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वीडियो एडिटर: कुणाल मेहरा
वीडियो प्रोड्यूसर: शादाब मोइज़ी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अन्य राज्यों में काम करने गए बिहारी मजदूरों के लिए 'प्रवासी' शब्द के इस्तेमाल से ऐतराज है. नीतीश कुमार ये बोलते नहीं थकते है कि प्रवासी मजदूरों ने जो कष्ट झेला है, वो उससे दुखी हैं और उनके लिए बिहार में ही रोजगार का इंतजाम किया जा रहा है.
बिहार की जमीनी हकीकत ये है की क्वॉरन्टीन सेंटर से निकले अभी हफ्ता-दस दिन हुए नहीं कि रोजगार और पैसे की अभाव में मजदूर वापस पंजाब और हरियाणा के खेतों में पसीना बहाने निकल पड़े हैं. खेतों में धान रोपने के लिए बसें भिजवा कर सीमांचल के इलाके से मजदूरों को ले जाया रहा है.
अररिया जिले के जोकीहाट से ऐसी ही एक बस शनिवार शाम पंजाब के लिए निकली.
बस में बैठे मुजफ्फर आलम पंजाब से पैदल अपने गांव मटियारी लौटे थे, क्वॉरन्टीन से निकलने के बाद कुछ ही दिन घर पर रहे. पैसे की किल्लत के कारण एक महीने के अंदर ही अब वापस पंजाब के खेतों में काम करने जा रहे हैं. बस में बैठे मुजफ्फर ने बताया,
उसी बस पर बैठे मोइनुद्दीन 15 मई को ही पंजाब से वापस आये हैं, अब घर पर एक वक्त खाने का पैसा भी नहीं है. मोइनुद्दीन ने बताया, “6 लोगों का परिवार है. हम कर्ज में डूबे हैं. जब तक बाहर नहीं जाएंगे यहां कोई गुजारा ही नहीं है.”
मटियारी के ग्रामीण का कहना है किअकेले इस हफ्ते 5-6 बसें मजदूरों को लेकर पंजाब जा चुकी है. ऐसे ही एक बस पूर्णिया के अमौर प्रखंड से मजदूरों को लेकर शनिवार को हरियाणा के पानीपत के लिए निकली. बस में बैठे जावेद जो एक प्रवासी मजदूर हैं बताते हैं,
इसी बस में बैठे नैयर पहले कभी बाहर नहीं गए, लेकिन लॉकडाउन ने वो दर्द दिया की अब वो पानीपत के रास्ते निकल पड़े हैं.
अररिया के फॉरबिसगंज के निवासी मोहम्मद अनवर चेन्नई में AC का काम करते थे, कमाई अच्छी थी. लॉकडाउन में वापस घर तो आ गए, लेकिन पिता के इलाज में सारी कमाई खर्च हो गई.
अनवर बताते हैं, “अब चेन्नई में फिर से काम शुरू हो गया है, बार बार हमें कॉल करके बुलाया जा रहा है. लेकिन लॉकडाउन में हमने जो मुसीबत झेला अब वापस जाने की हिम्मत नहीं हो रही है.”
(तंज़ील आसिफ एक स्वतंत्र पत्रकार और 'मैं मीडिया' के संस्थापक हैं)
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