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बिहार की एक बाढ़ पीड़िता का सवाल- ‘कितनी भूख बर्दाश्त करें’?

कोरोना के संक्रमण के बीच बिहार में आई बाढ़ से करीब 84 लाख लोग प्रभावित

विष्णु नारायण
न्यूज वीडियो
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

वीडियो प्रोड्यूसर: शादाब मोइज़ी

कोरोना के संक्रमण के बीच बिहार में आई बाढ़ से करीब 84 लाख लोग प्रभावित हैं. बिहार में इस बार बाढ़ उन इलाकों में भी आई है, जहां आम तौर पर नहीं आती थी. पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) में संग्रामपुर-भवानीपुर में गंडक का तटबंध टूटा और देखते ही देखते दर्जन भर से अधिक ब्लॉक और पंचायत जलमग्न हो गए. लाखों लोगों का आशियाना एक-ब-एक छिन गया. लोग अपने घरों को छोड़कर तटबंध (बांध) पर रहने को मजबूर हैं.

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मुजफ्फरपुर के उस्ती पंचायत की रहने वालीं रमापति देवी कहती हैं, 'जब चारों तरफ पानी भरने लगा तो किसी तरह जान बचाकर बांध पर आ गए. सारा सामान छोड़ना पड़ा. कोरोना की वजह से कोई कमाई भी नहीं हो रही. किसी तरह उधार लेकर गुजारा कर रहे, लेकिन उधार तो आखिर चुकाना पड़ेगा. समझ नहीं आ रहा कि क्या करें?'

उस्ती पंचायत की ही रहने वालीं सविता देवी कहती हैं-

बड़ा कठिन समय आ गया है. जो थोड़ा-बहुत गेहूं था वो भी पानी में बह गया. घर पर दो जन काम करने वाले भी हैं तो काम नहीं मिल रहा. जानवरों को खिलाने के लिए चारा नहीं है. बहुत बुरा हाल हो गया है. बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है. ऊपर से माथे पर दो-दो लोन हैं. लोन वाला भी रोज तगादा कर रहा है.

वैसे तो सरकार की ओर से पूरे प्रदेश में 6000 कम्युनिटी किचन चलवाने के दावे हैं, लेकिन हमारी नजरों से हमें एक भी नहीं दिखा. चला भी था तो महज दो से तीन दिनों में बंद हो गया. उस्ती पंचायत के ही वार्ड नंबर 6 के वार्ड सदस्य अयोध्या राम कम्युनिटी किचन के सवाल पर कहते हैं, 'जी, तीन दिनों तक चला. लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया तो बंद कर दिया गया.'

इस पूरे पंचायत में कम्युनिटी किचन चलने और बंद होने के सवाल पर पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि (मुखिया पति) राम बदन सहनी कहते हैं, 'पंचायत के अलग-अलग वार्डों में 7 से 10 दिनों तक कम्युनिटी किचन चला. हमारे उनसे पलटकर सवाल किए जाने पर कि लोग तो सिर्फ 3 से 4 दिनों तक ही चलने की बात कह रहे. तो उन्होंने ब्लॉक का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने कहा कि ब्लॉक से राशन मिलना ही बंद हो गया तो वे क्या कर सकते हैं?

एक महीने से बांध पर रह रहे लोग, मुआवजे में भी है अनियमितता

हालांकि इस पूरे इलाके में बाढ़ को आए हुए 1 महीने से अधिक का समय हो चुका है. लोग अभी भी बांध पर रहने को मजबूर हैं. अपना सब कुछ गवां चुके हैं. सरकार ने मुआवजे के तौर पर 6,000 रुपये देने की बात कही है लेकिन उसमें भी घोर अनियमितता देखने-सुनने को मिली. अकेले उस्ती पंचायत की बात करें तो लगभग 620 परिवारों (लोगों) का नाम मुआवजे की लिस्ट में नहीं है. हमारे इस सवाल से मुखिया प्रतिनिधि भी इत्तेफाक रखते हैं. मुखिया प्रतिनिधि कहते हैं-

‘हमने तो तमाम वार्ड सदस्यों की ओर से आई लिस्ट अंचलाधिकारी को सौंपी थी. अब उस लिस्ट से 620 लोगों के नामों के गायब होने की बात सामने आ रही है. हमने इस मामले को लेकर फिर से शिकायत की है. देखिए अंचलाधिकारी क्या करते हैं?’

यहां हम आपको खास तौर पर बताते चलें कि बिहार के भीतर कोसी और सीमांचल का इलाका हर साल बाढ़ की चपेट में कमोबेस आता है. इस इलाके में बुजुर्गों ने भी ऐसा पानी और जलजमाव कभी नहीं देखा था. लोग इसके लिए तैयार भी नहीं थे. जानवरों का चारा बह जाने की वजह से एकदम से महंगा हो गया है. दोगुनी कीमत पर बिक रहा. ऐसे में बहुतों की उम्मीदें सरकार की ओर से घोषित 6,000 रुपये के मुआवजे की राशि पर है. इस संदर्भ में भी हमें कई असंतुष्ट लोग मिले. उस्ती पंचायत की ही रहने वालीं शैल देवी हमसे कहती हैं, हमको न घर बनाने का पैसा (पीएम आवास योजना) मिला और बाढ़ मुआवजे वाली लिस्ट से भी नाम कट गया. कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही. विधायक एक दिन झांकने तक नहीं आए'

इस पूरे मामले पर क्या कहते हैं विधायक जी?

इलाके में न रहने, कम्युनिटी किचन और मुआवजे की राशि में अनियमितता के सवाल पर हमने साहेबगंज विधानसभा के प्रतिनिधि राम विचार राय से बात की. विधायक कहते हैं-

देखिए मेरी अनुपस्थिति का कोई सवाल ही नहीं बनता. मैं या तो पटना में रहा हूं या फिर अपने क्षेत्र में. अभी इस बीच भी उस्ती पंचायत के लोग मुझसे आकर मिले थे.’ मुआवजे की राशि और लिस्टिंग में अनियमितता के सवाल पर वे कहते हैं, ‘देखिए इस संदर्भ में एक अनुश्रवण समिति बनी है. जिस किसी का भी नाम होगा उन्हें मुआवजे की राशि मिलेगी.

अंत में यही सवाल उठते हैं कि ऐसे में जब बिहार के भीतर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 84 लाख और धरातल पर देखें तो 1 करोड़ से भी अधिक लोग (माल-मवेशी की गिनती नहीं) इस वर्ष बाढ़ की वजह से तबाही की कगार पर हैं. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से धंधा-पानी मंदा चल रहा है. तो क्या बाढ़ को बिहार के भीतर होने वाले चुनाव का मुद्दा नहीं होना चाहिए? क्या इस मुद्दे पर टीवी चैनल्स में पैनल डिस्कशन और डिबेट नहीं होने चाहिए?

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