्रामीण लोगों के लिए महत्वपूर्ण जीवन रेखा रही क्योंकि उस समय लोग वापस अपने घर लौट आए थे. अर्थशास्त्री मानते हैं कि नरेगा बजट हमेशा अपर्याप्त ही रहता है.

पिछले बजट में सरकार ने नरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए थे जो पहले 6 महीने में खत्म हो गया था. दरअसल सरकार ने 2022-23 की तुलना में नरेगा का बजट 2023-24 से भी कम था.

ऊपर दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि नरेगा का अनुमामित बजट हमेशा उसके संशोधित बजट से कम ही रहा. इस बार का बजट भले ही ज्यादा है लेकिन वह भी 2023-24 के संशोधित बजट के बराबर ही है.

  • 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से नरेगा पर बजट आवंटन हर साल बढ़ा है. 2014-15 में नरेगा का बजट आवंटन 33,000 करोड़ से बढ़कर 2019-20 में 60,000 करोड़ तक पहुंच गया है.

  • 2020 में जब महामारी ने दस्तक दी उस समय मोदी सरकार ने नरेगा बजट के आवंटन में मामूली बढ़ोतरी की थी. लेकिन उस दौरान सरकार ने नरेगा पर वास्तव में 1,10,000 करोड़ के आसपास खर्च किया था. जाहिर है महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों में लोगों की वापसी हुई थी जिस वजह से नरेगा के तहत मिलने वाले काम की मांग में बढ़ोतरी हुई थी.

  • 2021-22 और 2022-23 में नरेगा बजट में फिर मामूली बढ़त देखने को मिली थी. 2022-23 में 73000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और 2023-24 में आवंटन को घटा कर 60,000 करोड़ कर दिया गया था. उस समय सरकार का मानना था कि कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था उभर रही है और रोजगार लौट रहे हैं. लेकिन वास्तविकता इससे उलट रही. बेरोजगारी में बढ़ोतरी हुई, नरेगा के तहत मिलने वाले काम की मांग में भी बढ़ोतरी हुई.

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