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“बेंगलुरु में जंजीर से बांधकर कुत्ते को बेरहमी से पीटा”
“पकड़ा गया मालकिन की जान लेने वाला पिटबुल डॉग”
“कानपुर में पिटबुल और रॉटवीलर कुत्ते को पालने पर लगा प्रतिबंध”
“7 दिनों तक नगर निगम के पास कैद रहेगा पिटबुल”
लखनऊ, कानपुर, पंजाब, बेंगलुरु वगैरह में हुए हालिया पिटबुल के मामलों के बाद आपने ये हेडलाइंस पढ़ी होंगी. इन दिनों ये चर्चा काफी जोरों पर है कि देशभर में पिटबुल, अमेरिकन बुली, रोटवीलर जैसे कुत्तों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. कानपुर में तो लगा भी दिया गया है. कुछ लोग सोशल मीडिया पर यहां तक लिख रहे हैं कि देश में मौजूद इन नस्लों के कुत्तों को कैद कर देश से बाहर कर दिया जाना चाहिए. लेकिन पेट लवर्स इनका विरोध कर रहे हैं.
इस वीडियो में हम आपको इतिहास से ऐसे 5 मामलों के बारे में बताएंगे, जब बेजुबान जानवरों पर मुकदमे चलाए गए थे. और इंसानी अदालतों ने कुत्ता, सूअर, मुर्गा, चूहा और हाथी जैसे जानवरों को सजा सुनाई थी.
18वीं सदी में ऑस्ट्रिया के एक शहर में एक कुत्ते पर आरोप लगा कि उसने एक काउंसलर को काटा है. ये कुत्ता एक संगीतकार का था. मामला जब अदालत में गया तो संगीतकार को अपना कुत्ता न्यायिक अधिकारियों को सौंपना पड़ा. कुत्ते को एक साल कैद की सजा सुनाई गई थी. जज ने कुत्ते को एक खास पिंजरें में रखकर शहर के चौराहे पर रखने के आदेश दिए थे, ताकि बाकि कुत्तों और अपराधियों को सबक मिल सके.
1474 में स्विट्जरलैंड की एक अदालत ने एक मुर्गे को जिंदा जला दिए जाने की सजा सुनाई थी. अपराध था कि मुर्गे ने अंडा दिया है. और इसके लिए मुर्गे पर पहले मुकदमा चलाया गया और अदालत में ये साबित किया गया कि मुर्गे का अंडा देना गलत है. मुर्गे को अप्राकृतिक अपराध का दोषी पाया गया. इसके बाद उसको जिंदा जलाने की सजा सुनाई गई.
1494 में पेरिस में एक सूअर पर आरोप लगा कि उसने एक छोटे बच्चे के गर्दन पर वार किया और बच्चे के शरीर को नुकसान पहुंचाया है. सूअर को एक अपराधी की तरह पकड़ा गया और उसपर मुकदमा हुआ. जिसमें पाया गया कि सूअर दोषी है. अदालत ने फैसला सुनाया कि सूअर को कैदियों की तरह रखा जाएगा और उसे लकड़ी की बेड़ियां पहनाकर फांसी दी जाएगी.
16वीं सदी में फ्रांस में एक चूहे पर जौ के खेत तबाह करने के आरोप लगे थे. चूहे के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया गया और कोर्ट ने चूहे को पेश होने के लिए समन भी भेजा. चूहे को एक सरकारी वकील भी मिला. वकील का कहना था चूहा काफी बुजुर्ग है अदालत नहीं आ सकता. मामला आगे बढ़ता रहा.
फिर एक बार जब चूहे के वकील ने दलील दी कि मेरे क्लाइंट को इलाके की बिल्लियों से जान का खतरा है, उन्हें कोर्ट बुलाने के लिए बिल्लियों पर कर्फ्यू लगाया जाए तो अदालत ने कोई ‘किट्टी कर्फ्यू’ तो नहीं लगाया लेकिन इसके बाद चूहे को बरी कर दिया गया.
सितंबर 1916 में अमेरिका के टेनेसी राज्य में एक हाथी को फांसी दी गई थी. इस हाथी का नाम था मैरी. हाथी के ऊपर आरोप था कि उसने अपने ट्रेनर की सर्कस के दौरान हत्या कर दी थी. ये अमेरिका का काफी चर्चित केस है क्योंकि उस समय पब्लिक की तरफ से यही मांग थी की हाथी को मार दिया जाए, हालांकि सर्कस का मालिक ऐसा नहीं चाहता था.
मामला अदालत पहुंचा और उस हाथी पर मुकदमा चलाया गया और उसको दोषी मानते हुए उसको फांसी की सजा दे दी गई. हाथी को फांसी देने के लिए 100 टन वजन उठाने वाली क्रेन मंगवाई गई और उसकी जरिए हाथी को फांसी दी गई. जब हाथी को फांसी दी गई तो हजारों लोग देखने के लिए जमा हुए थे.
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