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ओली का बीजिंग दौरा, क्या चीन के आंगन में खेल रहा है नेपाल? 

साल 2015 से भारत-नेपाल की दोस्ती में कुछ दरार जैसी दिख रही है

खेमता जोस
न्यूज वीडियो
Updated:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- प्रशांत चौहान

नेपाल और भारत करीबी दोस्त रहे हैं. दोनों देश सांस्कृतिक तौर से भी एक-दूसरे के करीब हैं. लेकिन साल 2015 से इस दोस्ती में कुछ दरार जैसी दिख रही है. यही वो साल था, जब से नेपाल ने चीन की दिशा में देखना शुरू कर दिया.

2015 में नेपाल ने अपना संविधान बनाया. भारत को ये रास नहीं आया कि उसके कहने के बावजूद मधेशी के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया.

मधेशी हैं तो नेपाली, लेकिन रीति-रिवाज और सांस्कृतिक तौर पर वो भारत के ज्यादा करीब हैं. वो रहते भी भारतीय बॉर्डर से सटे इलाकों में हैं. मधेशियों ने आरोप लगाया कि नेपाल के संविधान में उनका ध्यान नहीं रखा गया. नतीजा ये हुआ कि नेपाल के इन हिस्सों में जमकर प्रदर्शन हुए. 40 मधेशी मारे गए.

लेकिन इस मामले में भारत का रोल थोड़ा गड़बड़ रहा. भारत इसमें देर से कूदा और उसकी स्ट्रेटजी से मिले-जुले संदेश गए. हालात और खराब हो गए, जब मधेशियों ने नेपाल को जाने वाले जरूरी माल की सप्लाई रोक दी. ये सब नेपाल भूकंप के कुछ ही महीनों बाद हुआ और इकनॉमी को जोर का झटका लगा.

नेपाल ने इस मामले में भारत पर गंभीर आरोप लगाए. कहा कि संविधान के मुद्दे पर बदला लेने के लिए भारत ने मधेशियों का साथ दिया. भारत ने इससे इनकार किया.

इससे दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास से जो जगह खाली हुई है, अब उसे भरने के लिए नेपाल के पीएम केपी ओली चीन की ओर देख रहे हैं. और चीन तो जैसे तैयार बैठा है.

इसे ऐसे समझिए

भारत की करीबी रही नेपाल की पिछली सरकार ने चाइनीज कंपनी के साथ 1200 मेगावॉट के बूढ़ी गंडकी हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था, जिसकी लागत करीब 17 हजार करोड़ थी. नेपाल ने वजह तो वित्तीय चिंता बताई, लेकिन कहा गया कि ये दिल्ली से दोस्ती की वजह से हुआ. ओली ने सरकार बनाने के बाद अपने पहले ही इंटरव्यू में इस प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने का वादा कर दिया. भले नेपाल के सबसे ज्यादा कैपेसिटी वाला प्रोजेक्ट अभी भी इंडियन कंपनी के पास हो, लेकिन बूढ़ी गंडकी प्रोजेक्ट के रिवाइवल प्लान से ये साफ हो चुका है कि ओली की लीडरशिप में नेपाल फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है.

2015 में जब नेपाल भूकंप की तबाही से उबरने की कोशिश कर रहा था, तभी चीन को मौका मिल गया. हालांकि भारत ने भूकंप के तुरंत बाद भारी मदद भेजी, लेकिन चीन ने जबर्दस्त इनवेस्टमेंट के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में मदद की. 2016 में नेपाल को पैसा देने वाले देशों की लिस्ट में भारत टॉप 5 से बाहर हो गया और उसकी जगह चीन ने ले ली.

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मई 2017 में नेपाल ने चीन के बड़े विवादित प्रोजेक्ट वन बेल्ट, वन रोड यानी OBOR के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट से जुड़े MOU पर साइन कर दिए. OBOR का मकसद एशिया के इस पूरे हिस्से को सड़क से जोड़ना है. वहीं भारत ने OBOR से जुड़ने से ये कहते हुए पूरी तरह मना कर दिया है कि चीन की बनाई सड़क उन हिस्सों से गुजरेगी, जो भारत का हिस्सा हैं.

लंबे वक्त तक नेपाल OBOR से बाहर बना रहा, लेकिन चीन के साथ अपनी पहली ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज के बाद उसे लगा कि यही सही समय है रिश्ता मजबूत करने का.

इतिहास को देखें, तो नेपाल हमेशा भारत के करीब रहा है, चीन के नहीं. लेकिन हाल के उतार-चढ़ाव बता रहे हैं कि चीन की डिप्लोमेसी के लिए भारत तैयार नहीं दिख रहा. नेपाल के साथ भी और बाकी पड़ोसियों के साथ भी.

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Published: 21 Jun 2018,06:19 PM IST

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