देश में 24 घंटे में 86 रेप, 'अभूतपूर्व विकास' का कड़वा सच

NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या के कारण जिनकी जान जा रही है उनमें से हर चौथा व्यक्ति दिहाड़ी मजदूर है.

शादाब मोइज़ी
न्यूज वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>NCRB रिपोर्ट सिर्फ आंकड़े नहीं, सरकारों की नाकामी का कच्चा चिट्ठी है.</p></div>
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NCRB रिपोर्ट सिर्फ आंकड़े नहीं, सरकारों की नाकामी का कच्चा चिट्ठी है.

(फोटो: क्विंट ग्राफिक्स)

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भारत में

  • हर 24 घंटे में 86 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं

  • हर 24 घंटे में 206 लड़कियों की किडनैपिंग

  • आत्महत्या के कारण जिनकी जान रही है उनमें से हर चौथा व्यक्ति दिहाड़ी मजदूर है

  • हर दिन गरीबी और बेरोजगारी की वजह से 14 लोगों की मौत खुदकुशी के कारण हो रही है.

अब किसी को इन आकंड़ों के बाद भी गरीबी, बेरोजगारी, महिला, दलित, आदिवासी, मजदूरों के खिलाफ बढ़ते अपराध नहीं दिखते तो हम ऐसे कुंभकरणों से पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने क्राइम इन इंडिया 2021 रिपोर्ट जारी की है. ये रिपोर्ट भारत में अपराध की तस्वीर बताती है. बेरोजगार, किसान, दिहाड़ी मजदूर, महिलाएं सबकी जिंदगी से जुड़े डरावने आंकड़े सामने आए हैं. लेकिन अगर आपको अपने देश के भयावाह हालात से जुड़े इन आंकड़ो को आसान भाषा में समझना है तो आपको ये आर्टिकल आखिरी तक पढ़ना होगा.

सबसे पहले बात उनकी जिनके बिना आपके सर पर न छत हो सकती, न चलने के लिए सड़क, न अस्पताल, न कॉलेज. हम बात कर रहे हैं दिहाड़ी मजदूरों की.

NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 2021 में देशभर में 1,64,000 से ज्यादा लोगों की जान आत्महत्या की वजह से चली गई. और इन एक लाख 64 हजार में 42004 दिहाड़ी कामगार थे. यानी मरने वालों में से 25 फीसदी दिहाड़ी मजदूर.

पिछले साल के आंकड़े को देखें तो आत्महत्या की कुल संख्या 1,53,052 थी, जिसमें से 37,666 दिहाड़ी मजदूर थे. साल 2019 में 32,559 दिहाड़ी मजदूरों की मौत आत्महत्या के कारण हुई थी.

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इसे ऐसे समझिए कि जब 2014 में मोदी सरकार बनी थी तब 100 आत्महत्या के कारण हुई मौतों में से 12 दिहाड़ी मजदूर थे, लेकिन अब 8 साल में ये आंकड़ा दोगुना हो गया है. 2014 में देश में आत्महत्या से मरने वाले 1,31,666 लोगों में से 15,735 दिहाड़ी कामगार थे और 2021 में 42004 daily wage earner ने अपनी जान ले ली.

सोचिए जब देश में सब चंगा सी का नारा दिया जा रहा है तब इन मजदूरों को क्यों अपनी जिंदगी खत्म करनी पड़ी?

किसान और खेतिहर मजदूरों की दुर्दशा भी जान लीजिए

देश की संसद में खड़े होकर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि पिछले 8 सालों में सरकार ने इतना काम किया है कि अब किसान आत्महत्या नहीं करते, तो उन्हें आप ये वीडियो देखकर बता दीजिएगा कि

साल 2021 में कृषि से जुड़े 10,881 लोगों की मौत आत्महत्या से हुई. इनमें 5,318 किसान और 5,563 खेतिहर मजदूर थे. साल 2020 में कृषि से जुड़े 10,677 लोगों की मौत आत्महत्या से हुई. इनमें 5,579 किसान और 5,098 खेतिहर मजदूर थे.

हां, ये सच है कि साल 2020 और 2019 की तुलना में 2021 में “farmer/cultivator” की आत्महत्या में गिरावट दर्ज की गई है लेकिन "कृषि मजदूरों" के आत्महत्या की संख्या तेजी से बढ़ी है.

खेतिहर मजदूरों से जुड़ा डेटा बता रहा है कि ये शहरों से भागे तो उन्हें गांवों में भी पनाह नहीं मिली है. कोविड ने सताया और सौतेले शहर ने ठुकराया तो दिहाड़ी मजदूर गांव पहुंचे. डेटा बताता है कि मनरेगा के तहत रोजगार की मांग दोगुनी हो गई लेकिन फिर भी हाल बेहाल है और नतीजा क्या होगा शायद NCRB का डेटा दिखा रहा है.

महिलाओं के खिलाफ अपराध

नारी सम्मान, नारी सुरक्षा के बयानों के बीच साल 2020 की तुलना में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं. जहां साल 2020 में 3 लाख 71 हजार 503 मामले दर्ज हुए थे. वहीं साल 2021 में 4 लाख 28 हजार 278 मामले दर्ज किए गए हैं. मतलब 15.3 फीसदी ज्यादा क्राइम.

इसे ऐसे समझिए कि भारत में हर एक घंटे में 3 रेप केस दर्ज होते हैं. हां, ये वो केस हैं जो दर्ज हो पाते हैं. बाकी तो भगवान जाने. साल 2021 में भारत में औसतन हर 74 सेकेंड में महिलाओं के खिलाफ एक अपराध दर्ज किया गया है.

राज्यों का हाल

जो कांग्रेस महिला सुरक्षा पर बीजेपी पर हमलावर रहती है उसके सत्ता वाले राज्य राजस्थान ने महिलाओं के खिलाफ अपराध में देश के बाकी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है. राजस्थान में साल 2021 में कुल 6,337 रेप के मामले सामने आए, जो साल 2020 के 5,310 के मुकाबले एक हजार ज्यादा हैं.

हां, बीजेपी जिस राज्य में सत्ता में है वो भी महिलाओं के खिलाफ अपराध में पीछे नहीं है. राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश में रेप के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए.

मध्यप्रदेश में 2020 में 2,339 मामले थे, जबकि 2021 में ये नंबर बढ़कर 2,947 हो गए. महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में मध्यप्रदेश के बाद महाराष्ट्र फिर उत्तर प्रदेश, फिर असम का नंबर आता है. महिलाओं के खिलाफ अपराध में टॉप पांच में से तीन में बीजेपी की सरकार है. एनकाउंटर और बुलडोजर के शोर पर सवार यूपी सरकार मुनादी करती है कि अब यहां अपराधी थर-थर कांपते हैं, लेकिन NCRB का डेटा बताता है कि मर्डर के मामले में यूपी नंबर वन प्रदेश है.

दलित-आदिवासी का क्या हाल?

देश को रामनाथ कोविंद के रूप में दलित राष्ट्रपति मिले और अब आदिवासी समाज से आने वाली द्रोपदी मुर्मू लेकिन दलित-आदिवासी के हालात न बदले.

NCRB के डेटा के मुताबिक साल 2021 में अनुसूचित जाति यानी दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,900 मामले दर्ज किए गए हैं, साल 2020 में 50,291 मामले दर्ज हुए थे. मतलब 1.2% की बढ़ोतरी.

और ये भी जान लीजिए कि अनुसूचित जातियों के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में हुए, जहां रोजाना औसतन 36 मामले दर्ज किए गए हैं.

वहीं अगर आदिवासियों की बात करें तो साल 2021 में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अपराध के कुल 8,802 मामले दर्ज किए गए थे. जोकि 2020 की तुलना में 6.4% की बढ़ोतरी है.

आदिवासियों के खिलाफ अपराध में बीजेपी शासित मध्यप्रदेश टॉप पर है. मध्य प्रदेश में औसतन हर दिन 7 मामले दर्ज किए गए हैं.

सवाल साफ और सीधा है, क्यों सरकारें महिलाओं से लेकर दलितों के खिलाफ अपराध को रोक नहीं पा रही है? क्यों दिहाड़ी मजदूरों की मौत नेशनल मुद्दा नहीं बन रही है? क्यों इंसानों की जिंदगी को सिर्फ आंकड़े समझकर फाइलों में दफन कर दिया जाता है? और अगर इन आंकड़ों से सरकार सीख लेकर ठोस कदम नहीं उठाएगी तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

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